श्री राम का जन्मकाल . एक शोध भारत मंे धर्म की जडं़े काफी गहरी हैं। करोड़ांे हिन्दुओं की आस्था के केंद्र भगवान श्रीराम हैं और लाखों करोड़ों वर्षों से हिन्दू श्रीराम का जन्म दिन चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को मनाते हैं। राम अपनी समस्त ईश्वरी शक्ति के साथ चैत्र शुक्ल नवमी को अवध नगरी में अवतरित हुए। उन्होंने सांसारिक ऐश्वर्य त्याग कर सामाजिक मर्यादाओं का पालन करते हुए देश के समस्त दुःखी जनों को संकट से मुक्ति दिलाई। वेद, उपनिषद आदि विभिन्न ग्रंथों में उन्हें परब्रह्म परमेश्वर के अवतार के रूप में चित्रित किया गया है। उनका चरित्र मानव जाति के लिए आज भी सर्वथा अनुकरणीय है। यह एक भारी विडंबना है कि कुछ लोग भगवान श्री राम को विष्णुजी का अवतार न मानकर मात्र एक महापुरुष के रूप में देखते हैं। उनके जन्मकाल को लेकर विद्वानों में मतभेद है। मर्यादा पुरुषोŸाम राम के जन्म के संबंध में विद्वानों ने अलग-अलग मत व्यक्त किए हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों ने अपने अध्ययन के आधार पर राम का जन्म ईसा पूर्व माना है। जोन्स उनका जन्मकाल 2029 वर्ष ई. पू. मानते हैं। टाड के अनुसार उनका जन्म 1100 वर्ष ई. पू. हुआ। विल्फर्ड ने उनका जन्मकाल 1360 वर्ष निर्धारित किया है। परंतु हमारे देश के इतिहासकार इन में से किसी भी काल को स्वीकार नहीं करते हैं। भारतीय इतिहास के कुछ आधुनिक व्याख्याकार मानते हैं कि भगवान श्रीराम का जन्म आज से 9.5 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। अंगे्रज हमारी प्राचीन गौरव गाथा, वेद उपनिषद आदि को पूर्व में मान ही नहीं रहे थे। उनकी आपत्ति स्वाभाविक थी। क्योंकि त्रेता युग में जन्में श्रीराम के जन्म काल की गणना सरल कार्य नहीं है। यह गणना भारतीय ज्योतिष के सहारे ही संभव है। ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षठ समत्ययुः नक्षत्रोऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंच्चसु। ततश्च द्वादशे मासे चैत्रं नावमिके तिथौ।। ग्रहेषु कर्कट लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।। प्रोद्यमाने जगन्न्ााथं सर्व लोक नमस्कृतम। कौशल्याजनमद् रामं दिव्य लक्षणं संयुतम्।। (वा. रा. -18. 8. 9. 1) यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् 6 ऋतुएं बीत गईं, तब बारहवें मास चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्व लोक वंदित जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया। उस समय पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थानों पर विद्यमान थे। लग्न में चंद्र वृहस्पति के साथ स्थित था। आदि कवि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में इस प्रकार की ग्रह स्थिति में श्री राम के जन्म का उल्लेख किया है। महाभारत के अनुसार त्रेता और द्वापर के संधिकाल में रामावतार हुआ था। यथाः- संध्येश समनुप्राप्ते त्रेतायां द्वापरस्य च। अहं दशरथी रामो भविष्यामि जगत्पतिः।। (महाभारत शान्तिपव-339/85) वायु हरिवंश और ब्राह्मण महापुराण के अनुसार 7 वें वैवस्वत् मन्वंतर के 24 वें त्रेता युग में श्रीरामअवतार होता है। चतुर्विशे युगे रामो वसिष्ठेन पुराधसा। सप्तमो रावणस्मार्थे जज्ञे दशरथात्मजः।। (वायु