राम नाम तुलसीदास की नजर में आचार्य डाॅ. लक्ष्मी नारायण शर्मा ‘मयंक राम नाम मनि दीप धर, जीह देहरि दुआर। तुलसी भीतर बाहरहु, जो चाहसि उजियार।। राम’ शब्द महामंत्र है। यह केवल दशरथ नंदन कौशल्या तनय का ही नाम नहीं है। यह तो समस्त ब्रह्मांड के नियंता, सब देवों के देव आदि शक्ति एवं सृष्टिकर्ता का नाम है जो संत कवि तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के अनुसार निर्गुण होते हुए भी प्रेम एवं भक्ति के कारण मर्यादा पुरुषोŸाम राम के रूप में दशरथ कौशल्या के यहां अवरित हुए हैं- व्यापक ब्रह्म निरंजन, निरगुन विगत विनोद। सोइ अज प्रेम भगति वस, कौशल्या की गोद।। उस परमसŸाा के मनुष्य रूप में अवतरित होने का मुख्य कारण प्रेम भक्ति है। राम शब्द सभी धर्मों का मूल है। कलियुग में मनुष्य की उम्र इतनी कम रह गई है कि वह यज्ञ, जप, तप आदि नहीं कर सकता है। ऐसे में राम का नाम लेने मात्र से इन सब का फल मिल जाता है। यह कलि काल न साधन दूजा। योग, यज्ञ, तप, व्रत हरि पूजा। रामहिं गायहि सुमिरिहि रामहिं। सतत सुनहि रामगुन ग्रामहिं।। जो लोग कलिकाल में श्रीराम नाम का आश्रय लेते हैं, उन्हें कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुंचाता। तुलसी ‘रा’ के कहत ही, निकसत पाप पहार। पुन आवन पावत नहीं, देत मकार किवार।। राम बोलते समय ‘रा’ कहते ही हमारा मुंह खुलता है और हमारे अंदर स्थित पाप निकल जाते हैं। ‘म’ का उच्चारण करते ही मुंह बंद हो जाता है और पाप पुनः प्रवेश नहीं कर पाते हैं। यह सही है कि जिस मनुष्य के पूर्व जन्म के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं उसी का रामायण के प्रति अर्थात् राम के गुणगान के प्रति अधिक प्रेम होता है। पुरार्जितानि पापानि नाशमायन्ति यस्य वै। रामायणे महाप्रीति तस्य व ै भवति धुव्र म।् । रामायण के महत्व के बारे में बताया गया है कथा रामायणस्यापि नित्यं भवति यद्गृहे। तद्गृहे तीर्थ रूपं हि दुष्टानां पाप नाशनम्।। जिस घर में प्रतिदिन रामायण की कथा होती है वह तीर्थ रूप हो जाता है। वहां दुष्टों के पाप का नाश होता है। कितनी अनूठी महिमा है राम नाम की। विधाता ने हमें यह मनुष्य तन दिया है ताकि हम राम नाम जप कर मोक्ष पा सकें, राम की भक्ति पा सकें। सगुन उपासक मोक्ष न लेई। ता कहिं राम भगति निज देई।। यदि आप निर्गुण राम को भजते हैं तो मोक्ष पाते हैं। तभी तो निर्गुण उपासकों के राम घट-घट वासी हैं। कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े वन माहिं। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनियां देखे नाहिं।। संत कबीर कहते हैं। निर्गुण राम जपहु रे भाई, अविगत की गत लखी न जाई।। घट-घट वासी राम की व्यापकता को स्वीकारते हुए संत कवि तुलसीदास जी कहते हैं - सियाराम मय सब जग जानी। करहुं प्रणाम जोर जुग पानी।। तुलसीदास जी के लिए सगुण और निर्गुण के भेद व्यर्थ हैं। कहते हैं - जो गुन रहित सगुन सोइ कैसे। जलु हिम उपल विलग नहिं जैसे।। अर्थात् जिस प्रकार बर्फ और पानी एक ही है, उसी प्रकार सगुण और निर्गुण एक ही है। ब्रह्म राम तें नामु बड़, बरदायक बरदानि। रामायण सत कोटि महं, लिय महेश जियं जानि।। व्यक्ति