भारतीय ज्योतिष में मान, सम्मान, समृद्धि कारक योगों में ‘गजकेसरी योग’ का विशिष्ट स्थान है। यह योग बृहस्पति और चंद्रमा की परस्पर केंद्र स्थिति से बनता है (केंद्र स्थिते देवगुरौ) मृगांकात योस्तदाहुगर्जकेसरीति। जातक परिजात, ;टप्प्ए प्प्6 द्ध लगभग 30 प्रतिशत कुंडलियों में यह योग पाया जाता है। बृहस्पति सर्वोत्तम शुभ कारक ग्रह है। वह मान, सम्मान, दया, तप, पुत्र, ज्ञान, धर्म, उच्च पद्वी और समृद्धि का कारक है, और भचक्र में धनु (नवम धर्म) और मीन (द्वादश, मोक्ष) राशि का स्वामी है। वहीं चंद्रमा बुद्धि, भावुकता, दया, धन, सुख,माता, लावण्य और प्रसन्नता का कारक है। भचक्र में वह कर्क राशि का स्वामी है जो धर्म त्रिकोण (4, 8, 12) राशि है। भारतीय ज्योतिष में चंद्र राशि को भी लग्न के समान महत्व प्राप्त है।
केंद्र स्थित ग्रह लग्न पर अपना विशिष्ट प्रभाव डालते हैं। अतः बृहस्पति ग्रह की चंद्रमा से केंद्र में स्थिति चंद्रमा और चंद्र लग्न पर अपने शुभ प्रभाव से उसके कार्यकत्व को बल प्रदान करता है। यही ‘गजकेसरी योग’ के शुभ प्रभाव का स्रोत है। उसके फलादेश के बारे में जातक परिजात (अ. टप्प्ए प्प्6द्ध । में कहा गया है। गजकेसरी संजातस्तेजस्वी धनधान्यवान। मेधावी गुणसंपन्नो राजप्रिय करो भवेत।। अर्थात् ‘‘गजकेसरी योग में जन्मा व्यक्ति तेजस्वी, धनवान, बुद्धिमान, सत्कर्मी और राजप्रिय कर्म करता है।’’ वहीं ‘फलदीपिका’ ग्रंथ (अ. 6.16) के अनुसार। केसरीव रिपुवर्ग निहन्ता प्रौढ़वाक् सदसि राजसवृत्तिः दीर्घजीव्यतियशाः पटुर्बुद्धिस्तेजसा जयति केसरियोगे।।
अर्थात् ‘‘केसरी या गजकेसरी योग में जन्मा व्यक्ति शेर की तरह शत्रुओं को नष्ट करने वाला, सब पर छा जाने वाला, कुशल वक्ता, परिपक्व वाणी, सभाओं में राजसी मान पाने वाला, दीर्घायु, यशस्वी, चतुरबुद्धि व तेजस्वी होता है।’’ गजकेसरी योग की जन्म-कुंडली में स्थिति व्यक्ति के पूर्वजन्म में किये पुण्य कर्मों को दर्शाती है, जिसके फलस्वरूप जातक इस जन्म में अपने कर्मों द्वारा सभी कठिनाइयों पर विजय पाते हुए जीवन में उच्च पदासीन होता है। इस योग का फलादेश बृहस्पति और चंद्रमा के बल, राशि व भाव स्थिति तथा अन्य ग्रहों के प्रभाव के अनुरूप होता है। अतः सभी व्यक्तियों की कुंडली में यह योग विभिन्न फल - ‘बहुत अच्छा’ ‘अच्छा’ या ‘साधारण’ देता है। यह फलादेश जातक को इन ग्रहों की दशा भुक्ति में प्राप्त होता है। उस समय बृहस्पति का शुभ गोचर फलादेश में वृद्धि करता है, जबकि पापी ग्रहों का अशुभ गोचर फलादेश में न्यूनता लाता है। द्वादश लग्नों में बृहस्पति और चंद्रमा के भाव स्वामित्व अनुसार शुभ भावों (केंद्र/त्रिकोण) में बना योग वृश्चिक लग्न में सर्वोत्तम, उसके बाद मीन तथा कर्क लग्न में शुभ फलदायक होता है। अन्य लग्नों में इस योग का फल साधारण ही मिलता है।