महापुराण 98/72) चतुर्विशयुगं चापि विश्वामित्रपुरः सरः। रामो दशरथस्याथ पुत्रःपदमायतेक्षणः।। (हरिवंश पुराण 4/41 ब्रह्मांड महापुराण 104/11) इस संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदासजी रचित रामचरित मानस में उल्लिखित भगवान राम के जन्मकाल का उल्लेख अवश्य है। इस संदर्भ में एक दोहा और एक चैपाई यहां प्रस्तुत हैं। दोहा जोग लगन ग्रह वार तिथि सकल भए अनुकूल। चर अरु अचर हर्षिजुत रामजन्म सुखमूल।। चैपाई नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकलपच्छ अभिजीत हरिप्रीता।। मध्य दिवस अतिशीत न घामा, पावन काल लोक विश्रामा।। (बाल कांड चै. 191) ऊपर वर्णित दृष्टांत में वर्ष की गणना नहीं है तथा अभिजित नक्षत्र का जिक्र विवादित है। अब महाकवि ब्रह्मर्षि वाल्मीकिजी के उस श्लोक पर विचार करें जिसमें उन्होंने भगवान श्री राम के जन्मकाल का वर्णन किया है। श्लोक इस प्रकार है। ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षट समत्ययुः। ततश्च द्वादशे मासे चैव नवमिके तिथौ।। नक्षत्रे दितिदैवत्ये स्वोच्च संस्थेषु पंचेसु। ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाकप्तौ इन्दुनासह।। श्रीराम का जन्म राजा दशरथ द्वारा किए गए पुत्रेष्ठि यज्ञ के बारह महीने के बाद हुआ था। भगवान के जन्म के समय सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र तथा शनि उच्चस्थ थे और अपनी-अपनी उच्च राशि क्रमशः मेष, मकर, कर्क, मीन और तुला में विराजमान थे। पौराणिक तथ्यों के अनुसार भारतीय इतिहास का आंकलन सही नहीं है। यदि रामजन्म इसी 28 वें महायुग में हुआ होता तो आज से लगभग 8 लाख 70 हजार वर्ष पूर्व का समय निकलता। किंतु उनका जन्म तो 24 वें महायुग में हुआ था। प्राचीन भारतीय ग्रंथ मनुस्मृति में इसका स्पष्ट उल्लेख है। उसके अनुसार गणना करने पर ज्ञात होता है कि श्री रामचन्द्रजी का जन्म आज से लगभग 1 करोड़ 81 लाख 50 हजार वर्ष पूर्व हुआ था। एक शोध के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म 24 वें महायुग के त्रेतायुग के समाप्त होने में जब लगभग 1041 वर्ष शेष थे, उस समय अर्थात आज (विक्रम संवत् 2064) से लगभग 1,81,50,149 वर्ष पूर्व हुआ था। इस तरह पृथ्वी की उत्पŸिा के लगभग 1,93,77,34,959 वर्ष बाद श्रीराम का जन्म हुआ। पृथ्वी की उत्पŸिा आज से 1,95,58,85,108 वर्ष पूर्व हुई थी। ज्योतिष मनीषी मानते हैं कि सप्त ऋषि गण स्थूल रीति से एक राशि में 21 सहस्र वर्ष रहते हैं। सूर्य एक राशि में एक माह, शनि एक राशि में तीस माह, बुध और शुक्र एक माह और गुरु तथा राहु एक राशि में एक वर्ष रहते हैं। यह गणना स्थूल है। राम के जन्म की काल गणना को समझने से पूर्व हमें कलियुग के बीते प्रथम चरण 5107 वर्षों की गणना को समझते हुए उल्टे क्रम से पीछे जाना होगा। शोधों के पश्चात् जो तथ्य सामने आया है उसके अनुसार कलियुग का प्रारंभ ईसा पूर्व 3102 से हुआ। आर्यभट्टजी जब 23 वर्ष के थे तब कलियुग के 3600 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। महान खगोलविद आर्यभट्टजी ने शुद्ध गणना करके सभी प्राचीन एवं तत्कालीन ज्योतिषियों के अभिमत से यह सिद्ध किया कि कलियुग के प्रारंभ के दिन सूर्याेदय के समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि