हर व्यक्ति अपना भाग्य जानने के लिए उत्सुक रहता है। भारतीय दर्शन के अनुसार व्यक्ति के पिछले जन्मों का कर्म फल ही उसे भाग्य के रूप में प्राप्त होता है। ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का नवम भाव भाग्य स्थान माना गया है। नवम भाव से सौभाग्य के अतिरिक्त पिता, गुरु, धर्म, देव कृपा, तीर्थलाभ तथा शुभ कार्यों का विचार किया जाता है।
नवम भाव कुंडली का सर्वोच्च त्रिकोण स्थान है और उसे लक्ष्मी (विशेष शुभ) स्थान माना गया है। नवम भाव एकादश (लाभ) भाव से एकादश होने के कारण ‘लाभ का भी लाभ’, अर्थात जातक के जीवन की बहुमुखी समृद्धि दर्शाता है। अतः सारावली ग्रंथ में कहा गया है:
सर्वमपहाय चिन्त्यं भाग्यक्र्ष प्राणिनां विशेषेण।
भाग्यं बिना न जन्तुर्यस्मातद्यत्नतो वक्ष्ये।।
अर्थात दूसरे भावों को छोड़कर सर्वप्रथम भाग्य स्थान का विश्लेषण करना चाहिए, क्योंकि भाग्य के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता।मानसागरी ग्रंथ के अनुसार लग्न तथा चंद्रमा से नवम स्थान भाग्य भाव कहलाता है। वह यदि अपने स्वामी से युक्त या दृष्ट हो, तो जातक अपने ही देश में भाग्यफल प्राप्त करता है।
अन्य शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, तो विदेश में भाग्यफल का लाभ मिलता है। यदि भाग्य स्थान से उच्चस्थ शुभ ग्रह का योग हो, तो सर्वदा और सभी स्थानों में जातक को भाग्यफल प्राप्त होता है। यदि शनि ग्रह भी भाग्येश होकर भाग्य भाव में हो, तो जातक जीवन पर्यंत भाग्यशाली होता है। परंतु यदि नवम भाव पर निर्बल पाप ग्रह की दृष्टि हो या उससे युति हो तो जातक भाग्यहीन होता है और सर्वदा दुख पाता है। अतः देखना चाहिए कि भाग्येश भाग्य स्थान में है, या अपनी राशि में, या अन्यत्र बली या निर्बल है, तथा भाग्यस्थान में किस प्रकार के ग्रह के योग हैं।
बली रवि और मंगल यदि चंद्रमा से युक्त होकर भाग्य स्थान में हों, तो कुल के अनुसार शुभ ग्रह की दशा अवधि में व्यक्ति राज्य सम्मान पाता है। जन्म समय में भाग्येश भाग्य स्थान में शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो, तो जातक समृद्धिशाली कुल में मुख्य होता है। भाग्य स्थान में यदि स्वोच्चस्थ ग्रह हो, तो व्यक्ति अधिक संपत्तिवान होता है। यदि उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो जातक राजा के समान संपन्न होता है। नवम भाव का कारक बृहस्पति है। उसका भी यदि नवम भाव से संबंध बन जाए, तो सोने में सुहागा वाली बात बन जाती है।
सारावली के अनुसारः
देवगुरौ भाग्यस्थे मन्त्री रविवीक्षिते नृपतितुल्यः।
भोगी कान्तः शशिना कान्चनभाग भवति भौमेन।।
सौम्येन धनी ज्ञेयः सितेन गौवाहनार्थ संयुक्तः।
सौरेण स्थावरभाक् दृष्टे खरमहिष संयुक्तः।।
अर्थात यदि बृहस्पति (बलवान होकर) नवम भाव में स्थित हो, तो जातक मंत्री होता है। यदि उस पर सूर्य की दृष्टि हो, तो वह राजा के समान होता है। चंद्रमा की दृष्टि हो, तो समृद्धिशाली और भोगी होता है। मंगल की दृष्टि होने पर अतुल संपत्ति का स्वामी होता है। बुध की बृहस्पति पर दृष्टि समृद्धिशाली बनाती है। शुक्र की दृष्टि जातक को वाहनों और धन का स्वामी बनाती है। शनि की बृहस्पति पर दृष्टि स्थिर संपत्ति और भैंसांे का स्वामी बनाती है। एक से अधिक ग्रहों की दृष्टि होने पर उपर्युक्त फलानुसार भाग्य लाभ समझना चाहिए। नवम् भाव में बृहस्पति यदि शुक्रादि शुभ ग्रहों के साथ हो, तो अति शुभ फलदायक होता है।
बुधगुरुशुक्रा भाग्ये जनयन्ति मनं खुरोपमं विशदम्।
विख्यातं नरनाथं विद्वांस धर्मशीलं च।।
