मंगल यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में हो, तो कुंडली मंगलीक होती है। मांगलिक दोष होने पर प्रायः जातक को निम्नांकित समस्याओं का सामना करना पड़ता है -
मंगल दोष के लक्षण
- विवाह के समय विघ्न आते हैं।
- जातक का विवाह संबंध तय नहीं हो पाता।
- विवाह संबंध तय होकर छूट जाता है।
- अधिक उम्र गुजरने पर भी विवाह नहीं हो पाता।
- विवाह पश्चात् जीवनसाथी से प्रायः विवाद के कारण पति-पत्नी के संबंधों में कटुता की स्थिति बनी रहती है।
प्रथम भाव में यदि मंगल हो एवं अशुभ ग्रहों (शनि, राहु, क्षीण चंद्रमा) के साथ हो व शत्रु राशि में हो तो मंगल दोष होता है। ऐसी स्थिति से पत्नी का स्वास्थ्य व आयु पक्ष प्रभावित होता है, जातक का विवाह अधिक उम्र में होता है तथा विवाह में विलंब की स्थिति उत्पन्न होती है ।
चतुर्थ भाव में यदि अशुभ मंगल हो तो ऐसे जातक का विवाह शीघ्र होता है परंतु विवाह पश्चात वैवाहिक जीवन में सुख का अभाव हो जाता है व घर गृहस्थी में क्लेश, घर के बडे़ बुजुर्ग से अनबन होना तथा भूमि भवन से संबंधित मामलांे में उलझनें पैदा होने लगती हैं।
सप्तम भावस्थ अशुभ मंगल जातक के विवाह संबंध में बाधा कारक होता है। यदि सप्तम भाव में मंगल अशुभ ग्रहांे के साथ बैठा हो तो जातक का विवाह होने में बड़ी कठिनाइयांे का सामना करना पड़ता है। विवाह पश्चात भी वर वधू में अनबन बनी रहती है।
अष्टम भावस्थ अशुभ मंगल जातक के कुसंगति में पड़ने के योग बनाता है। यदि अष्टम भाव में अशुभ मंगल पर मारक ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को अथवा जीवनसाथी को मृत्युतुल्य कष्ट प्राप्त होता है। यदि मंगल स्वराशिस्थ या गुरु से दृष्ट हो तो मंगल दोष का प्रभाव कम होता है। द्वादश भावस्थ अशुभ मंगल जातक के वैवाहिक जीवन में अत्यधिक खर्च एवं अप्रत्याशित हानि की स्थिति निर्मित करता है। ऐसे जातक के विवाह पश्चात आय कम एवं खर्च अधिक हो जाने से पारिवारिक संतुलन व पति-पत्नी का आपसी तालमेल बिगड़ जाता है।
मंगलीक मिलान के महत्वपूर्ण सूत्र
यदि वर मंगलीक है, तो वधू का भी मंगलीक होना वांछनीय है। एक कुंडली के मंगल दोष को दूसरी कुंडली काट देती है। लेकिन अनेक योगों में कुंडली को मंगलीक दोष नहीं लगता एवं अन्य अनेक स्थितियों में एक की कुंडली दूसरे के मंगलीक दोष को काट देती है। जैसे:
- यदि लग्न में मंगल मेष अथवा मकर राशि, द्वादश में धनु राशि, चतुर्थ में वृश्चिक राशि, सप्तम में वृष अथवा मकर राशि तथा अष्टम में कुंभ अथवा मीन राशि में स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- चतुर्थ, सप्तम, अथवा द्वादश में मेष या कर्क का मंगल हो, तो दोष नहीं होता।
- यदि द्वादश में मंगल बुध तथा शुक्र की राशियों में हो, तो दोष नहीं होता।
- यदि बली गुरु और शुक्र स्वराशिस्थ या उच्च होकर लग्न या सप्तम भाव में हों, तो मंगल का दोष नहीं होता है।
- यदि मंगल वक्री, नीच, अस्त हो, तो मंगल दोष नहीं होता है।
- यदि मंगल स्वराशिस्थ अथवा उच्च का हो तो मंगलीक दोष भंग हो जाता है।
- यदि मंगल-गुरु या मंगल-राहु या मंगल-चंद्र एक राशि में हों तो मंगलीक दोष भंग हो जाता है।
- केंद्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह और 3,6,11 में पाप ग्रह हांे तथा सप्तमेश सप्तम में हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- सप्तम मंगल को गुरु देखता हो तो मंगलीक दोष कट जाता है। सप्तम में गुरु मंगल या शनि मंगल की युति शादी में देरी करवाता है।
- यदि एक की कुंडली में जहां मंगल हो, उसी भाव में दूसरे की कुंडली में प्रबल पाप ग्रह (राहु, सूर्य या शनि) हो, तो मंगलीक दोष कट जाता है।
