विश्वविख्यात मुक्केबाज मोहम्मद अली पं. शरद त्रिपाठी मोजीवनअली को वास्तविक सफलता मिली नाम बदलने के बाद। वह खेलों की दुनिया के उस खेल से संबंध रखते हैं, जिसमें शारीरिक दमखम, दिमागी संतुलन और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का होना अति आवश्यक है। महान मुक्केबाज विश्व हैवीवेट चैंपियन और दुनिया के चर्चित व्यक्तियों में आज भी शुमार मोअली का जन्म 17.01.1942 को अमेरिका क े कंटे ुकी राज्य क े लइु स विल े नामक शहर में शाम 6 बजकर 35 मिनट पर हुआ था। पहले इनका नाम कैसियस मासेलस क्ले जूनियर था। इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मो. अली हज रख लिया। इनके मुक्केबाज बनने की कहानी बड़ी ही विचित्र है। जब अली 12 वर्ष के थे तब एक चोर ने उनकी साइकिल छीन ली। वह इसकी थाने में रिपोर्ट लिखवाने थाने पहुंचे। वहां पुलिसमैन जाॅय मार्टिन से उनकी मुलाकात हुई। अली की कद काठी देखकर उन्होंने कहा तुम्हें तो खुद चोर से निपटना चाहिए था। मार्टिन खुद एक अच्छे बाॅक्सिंग ट्रेनर थे। उन्होंने अली को बाॅक्सिंग सीखने को कहा और स्वयं सिखाने को तैयार हो गए। जल्द ही अली अन्य किशोर बाॅक्सरांे से आगे निकल गए। परंतु इससे उनकी शिक्षा प्रभावित होने लगी। फिर भी हाई स्कूल तक पहंुचते-पहुंचते उन्होंने ‘केंटुकी गोल्ड ग्लोब्ज’ के छः गोल्ड मेडेल जीत लिए। उनकी इस सफलता को सम्मान देते हुए सैकेंडरी परीक्षा में बहुत कम अंक आने के बाद भी उन्हें स्नातक में प्रवेश दे दिया गया, क्योंकि प्रधानाचार्य का मानना था कि यह बालक एक दिन स्कूल का नाम जरूर रोशन करेगा। आइए देखें, उनके सफलता के शिखर तक पहुंचने के ज्येतिषीय कारण क्या थे? पंचम भाव का स्वामी मंगल दशम भाव में नीच के शनि के साथ स्थित है अर्थात पंचमेश अपने से छठे भाव में स्थित है जो शिक्षा में कहीं न कहीं समस्या का संकेत दे रहा है। लेकिन एकादश में स्थित गुरु की दृष्टि विपरीत परिस्थितियों में भी अध्ययन को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हुई। सन् 1952 से राहु की महादशा आरंभ हुई और राहु में गुरु का अंतर 1954 से प्रारंभ हुआ। यहीं से उनकी बाॅक्सिंग ट्रेनिंग प्रारंभ हुई जिसने उनका कैरियर बनाया। राहु धन भाव में 210 पर स्थित है जो शुक्र के नक्षत्र में है। शुक्र लाभ भाव का स्वामी होकर सप्तम में लग्नेश चंद्र व द्वितीयेश सूर्य के साथ स्थित है और लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। गुरु लाभ भाव में 180 पर स्थित है, जो कि चंद्रमा के नक्षत्र में स्थित है। कहने का तात्पर्य यह है कि राहु और गुरु इनके जीवन में दो ऐसे ग्रह हैं जो धन व लाभ स्थान में हैं। इनकी दस वर्ष की उम्र (1952) से ही राहु की महादशा मिली और तत्पश्चात् गुरु की महादशा (16 वर्ष) 1970 से 1986 तक रही अर्थात 18$16=34 वर्ष तक उन्हें कंुडली में सर्वश्रेष्ठ स्थित ग्रहों की महादशा प्राप्त हुई जिसने उन्हें महानतम मुक्केबाज बनाया। 1960 में रोम में हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने लाइट हेवीवेट बाॅक्सर का गोल्ड मेडेल जीता। लेकिन कुछ दिन बाद ही उन्होंने नस्लवादी अपमान के विरोध में उस मेडेल को अमेरिका की ओहियो नदी में फेंक दिया जो उस समय का चर्चित विषय रहा। 