थी और रविवार दिन था। भास्कराचार्य ने भी ब्रह्मास्फुट सिद्धांत में सृष्टि के प्रारंभ का दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही माना है। भारतीय काल गणना के प्रति जन चेतना बनी रहे इसलिए ही हमारे ज्योतिष मनीषियों ने प्रत्येक शुभ कार्य, पूजापाठ, यज्ञ, पर्व, उत्सव, व्रतादि के प्रारंभ में संकल्प कराने का विधान बनाया ताकि लोग ऐतिहासिक काल गणना को भूलें नहीं। यजमान के हाथों में जल, अक्षत, सुपारी आदि देकर ¬ विष्णु विष्णु विष्णु.....से आरंभ कर वर्तमान तक पूरी काल गणना करा कर संकल्प दिलाने का विधान है। उसमें मनन्वन्तर, कल्प, कलियुग, तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, ग्रह आदि की पूर्ण खगोलीय स्थिति तक स्पष्ट कर दी जाती है। नवम तिथि महत्वपूर्ण है रामावतार की तिथि भी महत्वपूर्ण है। ज्योतिष विज्ञान में इस तिथि को रिक्ता तिथि की संज्ञा दी गई है। चैत्र शुक्ल एवं कृष्ण दोनों पक्षों की नवम तिथि को मास शून्य तिथि माना गया है। राम ने नवमी तिथि को जन्म लिया, अतः उनके ईश्वरत्व को व्यक्त करती यह तिथि नव से नवीन तो है ही, अपने आप में मर्यादित भी है। अंक नौ है। एक से आठ तक के सभी अंक वृद्धि या गुणित में अपना स्वरूप खो देते हैं, जबकि नौ दूना अठारह= (1$8=9) सत्ताईस (2$7=9), छत्तीस (3$6=9) आदि गुणित होता हुआ नौ ही रहता है। तुलसी दास जी ने कहा है- तुलसी राम सनेह करु, त्यागी सकल उपचारु। जैसे घटत न अंक ‘नव’, ‘नव’ के लिखत पहारु।। श्रीराम ने उक्त नवम तिथि को जन्म लिया अतः सदा एकरूप एक चरित्र व मर्यादित जीवन जिया। रिक्ता तिथि अर्थात मास शून्य तिथि में जन्मे राम समस्त संसार व समस्त दैवीय शक्तियों के शून्य के मूलाधार हैं। ईश्वर को अवतार राम के रूप में वेद शास्त्र, पुराण निगमागम आदि से लेकर राम चरितमानस तक श्रीराम का जन्म दिवस पूज्य है और श्रद्धा व विश्वास पूर्वक मनाया जाता है। हिंदू धर्म व संप्रदाय श्रीराम को महामानव और ईश्वर का अवतार मानते हैं। श्रीराम के जन्म की इस तिथि की स्थिरता कभी समाप्त हो ही नहीं सकती। किंतु वह तभी हमारे भीतर श्रद्धा और विश्वास की रक्षा कर पाएगी जब हम श्रीराम के जन्म का अर्थ भी समझें, क्योंकि वह हमारे सर्वोत्कृष्ट आदर्श हैं। वह अवतारी महापुरुष माने गए हैं। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोŸाम कहा गया है। श्रीराम हमारी हिन्दू धर्म संस्कृति के पयार्य हैं, किसी का भी कुचक्र हमें व हमारे देश को यह मानने को बाध्य नहीं कर सकते कि श्रीराम का जन्म 5115 ई. पू. हुआ। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में सीता ने शरण ली थी। वहीं लव कुश का जन्म हुआ। ऋषि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे। उन्होंने रामायण में लिखा है- दशवर्षसहस्राणि दशवर्ष शतानि च। रामो राज्ययुपासित्व ब्रह्मलोकं प्रयास्यति।। (वा.रा. 1/1/97) श्रीराम ने 11 हजार वर्षों तक राज्य किया। फिर कैसे मान लें कि राम का जन्म ई.पू. 