जन्म कुंडली का सप्तम भाव मूलतः विवाह से संबंधित है। अन्य भाव हैं - द्वितीय भाव (धन और परिवार) चतुर्थ भाव (सुख शांति), पंचम भाव (संतान), अष्टम भाव (मांगल्य) तथा द्वादश भाव (शैय्या सुख)। इन भाव तथा भावेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव, अशुभ ग्रहों का दुष्प्रभाव, जातक के वैवाहिक जीवन पर प्रभाव डालता है। बृहस्पति, शुक्र, निष्कलंक बुध तथा पक्षबली चंद्रमा को नैसर्गिक शुभ ग्रह और सूर्य को क्रूर ग्रह माना गया है।
परंतु शुभ ग्रह भी जन्म कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भाव में स्थित होने पर अशुभ फल देते हैं। अन्य पापी ग्रहों की अपेक्षा अपने उग्र, क्रूर, लड़ाकू और क्रोधी स्वभाव के कारण मंगल ग्रह की विवाह और उससे संबंधित भावों में स्थिति अथवा उन पर दुष्प्रभाव से विवाहोपरांत पारिवारिक क्लेश व दुःख से लेकर पति अथवा पत्नी की मृत्यु तक संभव हो सकती है। ऐसी स्थिति को ‘मंगल दोष’ की संज्ञा दी जाती है। चतुर्थ, सप्तम और अष्टम भाव में मंगल की स्थिति से बना ‘मंगल दोष’ सर्वाधिक अनिष्टकारी होता है।
अतः ‘अष्टकूट मिलान’ के समय 36 गुणों में अधिक से अधिक गुण मिलने के अतिरिक्त मंगल दोष साम्य होना परम आवश्यक माना गया है।
‘मंगल दोष का प्रभाव लग्न से 100 प्रतिशत चंद्रमा से 50 प्रतिशत तथा शुक्र से 25 प्रतिशत होता है। दोष साम्य विचार तीनों प्रकार से करना चाहिए। ‘मंगल दोष’ का मूल स्रोत प्राचीनतम ज्योतिष ग्रंथ बृहत् पराशर होरा शास्त्र (अ.82) में इस प्रकार मिलता है। लग्न व्यये सुखे वाऽपि सप्तमे वा अष्टमे कुजे। शुभ दृगयोग हीन च यतिं हन्ति न संशयः।। अर्थात्, ‘‘यदि मंगल बिना शुभ प्रभाव के प्रथम, द्वादश चतुर्थ, सप्तम अथवा अष्टम भाव में (स्त्री की कुंडली में) हो तो उसके पति की अवश्य ही मृत्यु होती है।’’ अगले श्लोक में वे कहते हैं:
यस्मिन् योगे समुत्पन्ना पति हन्ति कुमारिका। तस्मिन् योगे समुत्पन्नो पत्नी हन्ति नरोऽपि च।। अर्थात् ‘’जिस ग्रह योग में स्त्री के पति की मृत्यु होती है, पुरुष की कुंडली में वही योग होने पर उसकी पत्नी की मृत्यु होती है।’’ महर्षि पराशर के अनुसार ‘मंगल दोष’ स्त्री और पुरुष की कुंडली में समान रूप से प्रभावी होता है। ऐसे मंगल पर शुभ प्रभाव न होने से पति/पत्नी की मृत्यु हो जाती है। ‘मंगल दोष’ परिहार के संबंध में मार्गदर्शन करते हुए महर्षि पराशर कहते हैं:
स्त्री हन्ता परणीता चेत् पति हन्त्री कुमारिका। तदा वैधव्ययोग भंणो भवति निश्चयात्।। अर्थात् ‘‘यदि विधुर योग वाले व्यक्ति का वैधव्य योग वाली स्त्री से विवाह किया जाय तो निश्चय ही यह योग भंग होता है।’’ अर्थात् पति/पत्नी किसी की भी मृत्यु नहीं होती। यहां यह समझना आवश्यक है कि दोनों कुंडलियों में दोष साम्य होने पर पति अथवा पत्नी की मृत्यु नहीं होती है। परंतु सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए स्त्री की कुंडली में पति कारक बृहस्पति तथा पति की कुंडली में पत्नी कारक शुक्र का बलवान होना तथा सप्तम भाव (विवाह व दाम्पत्य सुख) तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव (युक्ति का दृष्टि) होना वांछित होता है।
