भगवान श्री राम के अनेकानेक नाम डा. भगवान सहाय श्रीवास्तव श्री राम - जिनमें योगीजन रमण करते हैं। रामचन्द्र - चंद्र के समान आनन्दमय एवं मनोहर राम। रामभद्र - कल्याणमय राम। शाश्वत - सनातन भगवान। राजीवलोचन - कमल के समान नेत्रों वाले। श्रीमान् राजेन्द्र - श्री सम्पन्न राजाओं के भी राजा (चक्रवर्ती सम्राट) । रघुपुंगव - रघुकुल में सर्वश्रेष्ठ। जानकी वल्लभ - जनक किशोरी सीता के प्रियतम। जैत्र - विजयशील जितामित्र - शत्रुओं को जीतने वाले। जनार्दन - सभी मनुष्यों द्वारा याचना करने योग्य। विश्वामित्र प्रिय - विश्वामित्र जी के प्रिय। दान्त - जितेन्द्रिय। शरण्यत्राण तत्पर -- शरणागतों के रक्षक। बालि प्रमथन - बालि नामक वानर को मारने वाले। वाग्मी - अच्छे वक्ता । सत्यवाक् - सत्यवादी। सत्यविक्रम - सत्यपराक्रमी। सत्यव्रत - सत्य का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाले। व्रतफल - सभी व्रतों के प्राप्त होने योग्य फल स्वरूप। सदाहनुमद्राश्रय -- हनुमान जी के आश्रय अथवा हनुमान जी के हृदय कमल में सदा निवास करने वाले। कौशलेय - कौशल्या जी के पुत्र। खरध्वंसी - खर नामक राक्षस का नाश करने वाले। विराधवध पंडित - विराध नामक दैत्य का वध करने में कुशल। विभीषण परित्राता - विभीषण के रक्षक। दशग्रीव शिरोहर - दशशीश रावण के मस्तक काटने वाले। हरकोदण्ड खण्डन - जनकपुर में शिवजी के धनुष को तोड़ने वाले। जामदग्न्य महादर्पदलन - परशुराम जी के महा अभिमान को चूर्ण करने वाले। ताडकान्तकृत - ताड़का नामक राक्षसी का वध करने वाले। वेदान्तर - वेदांत के पारंगत विद्वान अथवा वेदांत से भी अतीत वेदात्मा - वेदस्वरूप। भवबन्धैक भेषज - संसार बंधन से मुक्त करने के एक मात्र औषधरूप। दूषण त्रिशिरोडरि - दूषण और त्रिशिरा नामक राक्षसों के शत्रु। त्रिमूर्ति - ब्रह्मा, विष्णु और महेश - तीन रूप धारण करने वाले। त्रिगुण - त्रिगुण स्वरूप अथवा तीनों गुणों के आश्रय। त्रयी - तीन वेदस्वरूप त्रिविक्रम - वामन अवतार में तीन पगों से समस्त त्रिलोकी नाप लेने वाले। त्रिलोकात्मा - तीनों लोकों की आत्मा। पुण्यचारित्र कीर्तन - जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र है। त्रिलोकरक्षक - तीनों लोकों की रक्षा करने वाले। धन्वी - धनुष धारण करने वाले। दंडकारण्य वासकृत - दंडकारण्य में निवास करने वाले। अहल्या पावन - अहल्या को पवित्र करने वाले। जितेन्द्रिय - इन्द्रियों को काबू में स डा. भगवान सहाय श्रीवास्तव, इलाहाबाद श्री राम - जिनमें योगीजन रमण करते हैं। रामचन्द्र - चंद्र के समान आनन्दमय एवं मनोहर राम। रामभद्र - कल्याणमय राम। शाश्वत - सनातन भगवान। राजीवलोचन - कमल के समान नेत्रों वाले। श्रीमान् राजेन्द्र - श्री सम्पन्न राजाओं के भी राजा (चक्रवर्ती सम्राट) । रघुपुंगव - रघुकुल में