4 नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा): कार्तिक पूर्णिमा परम पुनीत पवित्र तिथि मानी जाती है। इस दिन अगर कृत्तिका, भरणी, रोहिणी नक्षत्र हो तो इसका विशेष महत्व बढ़ जाता है। इस दिन पूर्णिमा के साथ भरणी नक्षत्र का संयोग होने से इस दिन पूर्णिमा का अत्यंत शुभ महत्व रहेगा। इस दिन स्वर्ण दान, अन्न दान, शैय्या दान करने से अनन्त पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
7 नवंबर (काल भैरव अष्टमी व्रत) ः मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को काल भैरव अष्टमी का व्रत किया जाता है। भैरवजी का यथासंभव विधि से पंचोपचार षोडशोपचार पूजन करके रात्रि जागरण करके शिवजी की कथा सुनें। इस व्रत में मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी लेनी चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति शिव साम्राज्य को प्राप्त करता है। जीवन में अमंगलों से रक्षा होती है तथा जीवन में सुखानुभूति का अनुभव होता है।
25 नवंबर (मित्र सप्तमी व्रत): मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को मित्र सप्तमी का व्रत किया जाता है। व्रत के दिन सूर्य नारायण का षोडशोपचार पूजन करें। सप्तमी को फलाहार करें, अष्टमी को ब्राह्मणों को भोजन कराके तत्पश्चात मीठा भोजन करें। इस व्रत को करने से आयु आरोग्य, धन, यश की प्राप्ति होती है।
30 नवंबर (मोक्षदा एकादशी व्रत, गीता जयंती): मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को मोक्षदा एकादशी का व्रत किया जाता है। यह एकादशी मोह का नाश करनेवाली है। इसलिए इसका नाम मोक्षदा है। इस दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। गीता का पाठ अथवा स्वाध्याय करने से जन्म जन्मांतर के पापों का क्षय होता है।