पराविज्ञान (ज्योतिष, रमल, तंत्र, मंत्र, टोटके तथा गोचर ग्रह स्थिति आदि) परंपरागत प्राचीन भारतीय धरोहर हैं। इनमें यंत्र, मंत्र एवं तंत्र को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है: मंत्र, यंत्र आकृति विज्ञान पर आधारित हैं: आम भाषा में इन्हें ताबीज या गंडा भी कह सकते हैं। धातुओं पर बनी विभिन्न आकृतियां जो रेखागणित के किसी विशेष सिद्धांत पर बनी होती हंै या भोज पत्र पर बनायी जाती हैं, उन्हें शुभ समय पर, भिन्न-भिन्न तरीकों से, भिन्न पेड़ों की शाखाओं की कलम से, अपने उद्देश्य प्राप्ति हेतु, बनाया जाता है। मंत्र: मंत्र ध्वनि विज्ञान (तरंग) पर आधारित हैं।
ये 2 प्रकार के होते हैं:
- शाबर मंत्र
- वैदिक मंत्र संस्कृत भाषा में होते हैं। उर्दू एवं अरबी भाषा में भी मंत्र पाये जाते हैं। मंत्रों को नियमित संख्या में जाप कर के सिद्ध किया जाता है, जिसके बाद इनका प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। तंत्र: इन्हें आम प्रचलित भाषा में टोना या टोटका कहते हैं। इनका शीघ्र प्रभाव देखने में आता है तथा किसी प्रकार की गलती हो जाने पर भी कोई नुकसान नहीं होता है।
प्रायः देखा गया है कि यदि किसी की कमर में दर्द हो, तो बुजुर्ग कहते आये हैं कि जिस बालक के पैर में 6 अंगुलियां हों या जन्म समय जो बालक उल्टा पैदा हुआ हो, देहरी पर बैठ कर उसकी लात कमर में लगवा लें और पाया गया है कि इससे कमर का दर्द ठीक हो जाता रहा है। इसी प्रकार आंखों में परेशानी या चेहरे और शरीर पर खाज आदि होने पर बुजुर्ग सुबह उठ कर उस स्थान पर स्वयं का बासी थूक लगाने की सलाह देते रहे हैं।
इस प्रकार के टोटके जीवन में यदा-कदा उपयोग में आते देखे गये हैं। अपनी बुद्धि- विवेक से भी निर्णय लेना होगा। किसी रोगी के लिए डाॅक्टर की सलाह तथा डाॅक्टरी निदान ही कारगर होगा। अतः अपने जीवन में तथ्यपरक होना चाहिए। यद्यपि यंत्र, मंत्र एवं तंत्र पवित्र एवं सफल क्रियाएं है, परंतु इनसे उचित तथा अपेक्षित लाभ हेतु विश्वास, संयम एवं समय की भी जरूरत है। तंत्र, मंत्र और यंत्र आदि काल से उपयोग में आते रहे हैं और इनके जीवंत रहने का आधार इनमें विश्वास है, जो सदियों से अटूट तो है, पर अंधा नहीं है। तंत्र-मंत्र-टोटके आदि काल से मानव के साथ जुड़े हुए हैं। भय, बीमारी, भूत-प्रेत, संतान संबंधी समस्याएं तथा वैवाहिक विषमताएं जैसी समस्याएं अथवा धन-संपत्ति, समाज में मान-सम्मान, घर में सुख-शांति, युद्ध-मुकद्दमे में विजय की अभिलाषाएं भी अनंत काल से व्यक्ति के विषाद-हर्ष का कारण रही हंै।
अतः, मानव के अभ्युदय के साथ ही, पूर्ण सफलता उन्हीं व्यक्तियों को मिलती देखी गयी है, जो लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में प्रयास करते हैं। ईश्वर की आराधना, जप, भजन, दान, संतों की सेवा, मंदिरों का निर्माण जहां आध्यात्मिक कर्म क्षेत्र हंै, वहीं भौतिक उपलब्धियों को पाने के उपाय, जिनमें धन-वैभव मान-सम्मान-सुखी गृहस्थी आते हैं, लौकिक कर्म हंै। मानव की अनेक समस्याओं के समाधान, रोग उपचार में जहां विज्ञान असफल हो जाता है, वहां तंत्र-मंत्र-टोटकों से सफलता प्राप्त हो जाती है और इसके लिए जरूरी है उसके सही ज्ञान की और मन में दृढ़ विश्वास की।