चाहे सगुण राम का नाम ले चाहे निर्गुण राम का दोनों में ही त्याग, समर्पण, प्रेम, भक्ति आवश्यक है। कबीर की बानी देखिए- कबिरा कूता राम का मुतिया मेरा नाउं।। गले राम की जेवरी जित खींचे उत जाउं।। तुलसीदास जी इससे और आगे बढ़ जाते हैं। राम के प्रति उनका समर्पण देखिए- तुलसी जाके मुखन ते, धोखेहु निकसे राम। ताके पग की पानहीं, मेरे तन की चाम।। संत कवि तुलसीदास ने राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी महाराज एवं शिव कृपा से राम गुणगान करते हुए लोकहित के लिए अमर ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की। वह जीवन भर प्रभु राम का गुणगान करते रहे और राम की कृपा से लगभग 126 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण किया। लोकहित के लिए लोक भाषा में रामायण रचने का आदेश तुलसीदास जी को भगवान शिव ने ही तो दिया था। तुलसीदास जी रामायण की रचना संस्कृत में करना चाहते थे लेकिन भगवान शिव ने सपने में आदेश दिया- शिव भाखेउ, भाषा में काव्य रचो, सुर वाणि के पीछे न तात पचो। सबको हित होइ, सोइ करिये, अरु पूर्व प्रथा मत आचरिये।। वर्णन मिलता है कि महाप्रयाण के समय उन्होंने अपने भक्तों को यह संकेत दे दिया था कि अब वह इस देह को त्यागना चाहते हैं- राम नाम यश बरनि कैं, भयो चहत अब मौन। तुलसी के मुख डारिबो, अब ही तुलसी सौन।। अपने भक्तों के आग्रह पर उन्होंने अंतिम समय में सभी को राम नाम लेने की सलाह दी- अलप तो अवधि जीव, तामें बहुसोच पोच। करिबे को बहुत है, काह काह कीजिए।। पार न पुरानहू को, वेदहू को अंत नाहि। वानी तो अनेक, चिŸा कहां-कहां दीजिये।। काव्य की कला अनंत, छंद को प्रबंध बहु। राग तो रसीले, रस कहां-कहां पीजिए।। लाखन में एक बात, तुलसी बताये जात। जनम जो सुधार चहौ, राम नाम लीजिये।। जप, तप, पूजा, पाठ, दान, यज्ञ, ध्यान, साधना समाधि सभी को राम को अर्पित कर दीजिए, सफल होगा मानव जन्म। सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य उस परम सŸाा की कृपा पाना ही है। उस सŸाा को हम अल्लाह, ईसा, रहीम, अकाल पुरुष किसी भी नाम से पुकारें वह तो सभी में रमने वाला राम है। हम सब का नियंता है। हम सब उसी के अंश हैं और अंत में उसी में मिल जाना चाहते हैं। हमें उसे कभी नहीं भूलना चाहिए। संसार में कर्म करते हुए उसी को ध्यान में रखना चाहिए। यदि हम भौतिक सुख संपदा चाहते हैं, तो वह भी वही दे सकता है । यदि शरीर को किसी तरह का कष्ट हो, तो उसी को याद करें उसी को, उसी से क्षमा मांगें कहें- प्रभु ! हमसे कोई अपराध हुआ है। किंतु इतना कठोर दंड न दें। वह तो दीन बंधु है, आपकी पुकार अवश्य सुनेगा। बस संकल्प लें, उसे कभी नहीं भूलेंगे, वह करुणा निधान आपकी सहायता के लिए दौड़ा आएगा। कारण ‘राम’ शब्द तो- मंत्र महामणि विषम ब्याल के। मैटत कठिन कुअंक भाल के।। राम राम राम राम, मन मंदिर राम बसें। जीवन में रमें राम, राम बोल लीजिये।। राम राम नाम से, पाहन सागर में तरे। राम नाम नाव में, भव को पार कीजिये।। रसना पै राख नित, राम नाम पावन को।। राम की उछंग बैठ, भाग्य लिख लीजिये।। राम राम राम राम, राम राम राम राम। आठों याम नाम का, ‘मयंक’ रस पीजिये।।