केतु और उच्च शनि की दृष्टि है। केतु की द्वादश (मोक्ष) भाव पर भी दृष्टि है। शनि अष्टम (गुप्त विद्या) भाव में उच्चस्थ होकर पंचम भाव स्थित उच्च ज्ञानकारक बृहस्पति पर दृष्टिपात कर रहा है। नवमांश में चंद्र व शनि की युति गहरी साधना, तप तथा ध्यान दर्शाती है। पंचम भाव तथा भावेश उत्तम स्थिति में होने पर व्यक्ति को साधना द्वारा अपने इष्ट देव का साक्षात्कार प्राप्त होता है। मां आनंदमयी को भी देवी माता का साक्षात दर्शन प्राप्त हुआ था।