सूर्य पुत्र शनि हमारे सौर मंडल में सूर्य से सबसे दूर स्थित ग्रह है। इस कारण वह कृष्ण वर्ण, ऊर्जा रहित और शीत प्रकृति ग्रह है। उसकी दृष्टि अशुभ फलदायी होती है। इस बारे में पौराणिक कथा के अनुसार पुत्र जन्म सुनकर सूर्य देव देखने के लिए अपने रथ पर सवार होकर गये। बड़ा पुरस्कार मिलने की लालसा में साथी आगे चला। शनि की सारथी पर दृष्टि पड़ते ही वह अपंग हो गया, जिस पर सूर्य ने तुरंत ही पुत्र को टांग से पकड़ कर उसे ब्रह्मांड में फेंक दिया। यह कथा पिता पुत्र की शत्रुता के कारण पर भी प्रकाश डालती है।
अपने नैसर्गिक गुणों के अनुसार शनि शीत प्रदत्त, दीर्घकालीन व कष्टकारी रोग, एक्सीडेंट, अवरोध, अवसाद और दरिद्रता का कारक है। इस कारण उसे परम अशुभ ग्रह माना गया है। वह एक राशि का गोचर ढाई साल में पूरा करता है। उसकी विंशोत्तरी दशा 19 साल की होती है। वह स्वयं स्थित राशि को स्थिरता प्रदान करता है, परंतु वहां से 3, 7, 10 भाव पर अशुभ दृष्टि डालता है, जिससे व्यक्तियों को लंबे समय तक कष्ट भोगना पड़ता है। वह कुंडली के 3, 6, 11 भाव में स्थित होने पर शुभ फल देता है और गोचर में चंद्र राशि से 3, 6, 11 भाव में शुभ फल देता है। शनि मकर व कुंभ राशि में स्वक्षेत्री, तुला राशि में उच्च व मेष राशि में नीच का होता है। वह वृष और तुला राशि के लिए योगकारक होकर अति शुभ फल देता है। चंद्रमा को ‘मन’ का कारक माना गया है।
मनश्चंद्रः, शनि के चंद्रमा से 12वें भाव, चंद्रमा के ऊपर से, तथा चंद्रमा से दूसरे भाव में गोचर करते समय मन को अति विचलित करता है। इस साढ़े 7 साल के समय को साढ़ेसाती कहते हैं। शनि का चंद्रमा से चतुर्थ में (ढाई वर्ष) गोचर ‘कंटक शनि’ और चंद्रमा से अष्टम भाव में गोचर को ‘अष्टक शनि’ कहते हैं। उपरोक्त समय सब प्रकार से कष्टकारी सिद्ध होते हैं। जीवन में साढ़ेसाती अधिकतम् तीन बार आ सकती है। तीसरी साढ़ेसाती वृद्धावस्था में जीवन का अंत कर देती है।
वर्तमान में गोचर करते हुए शनि ग्रह ने 26-1-2017 को वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश किया, फिर वक्री होकर 26-6-2017 को पुनः वृश्चिक राशि में आ गया था। 28-8-2018 को वह वक्री होकर सीधे चलते हुए अंततोगत्वा 26-10-2018 को धनु राशि में प्रवेश कर उत्तरोत्तर आगे बढ़ता जायेगा। धनु राशि में शनि का गोचर कर्क (चंद्र) राशि में जन्मे व्यक्तियों, तुला राशि तथा कुंभ राशि वाले व्यक्तियों के लिए शुभ फलदायी होगा। परंतु मकर राशि में जन्मे व्यक्तियों की साढ़ेसाती, कन्या राशि वालों का कंटक शनि और वृष राशि वालों के लिए अष्टम शनि अशुभ फलदायी और कष्टकारी होगा।
शनि के 18-4-2018 से 6-9-2018 तक वक्री रहने के समय अशुभ फलों और कष्टों में वृद्धि होगी। ज्ञातव्य है कि शनि स्वयं सात्विक व धार्मिक ग्रह है, जिससे प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने उन्हें प्राणियों के कर्मफल का निर्णायक बनाया था। अतः शनि ईमानदार और धार्मिक आचरण वाले व्यक्तियों को अधिक कष्ट नहीं देता। वह अपना फल दशा और गोचर के समय देता है। शनि प्रदत कष्टों को सहनशील बनाने के लिए व्यक्ति को सर्वप्रथम मांस मदिरा के सेवन का पूर्ण त्याग कर सात्विक भोजन लेना चाहिए। सूर्यास्त के बाद पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर रूद्राक्ष माला पर एक से तीन माला ‘‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’’ मंत्र का जप करना चाहिए।
शनिवार को शनि मंदिर में मूर्ति का तैलाभिषेक और एक दीपक प्रज्ज्वलित कर वहीं मंत्र जप करना चाहिए। अंत में मंदिर के सामने बैठे कोढ़ी व अपंग भिखारियों को 4-5 उड़द की दाल के बड़े खाने को देना चाहिए। पैसे न दें। सुबह जागने पर निम्न श्लोक का 11 बार पाठ विशेष लाभकारी होता है: ऊँ कोणस्थ पिंगलो वभ्रू कृष्णो रोदांतको यमः, सौरि शनैश्चरो मन्दः पिपलादेन संस्तुतः। ऐतानि दशनाभानि प्रातःउत्याय या पठेत, शनैश्चर कृत पीड़ा कदाचित न भविष्यति।।