राहुल गांधी लग्न भाव: मिथुन ‘द्विस्वभाव’ लग्न है। लग्न शुभ कर्तरी योग में है, परन्तु लग्नेष द्वादष भाव में पाप कर्तरी योग में तृतीयेष सूर्य और षष्ठेष व एकादषेष मंगल लग्न में होने से अकारण व असमय रोष देता है। केन्द्र में कोई शुभ ग्रह नहीं है।
निष्कर्षः लग्न शुभ प्रभाव रहित होने से जीवन में सुख सुविधा तो प्राप्त होगी परन्तु उच्चस्तरीय सफलता नहीं मिलेगी।
द्वितीय भाव: पंचमेष शुक्र शुभ कर्क राषि द्वितीय भाव में सुखी जीवन देता है। जातक सुन्दर मृदुभाषी और अच्छे भोजन का शौकीन होता है। द्वितीयेष चन्द्रमा अपनी राषि से पंचम, परंतु नीचस्थ है। उस पर लग्नेष बुध की दृष्टि है। अतः भाषा ओजस्वी और प्रभावी नहीं है।
निष्कर्ष: पारिवारिक स्थिति से जीवन सुखी रहेगा।
चतुर्थ भाव: चतुर्थ भाव में कोई ग्रह नहीं है। चतुर्थेष बुध द्वादष भाव में, चतुर्थ पाप कर्तरी योग में है। भाव का कारक चन्द्रमा षष्ठ भाव में नीचस्थ है। दोनों परस्पर दृष्टिपात कर रहे हैं, जो शुभ नहीं है।
निष्कर्ष: माता को वैधव्य का दुख मिला। नीच चन्द्रमा दषा और साढ़ेसाती के कारण माता का स्वास्थ्य अभी खराब चल रहा है।
पंचम भाव: बृहस्पति (व) तुला राषि में पंचम भाव में है। उस पर बृहस्पति कारको भाव नाषाय दोष से पीड़ित है।
निष्कर्ष: षिक्षा किसी प्रकार पूरी हुई परन्तु उसका उपयोग नहीं हुआ। विवाह भी नहीं हुआ है।
सप्तम भाव: लग्न व चन्द्र से मंगल दोष है। सप्तम भाव पर केतु की भी दृष्टि है। सप्तमेष बृहस्पति नीच राषि से दृष्ट है।
निष्कर्ष: विवाह में बाधा है।
अष्टम भाव: अष्टम भाव में कोई ग्रह नहीं है।
शनि अपनी मकर राषि पर दृष्टिपात कर रहा है। अष्टम भाव पर मंगल और शुक्र की दृष्टि है।
निष्कर्ष: दीर्घ आयु होगी। चोटी की आषंका रहेगी।
नवम भाव: नवम में राहु अपने नक्षत्र में है। उस पर बाधक व बक्री बृहस्पति की दृष्टि है। नवमेष शनि एकादष भाव में नीचस्थ है। अतः भाग्योदय और मनोकामना पूर्ति में बाधा है।
निष्कर्ष: भाग्य सहायक नहीं है।
दषम भाव: दषम में कोई ग्रह नहीं है और उस पर कोई शुभ दृष्टि नहीं है। दषम भाव पापकर्तरी योग में है। दषमांष में लग्नेष बुध राहु के साथ है। दषम में स्थिति शुक्र पर बृहस्पति, मंगल और शनि की दृष्टि है।
निष्कर्ष: सफलता, लाभ और मनोकामना पूर्ति में अवरोध है।
द्वादष भाव: लग्नेष बुध द्वादष भाव में है। उसपर नीचस्थ चन्द्रमा की दृष्टि है। दषम भाव पापकर्तरी योग में है। यह शुभकारी नहीं है।
निष्कर्ष: ग्रह स्थिति शुभ फलदायी नहीं है। दषा, भुक्ति तथा शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव शनि की साढ़ेसाती प्रथम चरण में 4-8-2012 से 2-11-2014 तक ‘चांदी पाये’ चल रही है। नीचस्थ चन्द्रमा की दषा में बुध भुक्ति 29.01.2013 से 30.06.2015 तक केतु भुक्ति रहेगा। अतः सफलता में अवरोध व निराषा का समय है। स्वयं और माता के स्वास्थ्य पर विषेष ध्यान देने की आवष्यकता है।