इनका विवाह बुध/शनि दशा में 23-1-2004 को हुआ। द्वादश भावस्थ यह मंगल मंगल दोष कारक है। 2 अंशों पर होने से यह ग्रह बाल्य अवस्था में है। नवांश, दे्रष्काण, सप्तांश, द्वादशांश, त्रिशांश आदि में इनका मंगल मेष राशि में ही है। अतः योग कारक होकर वर्गोत्तम स्थिति में है। शुभ फल ही घटित होना चाहिये। परंतु स्थिति इसके ठीक विपरीत तो नहीं कहेंगे पर संतोषजनक भी नहीं कह सकते। जातक को पुण्य कार्य करने के अवसरों में विघ्न उत्पन्न होता है।
सरकारी नौकरी तो है पर जितनी इनकी योग्यता है उस हिसाब से नहीं, आमदनी से खर्चे अधिक हैं। शत्रु आये दिन नये-नये उत्पन्न होते रहते हैं। एक्सीडेंट भी हुआ है। लेकिन अब स्वस्थ हैं। पत्नी से भी वह सहयोग प्राप्त नहीं है जो होना चाहिए। अनबन रहती है। इनकी पत्नी को तुला लग्न में षष्ठ भाव में मीन राशि का मंगल है। पत्नी अक्सर बीमार रहती है। आॅप्रेशन तीन तक हो चुके हैं। अतः यह कह सकते हैं कि मंगल इनकी कुंडली में वर्गोत्तम स्थिति में होने पर भी विवाह संबंधी फलों में बढ़ोत्तरी नहीं हुई।
फिर भी ये सुखी हैं। तात्पर्य यह है कि 12वंे भाव में मंगल होने पर भी जातक सुखी जीवन-यापन कर रहा है। अतः इस भाव में मंगल ने अशुभ प्रभाव तो दिया परंतु इतना भयावह भी नहीं। इस कुंडली में मंगल सतमंगली योग का निर्माण कर रहा है। लेकिन सिंह लग्न में केंद्र-त्रिकोण का स्वामी होने से योग कारक है। परंतु यह जातक अभी तक विवाह सुख से वंचित है। सिंह लग्न में विवाह में देरी सम्भाव्य है किंतु इतनी भी नहीं।
उचित मंगल मिलान न होने की वजह से इसकी अभी तक शादी नहीं हुई। कई रिश्ते बनते-बनते न बन पाये। जातक जल विभाग में कार्यरत है, अच्छी फैमिली है। अकेला भाई है। कुंडली में सप्तम भाव प्रबल मंगल योग कारक बना हुआ है। वैरागी शनि की मूल त्रिकोण राशि का मंगल बलात् वैराग्य की ओर धकेल रहा है। चतुर्थ दृष्टि से यह मंगल शनि से टकरा रहा है। हादसों का कई बार शिकार हो चुका है।
सप्तम दृष्टि से तनु (शरीर) से भी कमजोर है। अष्टम दृष्टि से धन एवं कुटुंब भाव को परेशान कर है। जातक की बड़ी बहनंे हैं, बहनों में छोटा भाई है। इनकी बात को नहीं मानता है। घर वाले इसकी शादी को लेकर परेशान हैं। यह है कि शादी की बात आगे बढ़ने नहीं देता। अतः मंगल इसे इस सुख से वंचित कर रहा है।
तात्पर्य यह है कि सप्तम भाव में मंगल विशेष दोषपूण होता है। इस स्थिति में मंगल वर-कन्या को उचित ध्यान देकर मिलान करना चाहिए। कहा भी है: ‘‘कुज दोषवती देया कुजदोष वते किल। नास्तिदोषो न चानिष्टं दम्पत्योः सुख वर्धनम्।। एक अन्य मंगली कुंडली है जिसका विवाह होने के पश्चात तुरंत तलाक की अर्जी हो गई और कालान्तर में बारहवें घर में नीच मंगल ने जातक को चतुर्थ दृष्टि से पराक्रमहीन बना दिया। जातक हृृष्ट पुष्ट है, परंतु कार्यों में सफलता नहीं मिलती। अब जाकर शनि, अंतर गुरु में यह जातक सरकारी नौकरी में लगा है।
अध्यापन से करियर की धीमी लेकिन अच्छी शुरूआत हुई है। इसकी शनि अंतर गुरु दशा 5-8-2013 से 16-12-2016 तक है। सप्तम दृष्टि से कई शत्रु हैं। पर दबे रहते हैं, उच्च दृष्टि होने की वजह से। अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव प्रभावित है। अब दूसरी शादी की सोच रहा है। परंतु लगता है कि पत्नी से इसकी बगावत हमेशा रहेगी क्योंकि शनि भी तो सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि गड़ाये हुये हैं। अतः वैवाहिक जीवन संघर्षमय ही रहने की उम्मीद है।
अगली कुंडली पेशे से वकील की है। इस वकील जातक की कुंडली में कुटुंब भाव में बली मंगल है। इस कारण इसकी पंचम भाव पर दृष्टि हुई, इस भाव के फल को मंगल ने बढ़ाया, जातक उच्च शिक्षित है। वकालत का धंधा भी फल-फूल रहा है। विवाहोत्तर अष्टम भाव को देखने से यह मंगल अपनी मेहनत के बलबूते सफल बना रहा है तथा भाग्य भाव को भी जगा रहा है। बुध शुक्र का साथ होने पर वाणी के क्षेत्र में सफलता मिल रही है।
परंतु मंगलीक होने के कारण विवाह सुख अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। अतः इस भाव का मंगल भी मंगल कारक ही हुआ। भले ही विवाह किन्हीं अन्य राहु शनि आदि ग्रहों से बाधित हो रहा है परंतु उसमें मंगल का भी पूर्ण योगदान है अतः यह कहा जा सकता है कि इस भाव का मंगल भी विवाह संबंधों को प्रभावित कर सकता है। क्रूर ग्रहों का भी इन्हीं स्थानों 1-2-4-7-8-12 में बैठना वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है।
उदाहरणतया किसी भी जातक को लग्न में मंगल को छोड़कर अन्य सूर्यादि क्रूर ग्रह देह कांति को प्रभावित करेंगे ही, तथा हर ग्रह की सप्तम दृष्टि होती है अतः सप्तम भाव (जाया) प्रभावित हुये बिना नहीं रह सकता। चतुर्थ भाव में क्रूर ग्रह हों तो सुख चैन नहीं मिलता, दूसरे भाव में क्रूर ग्रहों से घर के सदस्यों से अनबन तथा धन प्राप्ति नहीं होती। सप्तम में सूर्य पत्नी को क्रोधी बनाता है। शनि हो तो कुरूप पत्नी तथा लड़ाई झगड़े होते हैं।
राहु से पत्नी की मृत्यु तक हो सकती है। केतु से रोगी स्त्री प्राप्त होगी। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। मुहूत्र्त संग्रह दर्पण का श्लोक दृष्टव्य हैः- लग्नेक्रूरा व्यये क्ररःधने क्रराः कुजस्तथा। सप्तमे भवने क्रूराः परिवार क्षयंकराः।। अतः वर कन्या के वैवाहिक जीवन के लिए केवल मंगल मिलान ही नहीं अन्य क्रूर ग्रहों पर भी दृष्टिपात किसी सुयोग्य ज्योतिषी को करना चाहिये।