29 अक्टूबर 1960 को लुइसविले में कैसियस क्ले ने अपनी पहली प्रोफेशनल फाइट जीती। उन्होंने उस जमाने में फेट्टेविले के पुलिस चीफ हनी हनसेकर को छठे राउंड में हरा दिया। इसी के साथ उनकी सफलता का दौर शुरू हुआ। 1960 से 1963 तक के इस स्वर्णिम काल में उन्होंने 19 राॅबिन्सन, डानी फ्लीमेन, ड्यूक सेबेडांग, एलोंजो, जाॅन्सन, जाॅर्ज लोगन, लेमर क्लार्क, सरीखे धुरंधरों को धराशायी किया। उनसे हारने से पहले लेमर क्लार्क ने 40 मुकाबले जीते थे। यही नहीं 200 मुकाबले जीतने वाले ‘आर्चीमूर’ भी अली के मुक्कों से नहीं बच सके। इसी क्रम में अली ने सोनी लिस्टन के सिंहासन को चुनौती दी। उस समय किसी में नहीं थी। मुकाबले की तारीख 25 फरवरी 1964 तय कर दी गई। सातवें राउंड तक पहुंचते-पहुंचते लिस्टन थककर चूर हो गए और अली बाॅक्सिंग की दुनिया के नए बादशाह बन कर उभरे। 1966-67 तक का समय इस चैंपियन के लिए सफलता के नए अवसरों का था। इस दौरान उन्होंने अपना खिताब 7 बार बचाया। किसी भी चैंपियन के लिए यह सफलता अनूठी है। अली एक और घटना के चलते सुर्खियों में आए उन्होंने इस्लाम कबूल करते समय अपना नाम बदलकर मोअली रख लिया। मार्च 1966 में उन्होंने जाॅर्ज चुवालो को हराया जो कभी नहीं हारा था। नवंबर 1966 में अली अमेरिका गए वहां ‘बिगकैट विलयम्स’ से मुकाबला किया जो सबसे ज्यादा नाॅक आउट से जीतने का रिकार्डधारी था। उसे अली ने तीसरे राउंड में ही हरा दिया। 1966 में ही एक अजीब घटना घटी जब अली ने वियतनाम युद्ध के समय सेना में शामिल होने से इनकार कर दिया। इसके चलते उनका चैंपियनशिप बेल्ट उतार लिया गया और बाॅक्सिंग लाइसेंस छीन कर उन्हें जेल में डाल दिया गया। अपने हक की लड़ाई में वे सुप्रीम कोर्ट तक गए और 1970 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बाॅक्सिंग लाइसेंस बहाल करने का आदेश दे दिया। यह उनकी वापसी थी। अब उनकी कदम दर कदम सफलता की राज का ज्योतिषीय आधार पर विश्लेषण करते हैं 23 जुलाई 1966 से राहु में सूर्य का अंतर 17.6.67 तक चला। राहु और सूर्य दोनों ही उनके लिए प्रभावशाली ग्रह हैं लेकिन राहु में सूर्य का संयोग एक ग्रहण योग भी बनाता है। अतः खेलों के मामले में तो इस दशा क्रम में उन्हें बहुत सफलता मिली परंतु ग्रहण येाग की दशा के कारण उन्हें चैंपियनशिप बेल्ट उतरने, बाॅक्सिंग लाइसेंस छिनने और जेल जाने का कष्ट भी झेलना पड़ा। राहु और सूर्य के इसी योग में उन्होंने राहु धर्म (इस्लाम) स्वीकार किया। 16 दिसंबर 1968 तक राहु में चंद्र का अंतर रहा। यह भी एक ग्रहण योग है अतः इस समय उन्हें मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ा क्योंकि चंद्र लग्नेश है। तत्पश्चात् राहु में मंगल का अंतर प्रारंभ हुआ - मंगल पंचमेश और दशमेश होकर दशम भाव में ही मजबूत स्थिति में है। इस दशा काल में उन्होंने अपने हक की लड़ाई लड़ी। 3 जनवरी 1970 से लाभ भाव में बैठे भाग्येश बृहस्पति की महादशा प्रारंभ होते ही उन्हें रिहाई मिल गई। जेल से आकर जल्द ही अली ने अक्टूबर 1974 में धुआंधार वापसी की। इस बार उन्होंने अपराजेय युवा फाइटर ‘जाॅर्ज फोरमैन’ से मुकाबला किया और छठे राउंड में ही धूल चटा दी। इससे अली को हिकाक बेल्ट का खिताब प्राप्त हुआ। उन्हें ‘स्पोटर््स इलस्टेªड मैगजीन’ ने स्पोर्टस मैन आॅफ द इयर के खिताब से सम्मानित किया। सफलता के इस सफर को जारी रखते हुए अली ने 1975 में फ्रेजियर को हराया। किंतु 1976 के ओलंपिक में उनकी हार हुई और 1979 उन्होंने संन्यास की घोषण कर दी। यह रिटायरमेंट ज्यादा दिन तक नहीं चला। 