5115 में हुआ था? भगवान श्रीराम काल्पनिक पात्र नहीं हैं। अभी हाल में ही अमेरिका के एक खोजी उपग्रह ने श्री रामेश्वरम से श्री लंका तक श्रीराम द्वारा बनाए गए त्रेतायुग के पुल को 17.5 लाख वर्ष पुराना माना है। भारतदेश में यत्र-तत्र-सर्वत्र श्री राम के जन्म के प्रमाण मिलते हैं। श्रीरामेश्वर मंदिर, चित्रकूट, पंचवटी, सबरी आश्रम, भारद्वाज आश्रम, अत्रि आश्रम आदि का उदाहरण हमारे सामने है। शास्त्रानुसार 24 वें त्रेतायुग में राजा मनु की 64 वीं पीढ़ी में अयोध्या में उनका जन्म हुआ और इसी अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर का पुनर्निमाण पत्थर के 64 स्तंभों पर सम्राट विक्रमादित्य ने कराया था। तत्पश्चात् बाबर ने मस्जिद का निर्माण कराया। जनश्रुति के आधार पर बाबर की सेना ने तोप से मंदिर को गिरा दिया था। हिन्दुओं ने तब से अब तक 467 वर्षों में 78 वीं बार मंदिर बनाने का प्रयास किया। हिंदुओं के द्वारा किए गए अब तक के प्रयासों का एक संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। बाबर काल में - 4 बार हुमायंू काल में - 10 बार अकबर काल में - 20 बार औरंगजेब काल में - 30 बार नवाब सआदतअली काल में- 5 बार वाजिद अली काल में - 2 बार अंगे्रजों के काल में - 2 बार (पं. ए. के. दुबे के अनुसार) 1 फरवरी 1986 को जिला सत्र न्यायाधीश कृष्णमोहन पाण्डेय ने वर्षों से श्रीराम जन्मभूमि के बंद ताले को खोल देने का निर्णय दिया था। सायं 5 बजकर 19 मिनट पर ताला खोल दिया गया। आदेश 4 बजकर 40 मिनट पर। उस वक्त कर्क लग्न ही था जो कि श्रीराम का लग्न है। मंदिर निर्माण का विवाद बहुत पहले सन् 1858 में बाबा रामचरण दास एवं अमीर अली के संयुक्त प्रयास से सुलझ गया था। किंतु अंग्रेजी सरकार को यह बात पंसद नहीं आई, और उसने उन दोनों संतों को 18 मार्च 1858 को फांसी पर लटका दिया (संदर्भ कर्नल मार्टिन, गजेटियर पृष्ठ सं. 36 सुल्तानपुर)। 30 अक्तूबर 1990 को पुनः मंदिर निर्माण की घोषणा की गई किंतु निर्माण कार्य रुक गया। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराया गया। उस समय की ग्रह स्थिति व ग्रह योगों को हम सब जानते हैं। ग्रह योगों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि श्रीराम का जन्म कर्क लग्न में हुआ। मंदिर का ताला कर्क लग्न में खुला, अतः कर्क लग्न में ही न्याय व धर्म के धर्माधिकारी इस विवाद को सुलझाएंगे। गुरु व मंगल का प्रभाव रहेगा, मंदिर का निर्माण होगा। किंतु दमन, हिंसा, वलिदान आदि की घटनाएं भी होंगी। हाल ही में 5 जुलाई 2005 की प्रातः श्रीराम जन्मभूमि में आतंकी हमले हुए उस समय के ग्रह योगों से हम सभी परिचित हैं। पौराणिक तथ्यों के अनुसार भारतीय इतिहास का आंकलन सही नहीं है। यदि रामजन्म इसी 28 वें महायुग में हुआ होता तो आज से लगभग 8 लाख 70 हजार वर्ष पूर्व का समय निकलता। किंतु उनका जन्म तो 24 वें महायुग में हुआ था। प्राचीन भारतीय ग्रंथ मनुस्मृति में इसका स्पष्ट उल्लेख है। श्रीराम ने 11 हजार वर्षों तक राज्य किया। फिर कैसे मान लें कि राम का जन्म ई.पू. 5115 में हुआ था? भगवान श्रीराम काल्पनिक पात्र नहीं हैं। अभी हाल में ही अमेरिका के एक खोजी उपग्रह ने श्री रामेश्वरम से श्री लंका तक श्रीराम द्वारा बनाए गए त्रेतायुग के पुल को 17.5 लाख वर्ष पुराना माना है। भारतदेश में यत्र-तत्र-सर्वत्र श्री राम के जन्म के प्रमाण मिलते हैं। श्रीरामेश्वर मंदिर, चित्रकूट, पंचवटी, सबरी आश्रम, भारद्वाज आश्रम, अत्रि आश्रम आदि का उदाहरण हमारे सामने है।