हमारे समाज में अनेक परंपराएं चल रही हैं। अनेकों परंपराओं का अनुसरण हम केवल श्रद्धा के कारण करते रहते हैंजबकि परंपराओं का प्रारंभ शायद पूर्वजों द्वारा समाज की आवष्यकताओं की सुरक्षा के लिए किया गया। आइए जानते हैं कुछ परंपराओं व उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में ...
सूर्य को जल चढ़ाना
हमारे पूर्वजों ने सूर्योदय के समय हमें अघ्र्य देनेका परामर्श इसलिए दिया था, क्योंकि सूर्योदय से लगभग 45 मिनट तक सूर्य से निकलने वाली किरणें अल्ट्रा वायलेट (पराबैंगनी) रेडिएशन से मुक्त होती हैं। इन किरणों से रोग प्रतिरोधक क्षमता व शरीर में ओजस्विता व ऊर्जा की वृद्धि होती है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने सूर्य को जल चढ़ाने, सूर्यनमस्कार करने तथा सूर्य की सात प्रदक्षिणा करने व सूर्य के सामने गायत्री मंत्र का जप करने की परंपरा बनायी थी, ताकि हम सूर्योदय के समय की अधिक से अधिक किरणों को अपने अंदर ग्रहण कर सकें।
सूर्य ग्रहण में बाहर न निकलें
पूर्वजों के कथनानुसार सूर्य ग्रहण को सीधे देखने से पाप लगता है। देखना है तो पानी में छाया में देखना चाहिए। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि सूर्य ग्रहण के समय सूर्य की तरफ देखने से रेटीना खराब हो सकता है। अतः सूर्य ग्रहण को सीधे आंखों से कभी नहीं देखना चाहिए।
तांबे के बर्तन में रखा जल पीएं
तांबे के बर्तन में रखा जल पीने से जल में तांबे के गुण आ जाते हैं और इसे पीने से बैक्टीरिया मर जाते हैं और स्वास्थ्य लाभ होता है। तांबे का बर्तन उपलब्ध न होने की स्थिति में हमारे पूर्वज जल में सिक्के डालने के लिए कहते थे, क्योंकि उस समय सिक्के तांबे के ही बने होते थे। यदि जल को चार घण्टे अथवा उससे अधिक समय तक तांबे के बर्तन में रखा जाए तो उसमें ऐसा प्रभाव आ जाता है जिससे हमारे लीवर को शक्ति प्राप्त होती है।
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स्वास्थ्य लाभ के लिए गुड़ खाएं
गुड़ में रक्त को शुद्ध करने की क्षमता होती है। इसलिए जो लोग नालियां व सीवरेज साफ करते हैं उन्हें गुड़ खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि ऐसा करने पर संक्रामक कीटाणुओं के शरीर में प्रवेश करने पर होने वाले रक्त विकार की संभावना कम हो जाती है।
तिलक लगाना
तिलक लगाने से हमारे मस्तक के पिट्यूटरी ग्लैण्ड्ज़ क्रियान्वित होतेहैं। ऐसा करने से आलस्य दूर होता है तथा मेधा शक्ति बढ़ती है। चिन्ता व मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है और मस्तिष्क शान्त रहता है। योगी लोग मेडिटेशन आरम्भ करने से पहले मस्तक में त्रिपुण्ड लगाते हैं क्योंकि इसी स्थान पर आज्ञा चक्र में उपस्थित पिण्ड में जुड़ी सभी नाड़ियों का समूह होता है। ऐसा करने से मस्तिष्क शान्त रहता है तथा मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। नियमित रूप से तिलक लगाने पर नाड़ी मण्डल की परिशुद्ध सक्रियता से इन सोमनियाव साइनस जैसे रोग भी दूर होने लगते हैं।
पीपल पूजन
पीपल एक ऐसा वृक्ष है जो लगातार चैबीस घंटे यानी दिन-रात केवल आॅक्सीजन ही छोड़ता है। साथ ही एक पीपल का वृक्ष आॅक्सीजन उत्सर्जन में 600 अन्य वृक्षों के समान होता है। इसलिए यह पर्यावरण सुरक्षा के लिए उत्तम है। हमारे पूर्वजों ने पीपल की इन्हीं विलक्षणताओं के कारण संभवतः पीपल पूजा की बात कही ताकि हम पीपल का संरक्षण करें व अधिक से अधिक समय इसके आस-पास के सकारात्मक वातावरण में बिताएं ।