2 अक्टूबर 1980 को उन्होंने लारी होक्स को हेवीवेट टाइटिल के लिए चुनौती दे डाली। इस मुकाबले से पहले उनकी चिकित्सकीय जांच में दिमाग में सुराख पाया गया और उनके हाथांे और आवाज में कंपन था। अंततः अली हार गए। एक वर्ष तक कुछ मुकाबले हारने के बाद अंततः अली ने 1981 में संन्यास ले लिया। उस समय इनका रिकार्ड था - 56 जीत, उसमें भी 37 नाक आउट द्वारा और 5 हार। अब इसे हम ज्योतिषीय आधार पर देखें। सिंतबर 1974 तक गुरु में शनि का अंतर चला। शनि चंूकि दशम भाव में मंगल के साथ स्थित है इसलिए उसने उनकी कार्य क्षेत्र में वापसी कराई और सम्मान भी दिलाया। 1976 में गुरु में बुध चल रहा था, जो इनकी कुंडली में व्यय का स्वामी है और अनुकूल ग्रह नहीं है। फलतः उन्हें ओलंपिक में हार का सामना करना पड़ा। 1979 में गुरु में शुक्र का अंतर था जो चतुर्थेश भी है और चतुर्थेश अपने से चतुर्थ अर्थात सप्तम भाव में लग्नेश चंद्र के साथ स्थित है। अतः उन्होंने उसी समय घर वापसी (रिटायरमेंट) की घोषणा की। 1980 में गुरु में सूर्य का अंतर चल रहा था। पहले भी सूर्य का अंतर सही नहीं रहा था, क्योंकि वह एक मारक स्थान का स्वामी होकर दूसरे मारक स्थान मे बैठा है। अतः इस समय उन्हें शारीरिक समस्या शुरू हुई। 1981 में जैसे ही बृहस्पति में लग्नेश चंद्र का अंतर आया, उन्होंने स्थायी रूप से संन्यास (रिटायरमेंट) की घोषणा कर दी। उन्हें 1996 के अटलांटा ओलंपिक की मशाल थामने का गौरव भी हासिल हुआ। इस ओलंपिक में उन्हें रिप्लेसमेंट गोल्ड मेडेल भी मिला। यह मेडेल उस मेडेल का रिप्लेसमेंट था जिसे उन्होंने नस्ली टिप्पणी के विरोध में ओहियो नदी में फेंक दिया था। अली की बेटी लैला भी 1999 में बाॅक्सर बन गई। 1996 में शनि में सूर्य का अंतर चल रहा था। शनि की 10 वीं पूर्ण दृष्टि सप्तम भाव में बैठे सूर्य पर पड़ रही थी। शनि और सूर्य में पिता पुत्र का संबंध होता है। 36 साल बाद सूर्य ने उनहें उनका खोया सम्मान गोल्ड मेडेल वापस दिलाया। 8 जुलाई 1998 से 17 अगस्त 1999 तक शनि में मंगल था अतः संतान पुत्री भी पिता की तरह (चूंकि मंगल पंचम व दशम का स्वामी होकर दशम में है) उन्हीं के पेशे अर्थात बाॅक्सिंग को अपना कैरियर बनाया। वर्ष 2002 में अली ने संयुक्त राष्ट्र संघ का सद्भावना दूत बनकर अफगानिस्तान की यात्रा की। 21 जून 2003 को डबलिन आयरलैंड में आयोजित स्पेशल ओलंपिक के अग्रदूत बने। 4 मई 2004 को वाशिंगटन डी.सी. में आयोजित समारोह में द अरबन अमेरिकन इंस्टिट्यूट में मो. अली को ‘खलील जिब्रान स्पिरिट आॅफ ह्यूमैनिटी’ सम्मान दिया गया। सिंतबर 2005 में ओवर टाइम मैगजीन ने अपनी वर्ष गांठ के अवसर पर अली को ओवर टाइम मैगजीन लाइफ लांग सर्विस अवार्ड के लिए चुना। केटुंकी स्टेट यूनिवर्सिटी ने उन्हें डाइरेक्टर आॅफ ह्यूमेन लेटर्स अवार्ड दिया। 2002 में शनि में राहु का अंतर था। राहु सदा ही उनके लिए अनुकूल रहा है उन्हें मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। 