धर्म शास्त्रों तथा प्राचीन ग्रंथों में तंत्र, मंत्र और टोटकों के बारे में काफी जानकारी दी गयी है। ये सभी शास्त्रसम्मत तथा विद्वानों द्वारा परीक्षा किये हुए हैं। फिर भी इनके करने से मिलने वाली सफलता में मानव के प्रयास, दृढ़ विश्वास का भी बड़ा महत्व रहता है। सभी जानते हैं, कि सुख-दुःख इस जन्म तथा पूर्व जन्मों के प्रभावों के फल हैं। फिर भी इनके कुप्रभावों को कम करने हेतु मानव टोने-टोटकों का उपयोग करता रहा है। घर में सुख-शांति, सौभाग्य, धन, संतान प्राप्ति के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है। इनमें सफलता हेतु कुछ नियम प्रतिपादित किये गये हैं, जिनकी जानकारी लाभ प्रदान करने में सहयोगी होती है।
टोटकों के लिए दिशा:
- सम्मोहन, ईश्वर की कृपा, शुभ एवं सात्विक कार्यों हेतु पूर्व दिशा उत्तम रहती है।
- सुख-समृद्धि, लक्ष्मी की प्राप्ति, मान-प्रतिष्ठा हेतु पश्चिम दिशा उत्तम रहती है।
- अभिचार कर्म, शत्रु शमन के लिए दक्षिण दिशा उत्तम रहती है।
तिथि-वार-महीना: - वशीकरण हेतु टोटके शनिवार को करने चाहिए। सप्तमी तिथि भी हो, तो शीघ्र फल मिलते हैं।
- शत्रुशमन, रोग-ऋणमुक्ति के लिए मंगलवार का दिन लें। ज्येष्ठ एवं श्रावण माह में शीघ्र फल मिलते हैं।
- संतान, संपन्नता, समृद्धि हेतु गुरुवार को टोटके करने चाहिए। कार्तिक, मार्गशीर्ष माह में ये शीघ्र फल देते हैं।
समय निर्णय: टोटके एवं यंत्र बनाने में तिथि, वार, नक्षत्र का विचार भी करना चाहिए। ग्रह दोष निवारण, दीर्घायु हेतु, सुख-समृद्धि हेतु जहां श्रावण का महीना उत्तम रहता है, वहीं व्यापार वृद्धि, विपुल धन लाभ हेतु टोटके आश्विन (नव रात्रि) एवं कार्तिक माह में शीघ्र फलदायी होते हैं। व्यावसायिक सफलता एवं आर्थिक उन्नति के लिए टोटके पुनर्वसु एवं उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रों में करने चाहिए।
मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्ति के लिए मूल, उत्तराभाद्रपद, रेवती नक्षत्र में यंत्र एवं टोटकों से शीघ्र फल मिलता है। सुख एवं सौभाग्य के लिए अश्विनी, मृगशिरा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र शुभ माने गये हैं। मारण, उच्चाटन, शत्रुनाश एवं दुःखनाश के लिए पुष्य, चित्रा एवं स्वाति नक्षत्र लेना चाहिए। इसी प्रकार तिथियों का भी विशेष महत्व है।
सुख-साधन, संपन्नता के लिए सप्तमी तिथि, ज्ञान एवं शिक्षा के लिए दोज, पंचमी, एकादशी शुभ मानी गयी हैं, तो शत्रुनाश के लिए दशमी। द्वादशी तिथि सभी कामनाओं के लिए श्रेष्ठ होती हैं। इस क्रम में वारों पर भी ध्यान रखना चाहिए। रविवार धनवृद्धि के लिए, सोमवार शांति कर्मों के लिए, बुधवार शिक्षा एवं ज्ञान के लिए, मंगलवार एवं शनिवार सभी अभिचार कार्यों में प्रयुक्त किये जाने चाहिए। सभी जानते हैं
कि ग्रह रश्मियों के प्रभाव से ब्रह्मांड में जो क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं होती हैं, वे मनुष्य के शरीर, उसकी चेतना, बुद्धि आदि संवेगों को प्रभावित करती हैं तथा इससे मनुष्य प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। अतः इन तिथि, वार, नक्षत्रों से बनने वाले सर्वार्थ सिद्धि आदि योगों में व्यक्ति को कार्य करने से वांछित सफलता मिलती है तथा इनसे बनने वाले कुयोगों, जैसे यमघंटक, भद्रा, राहु काल में कार्य करने से असफलता भी मिल सकती है, या अनेक विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
किसी को भी नुकसान पहुंचाने हेतु तंत्र, मंत्र, टोटकों को काम में नहीं लाना चाहिए। परहिताय एवं बिना किसी को नुकसान पहुंचाए, स्वयं को लाभान्वित करने के लिए इनका उपयोग करना आध्यात्मिक पक्ष है।