तारक मंत्र एवं ‘राम’ नाम की महिमा गोपाल राजू मारा जीवन सौभाग्य और दुर्भाग्य की अनुभूतियों से भरा है। कभी हमें सौभाग्य का अनुभव होता है और कभी दुर्भाग्य का। सौभाग्य हमें निश्चित रूप से अच्छा लगता है परंतु दुर्भाग्य किसी को अच्छा नहीं लगता। देखा जाए तो यह सब मूलतः इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे अनुभव करते हैं अथवा नहीं। दुर्भाग्य किसी के लिए पहाड़ के समान होता है तो किसी के लिए एक साधारण सी बात। जीवन में दोनों आते रहते हैं। ये नाव के दो चप्पुओं के समान हैं। यदि एक का भी संतुलन बिगड़ जाए तो जीवन की नाव डगमगा जाएगी। जीवन की नैया को संतुलन में रखने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है तारक मंत्र श्री राम, जय राम, जय जय राम का जप। इस साधारण से दिखने वाले मंत्र में असीम शक्ति छुपी हुई है। यह उस मीठे फल के समान है जिसका स्वाद चखकर ही उसके गुण का अनुभव किया जा सकता है। आज हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि हम राम नाम का सहारा नहीं ले रहे। फलस्वरूप हमारे जीवन में विषमता बढ़ती ही जा रही है। एक सार्थक नाम के रूप में हमारे ऋषियों-मुनियों ने राम नाम के महत्व को पहचाना। उन्होंने इस पूजनीय नाम की परख की और नामों के आगे लगाने का चलन प्रारंभ किया। प्रत्येक हिन्दू परिवार में देखा जा सकता है कि बच्चे के जन्म में राम के नाम का सोहर होता है। विवाह आदि मांगलिक कार्यों के अवसर पर राम के गीत गाए जाते हैं। यहां तक कि मनुष्य की अंतिम यात्रा में भी राम नाम का ही घोष किया जाता है। राम सब में बड़े हैं। राम में शिव और शिव में राम विद्यमान हैं। राम जी को शिव का महामंत्र माना गया है। राम सर्वमुक्त हैं। राम सबकी चेतना का सजीव नाम है। कुख्यात डाकू रत्नाकर राम नाम से प्रभावित हुए और अंततः महर्षि वाल्मीकि नाम से विख्यात हुए। राम नाम की चैतन्य धारा से मनुष्य की प्रत्येक आवश्यकता स्वतः पूरी हो जाती है। यह नाम सर्व समर्थ है। जो चेतन को जड़ करई, जड़ई करई चैतन्य। अस समर्थ रघुनायकहिं, भजत जीवते धन्य।। राम अपने भक्त को उसके हृदय में वास कर सुख सौभाग्य प्रदान करते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं उनमें सर्वाधिक श्रीफल देने वाला नाम राम का ही है। इससे बधिक, पक्षी, पशु आदि तक तर जाते हैं। भद्राचलम के भक्त रामदास, महाराष्ट्र के समर्थ गुरु रामदास, कान्हगढ़ के संत राम दास, रामकृष्ण परमहंस, गांधी जी आदि सब संतजन श्री राम को सदैव अपने हृदय में रखकर उन्हीं की प्रेरणा से महान और सौभाग्यशाली बने। दक्षिण भारत के त्यागराज ने वर्षों राम नाम का जप किया। अंततः उन्हें राम का साक्षात्कार हुआ। सारे जीवन कृष्ण के प्रेम में लीन मीराबाई ने अंततः यही गाया- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। उन्होंने कृष्ण रतन धन क्यों नहीं कहा? राम नाम की महिमा अपरंपार है। अन्य देवी-देवताओं की तुलना में राम सबको सरलता से प्राप्त हो जाते हैं। यह नाम सबसे सरल और सुरक्षित है और इसके जप से लक्ष्य की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है। इस नाम मंत्र के जप के लिए आयु, स्थान, स्थिति, जात-पात आदि वाह्य आडंबर का कोई बंधन नहीं है। किसी क्षण, किसी भी स्थान पर इसे जप सकते हैं। स्त्री या पुरुष जब भी चाहें, इस नाम का जप कर सकते हैं। प्रभु के लिए सब समान हैं। तारक मंत्र ‘श्री’ से प्रारंभ होता है। ‘श्री’ को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है। राम शब्द ‘रा’ रकार ‘म’ मकार से मिलकर बना है। ‘रा’ अग्नि स्वरूप है यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। ‘म’ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है। इस