सर्वश्रेष्ठ। जानकी वल्लभ - जनक किशोरी सीता के प्रियतम। जैत्र - विजयशील जितामित्र - शत्रुओं को जीतने वाले। जनार्दन - सभी मनुष्यों द्वारा याचना करने योग्य। विश्वामित्र प्रिय - विश्वामित्र जी के प्रिय। दान्त - जितेन्द्रिय। शरण्यत्राण तत्पर -- शरणागतों के रक्षक। बालि प्रमथन - बालि नामक वानर को मारने वाले। वाग्मी - अच्छे वक्ता । सत्यवाक् - सत्यवादी। सत्यविक्रम - सत्यपराक्रमी। सत्यव्रत - सत्य का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाले। व्रतफल - सभी व्रतों के प्राप्त होने योग्य फल स्वरूप। सदाहनुमद्राश्रय -- हनुमान जी के आश्रय अथवा हनुमान जी के हृदय कमल में सदा निवास करने वाले। कौशलेय - कौशल्या जी के पुत्र। खरध्वंसी - खर नामक राक्षस का नाश करने वाले। विराधवध पंडित - विराध नामक दैत्य का वध करने में कुशल। विभीषण परित्राता - विभीषण के रक्षक। दशग्रीव शिरोहर - दशशीश रावण के मस्तक काटने वाले। हरकोदण्ड खण्डन - जनकपुर में शिवजी के धनुष को तोड़ने वाले। जामदग्न्य महादर्पदलन - परशुराम जी के महा अभिमान को चूर्ण करने वाले। ताडकान्तकृत - ताड़का नामक राक्षसी का वध करने वाले। वेदान्तर - वेदांत के पारंगत विद्वान अथवा वेदांत से भी अतीत वेदात्मा - वेदस्वरूप। भवबन्धैक भेषज - संसार बंधन से मुक्त करने के एक मात्र औषधरूप। दूषण त्रिशिरोडरि - दूषण और त्रिशिरा नामक राक्षसों के शत्रु। त्रिमूर्ति - ब्रह्मा, विष्णु और महेश - तीन रूप धारण करने वाले। त्रिगुण - त्रिगुण स्वरूप अथवा तीनों गुणों के आश्रय। त्रयी - तीन वेदस्वरूप त्रिविक्रम - वामन अवतार में तीन पगों से समस्त त्रिलोकी नाप लेने वाले। त्रिलोकात्मा - तीनों लोकों की आत्मा। पुण्यचारित्र कीर्तन - जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र है। त्रिलोकरक्षक - तीनों लोकों की रक्षा करने वाले। धन्वी - धनुष धारण करने वाले। दंडकारण्य वासकृत - दंडकारण्य में निवास करने वाले। अहल्या पावन - अहल्या को पवित्र करने वाले। जितेन्द्रिय - इन्द्रियों को काबू में रखने वाले। जितक्रोध - क्रोध को जीतने वाले। जीतलोभ - लोभ-लालच की वृŸिा को समाप्त करने वाले। जगद्गुरु - समस्त मानव जाति के गुरु। ऋक्षवानर संघाती - वानर और भालुओं की सेना का संगठन करने वाले। चित्रकूट समाश्रय - वनवास के समय चित्रकूट पर्वत पर निवास करने वाले। जयन्तत्राणवरद - जयन्त के प्राणों की रक्षा करके उसे वर देने वाले। सुमित्रापुत्र सेवित - सुमित्रानंदन लक्ष्मण के द्वारा सेवित। सर्वदेवाधि देव - सभी देवताओं के अधिदेवता। मृतवानर जीवन - मरे हुए वानरों को जीवित करने वाले। मायामारीचहंता - मायामय मृग रूपी मारीच नामक राक्षस का वध करने वाले। महाभाग - महान सौभाग्यशाली। महाभुज - बड़ी-बड़ी भुजाओं वाले। सर्वदेवस्तुत - देवतागण जिनकी