दक्षिण भारत में मंगल की द्वितीय भाव में स्थिति भी ‘मंगल दोष’ का निर्माण करती है। यद्यपि महर्षि पराशर ने केवल एक ही स्थिति में ‘मंगल दोष’ का निष्क्रिय होना बताया है, परंतु बाद के ‘मुहूर्त ग्रंथों’ ने इस दोष परिहार के अनेक सूत्र बताए हैं।’’
जैसे -
1. मंगल कर्क और सिंह लग्न के लिए योग कारक होने से मंगल दोष नहीं रहता।
2. मंगल अपनी राशि (मेष व वृश्चिक), उच्च राशि (मकर) तथा धनु, कुंभ और मीन राशि में स्थित होने पर अशुभकारी नहीं होता।
3. अधिक ‘गुण मिलान’ होने पर अशुभकारी ‘मंगल दोष’ निष्क्रिय हो जाता है।
4. मंगल के राहु या शनि के साथ होने पर मंगल दोष नष्ट होता है तथा ‘’मंगल दोष’’ 28 वर्ष तक तथा मंगल दशा में, विशेष प्रभावी होता है। परंतु यह सूत्र अनुभव में खरे नहीं उतरते। ‘मंगल दोष’ जीवन में कभी भी प्रभाव दिखा सकता है।
इस संदर्भ में भगवान श्रीराम की कुंडली का अवलोकन करें। उनका कर्क लग्न है और उसमें बृहस्पति और चंद्र स्थित हैं तथा सप्तम भाव में योग कारक मंगल स्थित है। उस पर राहु की पंचम दृष्टि है। ‘मंगल दोष’ ने प्रभाव दिखाया। पहले बनवास के कारण दाम्पत्य सुख बाधित हुआ और अयोध्या वापिस लौटने पर धोबी की टिप्पणी सुनकर पत्नी का परित्याग कर दिया।
श्रीमती मेनका गांधी की भी कर्क लग्न की कुंडली में अष्टम भाव (कुंभ राशि) में स्थित मंगल के प्रबल ‘मंगल दोष’ प्रभावस्वरूप वह 24 वर्ष की आयु में ही, शुक्र दशा-बुध भुक्ति (जुलाई 1980) में वैधव्य को प्राप्त हुईं। मंगल दशा उनके जीवन में जून 1999 से जून 2006 तक आयी। इसी प्रकार श्रीमती सोनिया गांधी की कुंडली भी कर्क लग्न की है।
मंगल उनकी चंद्र राशि से सप्तम भाव (धनु राशि) में है। मंगल दोष का प्रभाव 44 वर्ष की आयु में शनि दशा राहु भुक्ति (मई 1991) में घटित हुआ और उनके पति श्री राजीव गांधी की हत्या हो गई। लेखक के पास साधारण स्तर के जातक/जातिकाओं पर मंगल दोष का विभिन्न आयु में अनिष्टकारी फल दर्शाती अनेक कुंडलियों का संग्रह है।
साथ ही इस भ्रांति को भी दूर करना आवश्यक है कि शनि व राहु की मंगल पर दृष्टि व युति ‘मंगल दोष’ को नष्ट करती है। वास्तव में यह स्थिति ‘करेला और नीम चढ़ा’ कहावत के अनुसार प्रबल अनिष्टकारी हो जाती है। सर्वविदित है कि मंगल-राहु की युति ‘अंगारक योग’ और मंगल, शनि की युति ‘द्वन्द्व योग’ नामक अनिष्टकारी योगों का निर्माण करती है। अतः महर्षि पराशर द्वारा प्रतिपादित मंगल दोष निवारण विधि का ही अनुसरण करना उपयुक्त है।
कुंडली के बारह भावों में से छह भाव (1, 2, 4, 7, 8, 12) में मंगल की स्थिति होने से आधी जनसंख्या ‘मंगल दोष’ से प्रभावित रहती है। अतः थोड़े से प्रयास से ‘मंगल दोष’ वाले वर/ कन्या को ‘मंगल दोष’ वाला सुयोग्य जीवन साथी मिल सकता है।
दोनों कुंडलियों में एक से भाव में मंगल स्थित होने पर भी भेद की स्थिति के कारण मंगल दोष में पूर्ण साम्य प्रायः नहीं होता।
अतः लग्न, चंद्र राशि तथा शुक्र से लगभग दोष साम्य होने तथा सप्तम भाव और सप्तमेश पर शुभ प्रभाव होने से विवाह सफल रहता है। परंतु एक ‘मंगल दोष’ वाले युवक या कन्या का बिना दोष वाले कन्या या युवक से विवाह करके उनके दाम्पत्य जीवन को कष्टकारी नहीं बनाना चाहिए।