प्रकार पूरे तारक मंत्र श्री राम जय राम जय जय राम का सार है शक्ति से परमात्मा पर विजय। ‘बीज मंत्र ¬ को हिंदू धर्म में परमात्मा का प्रतीक माना गया है। इसलिए मंत्रों के आरंभ में ‘¬’ जोड़ा जाता है। ‘¬’ को जोड़कर तारक मंत्र ‘¬श्री राम जय राम जय जय राम’ का जप किया जाता है। योग शास्त्र में ‘रा’ वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है। यह हमारी रीढ़ रज्जु के दायीं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है। यहां से यह शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार होता है। ‘म’ वर्ण को चंद्र ऊर्जा का कारक अर्थात् स्त्रीलिंग माना गया है। यह ऊर्जा रीढ़ रज्जु के बायीं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होती है। इसीलिए कहा गया है कि श्वास और निःश्वास तथा निरंतर रकार ‘रा’ और मकार ‘म’ का उच्चारण करते रहने के फलस्वरूप दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा से सामंजस्य बना रहता है। अध्यात्मवाद में माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा’ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर आ जाते हैं। इस समय अंतःकरण निष्पाप हो जाता है। अभ्यास में भी ‘रा’ को इस प्रकार उच्चारित करना है कि पूरे का पूरा श्वास बाहर निकल जाए। इस समय ‘तान्देन’ से रिक्तता अनुभव होने लगती है। इस स्थिति में पेट बिल्कुल पिचक जाता है। किंतु ‘रा’ का केवल उच्चारण मात्र ही नहीं करना है। इसे लंबा खींचना है रा...ऽ...ऽ...ऽ। अब ‘म’ का उच्चारण करें। ‘म’ शब्द बोलते ही दोनों होठ स्वतः एक ताले के समय बंद हो जाते हंै। और इस प्रकार वाह्य विकार के पुनः अंतःकरण में प्रवेश पर बंद होठ रोक लगा देते हैं। राम नाम अथवा मंत्र जपते रहने से मन और मस्तिष्क पवित्र होते हैं और व्यक्ति अपने पवित्र मन में परब्रह्म परमेश्वर के अस्तित्व को अनुभव करने लगता है। यह विधि कितनी सरल है। शांति पाने का यह कितना सरल उपक्रम है। फिर भी न जाने क्यों व्यक्ति इधर-उधर भटकता फिरता है। व्यक्ति के शरीर में 72,000 नाड़ियां हैं। इनमें से 108 नाड़ियों का अस्तित्व हृदय में माना गया है। इसलिए मंत्र जप संख्या 108 मानी गई है। इस तरह एक माला अर्थात 108 जप संख्या के अनेक महत्व हैं। यहां केवल इतना समझंे कि इतना जप करना महत्वपूर्ण है। सुर, ताल तथा नाद और प्राणायाम से जप को और भी शक्तिशाली बनाया जाता है। मंत्र जप में तीन पादों की प्रधानता है। पहले आता है मौखिक जप। इस स्थिति में जैसे ही हमारा मन मंत्र के सार को समझने लगता है, हम जप की द्वितीय स्थिति अर्थात् उपांशु में पहुंच जाते हैं। इस स्थिति में मंत्र का अस्पष्ट उच्चारण भी नहीं सुना जा सकता। तृतीय स्थिति में मंत्र जप केवल मानसिक रह जाता है। यहां मंत्रोच्चार केवल मानसिक रूप से चलता है। इसमें दृष्टि भी खुली रहती है और मानसिक तादात्म्य के साथ-साथ व्यक्ति अपने दैनिक कर्मों में भी लीन रहता है। यह अवस्था मंत्र के एक करोड़ जप कर लेने मात्र से आ जाती है। यहीं से शांभवी मुद्रा सिद्ध हो जाती है और परमहंस की अवस्था पहुंच जाती है। तारक मंत्र का एक लाख जप कर लेने से व्यक्ति को अपने अंतःकरण में अनोखी अनुभूति होने लगती है। यहां से व्यक्ति के लिए दुर्भाग्य नाम की किसी वस्तु का अस्तित्व ही नहीं रह जाता। यदि ऐसा व्यक्ति मंत्र जप के बाद किसी बीमार व्यक्ति की भृकुटी में सुमेरु छुआ दे तो उसे आशातीत लाभ होने लगेगा। परंतु इस प्रकार के प्रयोग के बाद माला को गंगाजल से शुद्ध करके ही प्रयोग करना चाहिए। यहां माला के मनकों आदि पर भी विचार आवश्यक है। क्योंकि अज्ञानतावश कुछ लोग इसका उचित प्रयोग नहीं कर पाते। मंत्र जप के लिए 108 मनकों