उत्तम फल प्राप्ति के लिये लग्न और लग्नेश को भी बलवान होना चाहिए। विशिष्ट शुभ फल और साधारण फल दर्शाती, कुंडलियां प्रस्तुत हैं। लग्नेश बुध लग्न में ‘भद्र’ नामक पंचमहापुरूष येाग बना रहा है। द्वितीयेश चंद्रमा और दशमेश बृहस्पति नवम भाव में गजकेसरी योग बना रहे हैं। बृहस्पति की लग्न व लग्नेश पर दृष्टि है। दशमेश बृहस्पति और नवमेश शनि में दृष्टि विनिमय है। नवमांश में तृतीय भाव में बृहस्पति वर्गोत्तम है और चंद्रमा षष्ठ भाव में उच्च स्थित होकर वहां भी गजकेसरी योग बना रहे हैं। जातिका ने शनि दशा-बृहस्पति भुक्ति में ट्यूशन करके जीवन यापन शुरू किया, बुध की दशा में स्कूल खोला जो सीनियर सेकेंडरी स्कूल बना। अब जातिका ने एक इंजीनियरिंग कालेज भी इंदौर में स्थापित कर लिया है। इसके विपरीत साधारण गजकेसरी योग फल दर्शाती दूसरी कुंडली प्रस्तुत है। लग्नेश मंगल नवम् भाव में नीचस्थ और सूर्य से अस्त है।
चतुर्थेश शनि और सप्तमेश शुक्र भी नीचस्थ है। द्वितीयेश व पंचमेश बृहस्पति और नवमेश चंद्रमा द्वादश भाव में गजकेसरी योग बना रहे हैं। उन पर नीचस्थ शनि, मंगल तथा राहु की दृष्टि है। गजकेसरी योग का फल नहीं के बराबर रहा। जातक एक छोटी कपड़े की दुकान चला रहा है। पिछले साढ़े चार साल से साढे़साती भी चल रही है। लेखक के पिछले दशक के कुंडली आकलन में एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है। स्वास्थ्य के परिप्रेक्ष्य में बृहस्पति कफ प्रधान, चर्बी का कारक तथा बड़ा शरीर देने वाला ग्रह है। वहीं चंद्रमा मोटापे की प्रवृत्ति तथा वातकफात्मक ग्रह है। कुंडली में बृहस्पति तथा चंद्रमा की नीचस्थ या पीड़ित स्थिति इन प्रवृत्तियों को बढ़ाती है। ऐसा ‘गजकेसरी योग’ शुभ फल देने की बजाय जातक को बीमारी और हानिकारक वजन बढ़ाता है। लेखक के संज्ञान में आईं कुंडलियों में से कुछ इस प्रकार है।
लग्नेश बुध अष्टम में है। चंद्रमा नीचस्थ तृतीय भाव में वक्री बृहस्पति के साथ (अष्टम से अष्टम) तृतीय भाव में है। तृतीय भाव पाप मध्य में है। जातक का वजन सौ किलो है और वह डायबेटिक है। 15/11/2011 से साढ़ेसाती चल रही है।
2. वक्री बृहस्पति लग्न में राहु से पीड़ित है। चंद्रमा दशम भाव में दिग्बलहीन है। मंगल व केतु भी अशुभ दृष्टि डाल रहे हैं। मंगल व केतु पर शनि की दृष्टि है। जातक पेट और सिरदर्द से पीड़ित है। उसका वजन 75 किलो है।
3. वक्री बृहस्पति और चंद्रमा सप्तम भाव में है। उनपर वक्री शनि व वक्री मंगल की दृष्टि है। अतः गजकेसरी योग दूषित है। जातक पेट, दांत और स्नायु रोग से पीड़ित है। उसका वजन 74 किलो है।