स्तुति करते हैं। सौम्य - शांत स्वभाव। ब्रह्मण्य - ब्राह्मणों के हितैषी। मुनिसत्तम् - मुनियों में श्रेष्ठ। महायोगी - सभी योगों के अनुष्ठायी होने के कारण महान योगी। महोदार -- परम उदार। सुग्रीव स्थिर राज्यद - सुग्रीव को स्थिर राज्य प्रदान करने वाले। सर्वपुण्याधिकफल - समस्त पुण्यों के उत्कृष्ट फलरूप। स्मृत सब विनाशन - स्मरण करने मात्र से ही सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाले। आदिपुरुष - ब्रह्माजी को भी उत्पन्न करने के कारण सबके आदिभूत अंतर्यामी परमात्मा। महापुरुष - समस्त पुरुषों में महान। परम पुरुष - सर्वोत्कृष्ट पुरुष। पुण्योदय - पुण्य को प्रकट करने वाले। महासार - सर्वश्रेष्ठ सारभूत परमात्मा। पुराण पुरुषोŸाम - पुराण प्रसिद्ध क्षर अक्षर पुरुषों में श्रेष्ठ लीला पुरुषोŸाम स्मितवक्त्र - जिनके मुख पर सदा मुस्कान की छटा छायी रहती है। मितभाषी - कम बोलने वाले। पूर्वभाषी - पूर्व वक्ता। राघव - रघुकुल में अवतीर्ण। अनन्त गुण गम्भीर - अनन्त कल्याण मय गुणों से युक्त एवं गम्भीर। धीरोदात्त गुणोŸार - धीरोदात्त नायक के लोकोŸार गुणों से युक्त। माया मानुष चरित्र - अपनी माया का आश्रय लेकर मनुष्यों जैसी लीलाएं करने वाले। महादेवाभि पूजित - भगवान शंकर के द्वारा पूजित। सेतुकृत - समुद्र पर पुल बांधने वाले। जितवारीश - समुद्र को जोतने वाले। सर्वतार्थमय - सर्वतीर्थ स्वरूप। हरि - पाप ताप को हरने वाले। श्यामांग - श्याम विग्रह वाले। सुंदर - परम मनोहर। शूर - अनुपम शौर्य से संपन्न वीर। पीतवासा - पीतांबरधारी। धनुर्धर -- धनुष धारण करने वाले। सर्वयज्ञाधिप - संपूर्ण यज्ञों के स्वामी यज्ञ - यज्ञस्वरूप जरामरण वर्जित - बुढ़ापा और मृत्यु से रहित। शिवलिंग प्रतिष्ठाता - रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग की स्थापना करने वाले। सर्वाधगण वर्जित - समस्त पाप राशि से रहित। परमात्मा - परमश्रेष्ठ, नित्य शुद्ध, बुद्ध मुक्तस्वभाव। परब्रह्म - सर्वोत्कृष्ट, सर्वव्यापी एवं सर्वाधिष्ठान परमेश्वर। सच्चिदानन्द विग्रह - सत चित और आनन्द ही जिनके स्वरूप का निर्देश कराने वाला है, ऐसे परमात्मा अथवा सच्चिदानन्दमय दिव्य विग्रह। परम ज्योति - परम प्रकाशमय, परम ज्ञानमय। परम धाम - सर्वोत्कृष्ट तेज अथवा साकेत धाम स्वरूप। पराकाश - त्रिपाद विभूति में स्थित परव्योम नामक बैकुण्ठधाम रूप, महाकाशस्वरूप ब्रह्म। परात्पर - पर-इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि से भी परे परमेश्वर। परेश - सर्वोत्कृष्ट शासक। पारग - सबको पार लगाने वाले अथवा मायामय जगत् की सीमा से बाहर रहने वाले। पार - सबसे परे विद्यमान अथवा भवसागर से पार जाने की इच्छा रखने वाले प्राणियों के प्राप्तव्य परमात्मा। सर्वभूतात्मक - सर्वभूतस्वरूप। शिव - परम कल्याणमय।