की माला सर्वाधिक उपयुक्त होती है। माला कामना के अनुरूप तुलसी, वैजयंती, रुद्राक्ष, कमलगट्टे, स्फटिक, पुत्रजीवा, अकीक, होनी चाहिए या किसी अन्य रत्न की तारक मंत्र के जप के लिए तुलसी की माला सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक हैं। माला का 109 वां मनका सुमेरु कहलाता है। व्यक्ति को एक बार में 108 बार जप करना चाहिए। इसके बाद सुमेरु से माला पलटकर पुनः जप आरंभ करना चाहिए। किसी भी स्थिति में माला का सुमेरु लांघना नहीं चाहिए। माला को अंगूठे और अनामिका से दबाकर रखना चाहिए और मध्यमा से एक मंत्र जप कर एक दाना हथेली के अंदर खींच लेना चाहिए। तर्जनी से माला को छूना वर्जित है। माला के दाने कभी-कभी 54 भी होते हैं। ऐसे में माला फेरकर सुमेरु से पुनः लौटकर एक बार फिर एक माला अर्थात् 54 बार जप फिर करना चाहिए। इस प्रकार दो बार जप करने से 108 बार का जप हो जाता है। साधक इच्छानुसार एक बैठक में 1008 बार का जप भी कर सकता है। गर्दन और सिर एक सीधी रेखा में और ऊर्जा का प्रभाव रीढ़ रज्जु में एक सीधी रेखा में रहे। मंत्र जप के बाद अंत में सुमेरु को माथे से छुआकर माला को किसी पवित्र स्थान में रख देना चाहिए। मंत्र जप में कर माला का प्रयोग भी किया जाता है। जिनके पास कोई माला न हो, वे कर माला से जप करें। दाएं हाथ की अनामिका के प्रथम पोर से नीचे से ऊपर की ओर जाते हुए कर माला की गिनती का विधान है। कर माला से मंत्र जप करने में भी माला के बराबर जप का फल मिलता है। इससे श्रेष्ठ जप यह माना गया है कि श्वास-प्रश्वास में निरंतर राम नाम निकलता रहे। जहां तक संभव हो हर घड़ी, हर क्षण राम का नाम समा जाए। ठीक वैसे ही जैसे ‘‘मारुति के रोम रोम में बसा राम नाम है।’’ जप के अतिरिक्त राम मंत्र को लिखकर भी आत्मशुद्धि की जा सकती है। एक लाख मंत्र एक निश्चित अवधि में लिखकर यदि पूरे कर लिए जाएं तो अंतर्मन स्वच्छ हो जाता है। व्यक्ति यदि चार करोड़ मंत्र अथवा मात्र राम नाम लिखकर अथवा जपकर पूर्णकर ले तो उसके ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं और वह भवसागर को पार कर जाता है। परंतु यह कार्य सरल नहीं है क्योंकि मन बहुत चंचल है, एक जगह स्थिर नहीं रहता। एक मिनट में सामान्य व्यक्ति 15 सांसंे लेता है। इस प्रकार एक घंटे में 900 और एक दिन में 21600 सांसंे लेता है। एक वर्ष में यह संख्या 70 लाख 76 हजार होगी। यदि प्रत्येक सांस में वह राम नाम ले सकेगा तो 4 करोड़ की संख्या लगभग 5 वर्ष में पूरी कर पाएगा। 24 घंटे में 12 घंटे यदि अन्य कार्यों के लिए निकाल दें तो 4 करोड़ जप वह 10 वर्षों में पूरे कर पाएगा। यह तभी संभव है जब प्रत्येक सांस में वह अन्य कोई विचार न लाए। इस तरह यह बहुत ही कठिन है। इसीलिए पुण्यफल एक-दो जन्मों में नहीं मिल पाता। इसके लिए जन्म-जन्मांतर का समय चाहिए। जितनी कम आयु से नाम का जप प्रारंभ कर दिया जाए उतना ही अच्छा है क्योंकि एक अवस्था के बाद अभ्यास की कमी के कारण शरीर भी कार्य करने से आनाकानी करने लगता है। नाम जप का लेखा जोखा रखने के लिए अनेक स्थानों में निःस्वार्थ भाव से राम नाम के बैंक भी चल रहे हैं। कुछ लोग तो राम नाम लिखने की लेखन पुस्तिका निःशुल्क वितरित कर रहे हैं। आप भी आज से मंत्र जप का सहारा लेकर दुर्भाग्य को दूर भगाएं और राममय हो जाएं। राम सब में बड़े हैं। राम में शिव और शिव में राम विद्यमान हैं। राम जी को शिव का महामंत्र माना गया है। राम सर्वमुक्त हैं। राम सबकी चेतना का सजीव नाम है। कुख्यात डाकू रत्नाकर राम नाम से प्रभावित हुए और अंततः महर्षि वाल्मीकि नाम से विख्यात हुए। राम नाम की चैतन्य धारा से मनुष्य की प्रत्येक आवश्यकता स्वतः पूरी हो जाती है। यह नाम सर्व समर्थ है।