अर्थात् यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र एक साथ नवम् भाव में हों तो जातक प्रसिद्ध विद्वान, राजा समान और धर्मशील होता है। परंतु, इन ग्रहों पर शनि, मंगल व राहु की दृष्टि हो तो शुभ फल आधा ही प्राप्त होता है। ‘‘भावात् भवम्’’ सिद्धांत के अनुसार नवम भाव के साथ नवम् से नवम् अर्थात पंचम भाव का भी विचार करना चाहिए। ज्ञातव्य है कि नवम् और पंचम् (त्रिकोण स्थानों) को लक्ष्मी स्थान की संज्ञा दी गई है।
जब लग्नेश, नवमेश तथा पंचमेश शुभ भाव में (6/8/12 भावों के अतिरिक्त) अपनी उच्च अथवा मूल त्रिकोण राशि में शुभ दृष्ट हों, तो व्यक्ति जीवन पर्यंत सुखी रहता है। बलवान लग्नेश यदि भाग्य भाव में अथवा भाग्येश लग्न भाव में स्थित हो, तब भी जातक जीवन पर्यंत भाग्यशाली होता है। यदि बृहस्पति का भी संबंध हो, तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
भाग्योदय काल: मानसागरी ग्रंथ के अनुसार नवम् भाव में सूर्य हो, तो 22वें वर्ष में, चंद्रमा हो तो 24वें में, मंगल हो तो 28वें में, बुध हो तो 32वें में, गुरु हो तो 16वें मंे, शुक्र हो तो 21वें में तथा शनि हो तो 36वें वर्ष में भाग्योदय होता है।
ऐसा गर्गादि मुनियों ने कहा है। उपर्युक्त ग्रह यदि नवम् भाव पर दृष्टिपात करते हैं, तो अपने निर्धारित वर्ष में जातक का भाग्योदय करते हैं। नवमेश, नवम् भाव स्थित ग्रह तथा नवम् भाव पर दृष्टिपात करने वाले ग्रहों की दशाओं में भाग्योदय होता है।
सौभाग्यशाली ग्रह गोचर:
1. जब गोचर में नवमेश का लग्नेश से समागम हो, अथवा परस्पर दृष्टि विनिमय हो, अथवा लग्नेश नवम भाव में आए तो भाग्योदय होता है, परंतु उस समय नवमेश यदि निर्बल राशि में हो तो बहुत थोड़ा ही शुभ फल मिलता है।
2. नवमेश से त्रिकोण राशि में गुरु का गोचर शुभ फलदायक होता है।
3. जिस दिन जन्म राशि से नवम, पंचम या दशम भाव में चंद्रमा आए उस दिन जातक के जीवन में कोई सुखद घटना घटती है।
कुंडली विचार: वाजपेई जी की कुंछली में नवमेश बुध, एकादशेश सूर्य तथा स्वगृही बृहस्पति तृतीय भाव से नवम भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं।योगकारक शनि लग्न में शश नामक पंचमहापुरुष योग बना रहा है। लग्नेश शुक्र दशमेश चंद के साथ द्वितीय भाव में स्थित है। श्री वाजपेई एक साधारण परिवार में जन्म लेकर भी प्रगति करते हुए अंततः देश के प्रधानमंत्री बने। अभिनेता सुनील दत्त के कुंडली में नवमेश तथा योगकारक मंगल लग्न में है और लग्नेश सूर्य दशम भाव में दिग्बली व कारक होकर शुभकत्र्तरी योग में है।
दशमेश शुक्र नवम भाव में द्वितीयेश व एकादशेश बुध के साथ है। इस ग्रह स्थिति ने उन्हें सफलता, धन और ख्याति दी। पाकिस्तान से भारत आने के बाद उन्होंने रेडियो उद्घोषक के रूप में जीविका आरंभ की। शुक्र व बुध की नवम भाव में युति ने उन्हें फिल्मों में सफलता दिलाई।
दशमस्थ लग्नेश सूर्य ने उन्हें चार बार लोकसभा का सदस्य बनाया। निधन के समय वह केंद्र सरकार में खेल मंत्री थे। भाग्यशाली जातका की कुंडली में नवमेश शुक्र सप्तम भाव में उच्चस्थ है। शुक्र के साथ स्वगृही सप्तमेश बृहस्पति और एकादशेश चंद्र हैं तथा ‘गजकेसरी’ योग बना रहे हैं।
बृहस्पति ‘हंस’ नामक तथा शुक्र सप्तम केंद्र में ‘मालव्य’ नामक पंचमहापुरुष योग बना रहा है। इन तीनों शुभ ग्रहों की लग्न पर दृष्टि है। लग्नेश बुध पंचम भाव में है। जातका बहुत सुंदर है और एक धनी व्यक्ति की पत्नी होने के कारण रानी की तरह सब प्रकार के सुख साधनों से संपन्न जीवन व्यतीत कर रही है।