आभूषण पहनना
भारत में सुहागन औरतों के गहने पहनने की परंपरा है। शादी हो या कोई और शुभ काम सुहागन औरतों का गहनों से शृंगारित होना बहुत शुभ माना जाता है। चांदी के गहने पहनने से चांदी के गुण ब्लड तक पहुंच जाते हैं। इससे हाई ब्लड प्रेशर में राहत मिलती है और हड्डियां भी मजबूत रहती हैं। ये शरीर में होने वाले दर्द को भी दूर भगा देते हैं। ऐसा माना जाता है कि सोना उम्र को थाम देता है, बढ़ती उम्र के असर को कम कर देता है। इसमें एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं, जो कि रंग-रूप में निखार ला देते हैं।
दही शक्कर खाकर बाहर जाएं
भारत जैसे गर्म देश में दही ठंडक देता है व शक्कर ऊर्जादेता है। अतः पुराने समय में, जब अधिकांश कार्य हाथ पैरों से ही होते थे व एयर कंडीशनर नहीं थे, दही शक्कर का प्रचलन मनुष्य को कार्य के लिए ऊर्जावान रखता था एवं शरीर का तापमान ठीक रखता था
मंत्र जप व शंख ध्वनि
मंत्रोच्चारण हमारे अंदर स्पंदन पैदा करता है और हमारे व्यक्तित्व व बुद्धि का विकास करता है। पुराणों में शंख को लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है इसलिए पूजा-अर्चना व मांगलिक कार्यों पर शंख ध्वनि की विशेष महत्ता है। शंख के ऊर्जा चक्र व ध्वनि के प्रभाव से ईश्वर ध्यान में पुजारी को सर्प इत्यादि खतरनाक जीव बाधा नहीं पहुंचाते तथा बुरी आत्माएं दूर भागती हैं। साथ ही इसके अनेक सौभाग्यदायक, अनिष्ट शमन कारक व औषधीय गुण लोक प्रसिद्ध हैं। शंख ध्वनि कंपनों से वातावरण में रहने वाले सभी कीटाणु पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं। शंख बजाने से बजाने वाले के अंदर साहस, दृढ़ इच्छा शक्ति, आशा व शिक्षा जैसे गुणों का संचार होता है तथा श्वांस रोग, अस्थमा व फेफड़ों के रोगों में आराम मिलता है।
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शाम को झाडू न लगाएं
सूर्य छुपने पर रोशनी की कमी में कोई आवश्यक वस्तु न चली जाए, शायद इसीलिए शाम को झाडू लगाना मना था।
तुलसी को चबाएं नहीं
तुलसी को लक्ष्मी का अवतार मानकर चबाना मना किया गया है। वैज्ञानिक रूप में तुलसी में आर्सेनिक होता है जो दांतों पर बुरा असर डालता है। अतः इसको बिना चबाए खाना उत्तम बताया गया है।
रत्न प्रयोग
रत्नों में गुप्त शक्तियां, किरण पात व ऊर्जा होती है। रत्नों में अपने से संबंधित ग्रहों की रश्मियों, चुम्बकत्व शक्ति तथा स्पंदन को खींचने की शक्ति के साथ-साथ उसे परावर्तित कर देने की भी शक्ति होती है। रत्न ग्रहों से आ रही किरणों को आत्मसात करने में सक्षम हैं एवं ग्रहों से आ रही किरणों के साथ अनुनाद ;तमेवदंदबमद्ध स्थापित कर, शरीर में किरणों के प्रवाह को बढ़ाते हैं। रत्न की इसी शक्ति के उपयोग के लिए इन्हें प्रयोग में लाया जाता है।
अंतिम संस्कार के पश्चात नहाएं
यदि किसी प्राणी को कोई संक्रामक रोग हो तो उसके कीटाणु अंतिम संस्कार के दौरान भी लग सकते हैं। स्नान से संक्रमण से छुटकारा मिल सकता है।
बुरी नजर से बचने के लिए नींबू मिर्च लटकाएं
नींबू मिर्च में कीट नाशक गुण होते हैं जिसे लटकाने से वातावरण शुद्ध रहता है। साथ ही इनका उपयोग कई विटामिनों की कमी को पूरा करता है। शायद इसीलिए हमारे पूर्वज नींबू व मिर्च को सदैव हमारी आँखों के सामने रखकर चाहते थे कि इनका उपयोग भी हम करते रहें।
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