23.6.2002 से 3.1.2005 तक शनि में गुरु का अंतर था। इस दशा काल में उन्हें कई सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। अली ने ‘द सोल आॅफ बटरफ्लाई’ शीर्षक से एक नई किताब लिखी है जो उनकी जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं को उजागर करती है। दर्शन शैली में लिखी गई इस किताब में इंसानी संवेदनाओं, जिंदगी के विभिन्न पक्षों और ईश्वर से जुड़ाव को अभिव्यक्त किया गया है। कुल मिलाकर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मो. अली एक महान् मुक्केबाज होने के साथ ही एक संवेदनशील इंसान भी हैं। आइये अब देखते हैं, वर्तमान और भविष्य का ज्योतिषीय विश्लेषण क्या कहता है। वर्तमान में 3.1.2005 से चल रही बुध की महादशा 3.1.2022 तक रहेगी। उनके लिए मारक बुध तीसरे और बारहवें का स्वामी है अतः यह महादशा उनके जीवन की अंतिम दशा होगी। 30.3.2011 से 3.2.2012 तक बुध में सूर्य का अंतर चलेगा जो इनके स्वास्थ्य और जीवन के अनुकूल नहीं होगा। वर्तमान में बुध में केतु चल रहा है, जो मई 2008 तक रहेगा। बुध में शुक्र शुरू होगा जो 30.3.2011 तक रहेगा। इस काल में इनकी 9 संतानों में से किसी एक को मृत्युतुल्य कष्ट होगा। संतान पक्ष को पंचम से देखते हैं तो शुक्र पंचम से सप्तम और द्वादश का स्वामी होता है अर्थात दो संतानों का विवाह भी होगा। ज्योतिष मनीषियों द्वारा लिखित मूल ग्रंथों में ज्योतिष के कुछ शास्त्रोक्त योग भी हैं, जो मो. अली की जन्म कंुडली में विद्यमान हैं और जो साक्षात् फलित होते हैं। बहु स्त्री योग केंद्रत्रिकोणे दारेशे स्वोच्चमित्रस्ववर्गगे। कर्माचिपेन वा युक्ते बहुस्त्री सहितो भवेत।। सर्वार्थ चिंतामणि अ. 6, श्लो. 30 यदि कुंडली में सप्तमेश केंद्र या त्रिकोण में उच्च या मित्र राशि में या अपने अंशादि में हो अथवा दशमेश से युत हो, तो बहुस्त्री योग बनता है (शनि) लाभदारेश्वरो युक्तौ परस्परनिरीक्षितौ। बलाढ्ये वा त्रिकोणस्थौ बहुस्त्री सहितौ भवेत।। सर्वार्थ चिंतामणि अ. 6, श्लो. 31 यदि कुंडली में लाभेश सप्तमेश से युत हो अथवा दोनों परस्पर एक दूसरे को देखते हों और बली हों, तो बहु स्त्री योग बनता है। कलत्रैभानु कुटुंबी बहुदारसŸाा।। सर्वार्थ चिंतामणि अ. 6, श्लो. 3 यदि कुंडली में सप्तम भाव में सूर्य स्थित हो, तो जातक बहुत कुटुंबवान होता है। जीवज्ञौ सवा निशाकरिशितौ कामे बहुस्त्रीरतः।। जातक पारिजात अ. 14, श्लो. 4 यदि कुंडली में बुध और गुरु अथवा चंद्र और शुक्र सप्तमस्थ हों तो बहु स्त्री योग बनता है। पुष्कल योग जन्मेशे सहिते िव ल ग् न प ित न ा केंद्रऽधिमित्रक्र्षगे। लग्नं पश्यति कश्चिदत्र बलवान्योगो भवेत्पुष्कलः।। श्रीमान् पुष्कलयोगजो नृपवरैः सम्मानितो विश्रुता। स्वाकल्पांबर भूषितः शुभवचा सर्वोŸामः स्यात्प्रभुः।। फल दीपिका अ. 6, श्लो.19-20 कुंडली में लग्न का स्वामी और चंद्र जिस राशि में हों उसके स्वामी एक साथ कंेद्र में हों तथा अधिमित्र के घर में हों और किसी बलवान ग्रह को देखें तो पुष्कल योग होता है। शनि, मंगल और राहु कुंडली में यह योग बना रहे हंै। यह योग व्यक्ति को राजपक्ष से सम्मान दिलाता है, धनी, अच्छा वक्ता और जनप्रिय बनाता है, सुखमय प्रदान करता और उŸाम वस्त्र आभूषण देता है।