- शनि यदि एक की कुंडली में 1 ,4, 7, 8, 12 वें भावों में हो और दूसरे का मंगल इन्हीं भावों में हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- यदि अधिक गुण 75 प्रतिशत, अर्थात 27 या अधिक मिलते हों, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- वर या कन्या में से एक मंगलीक हो और दूसरे की कुंडली में 3,6,11 वें भावों में राहु, मंगल या शनि हो, तो मंगलीक दोष समाप्त हो जाता है।
उपर्युक्त योगों से यह साफ है कि एक कुंडली मंगलीक तो हो सकती है, लेकिन मंगलीक दोष हो, यह आवश्यक नहीं। केवल पत्री में मंगलीक देख लेने मात्र से यह आवश्यक नहीं कि विवाह नहीं हो सकता। यह मानना कि मंगलीकक दोष का असर 28 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है, ठीक नहीं है। मंगलीक दोष सर्वदा विद्यमान रहता है, लेकिन पूजा-पाठ द्वारा इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। एक कुंडली का दूसरे के लिए मारक होना केवल मंगल पर ही आधारित नहीं होता। अन्य ग्रह, जैसे शनि, राहु, सूर्य भी ऐसी स्थितियां पैदा करने में सक्षम हैं।
विवाह प्रसंग में शनि मंगल से भी अधिक प्रभावशाली ग्रह है। यदि शनि लग्न, पंचम, सप्तम व दशम भाव में हो तो विवाह में बाधक बनता है। यदि शनि लग्नस्थ हो तो वैराग्य उत्पन्न करता है और विवाह होने के पश्चात् पत्नी से बहुत अच्छा संबंध नहीं होता। पंचम भावस्थ शनि मध्यायु के पश्चात् वैवाहिक जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता है।
सप्तमस्थ शनि विवाह में देरी करवाता है और विवाह की बात बार-बार बनते-बनते रह जाती है। ऐसे शनि के साथ मंगल, सूर्य या चंद्रमा की युति अन्यथा दृष्टि संबंध होने से शनि का अशुभ प्रभाव और बढ़ जाता है।
मंगलीक मिलान के महत्वपूर्ण सूत्र
यदि वर मंगलीक है, तो वधू का भी मंगलीक होना वांछनीय है। एक कुंडली के मंगल दोष को दूसरी कुंडली काट देती है। लेकिन अनेक योगों में कुंडली को मंगलीक दोष नहीं लगता एवं अन्य अनेक स्थितियों में एक की कुंडली दूसरे के मंगलीक दोष को काट देती है। जैसे:
- यदि लग्न में मंगल मेष अथवा मकर राशि, द्वादश में धनु राशि, चतुर्थ में वृश्चिक राशि, सप्तम में वृष अथवा मकर राशि तथा अष्टम में कुंभ अथवा मीन राशि में स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- चतुर्थ, सप्तम, अथवा द्वादश में मेष या कर्क का मंगल हो, तो दोष नहीं होता।
- यदि द्वादश में मंगल बुध तथा शुक्र की राशियों में हो, तो दोष नहीं होता।
- यदि बली गुरु और शुक्र स्वराशिस्थ या उच्च होकर लग्न या सप्तम भाव में हों, तो मंगल का दोष नहीं होता है।
- यदि मंगल वक्री, नीच, अस्त हो, तो मंगल दोष नहीं होता है।
- यदि मंगल स्वराशिस्थ अथवा उच्च का हो तो मंगलीक दोष भंग हो जाता है।
- यदि मंगल-गुरु या मंगल-राहु या मंगल-चंद्र एक राशि में हों तो मंगलीक दोष भंग हो जाता है।
- केंद्र-त्रिकोण में शुभ ग्रह और 3,6,11 में पाप ग्रह हांे तथा सप्तमेश सप्तम में हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- सप्तम मंगल को गुरु देखता हो तो मंगलीक दोष कट जाता है। सप्तम में गुरु मंगल या शनि मंगल की युति शादी में देरी करवाता है।
- यदि एक की कुंडली में जहां मंगल हो, उसी भाव में दूसरे की कुंडली में प्रबल पाप ग्रह (राहु, सूर्य या शनि) हो, तो मंगलीक दोष कट जाता है।
- शनि यदि एक की कुंडली में 1 ,4, 7, 8, 12 वें भावों में हो और दूसरे का मंगल इन्हीं भावों में हो, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- यदि अधिक गुण 75 प्रतिशत, अर्थात 27 या अधिक मिलते हों, तो मंगल दोष नहीं लगता।
- वर या कन्या में से एक मंगलीक हो और दूसरे की कुंडली में 3,6,11 वें भावों में राहु, मंगल या शनि हो, तो मंगलीक दोष समाप्त हो जाता है।
उपर्युक्त योगों से यह साफ है कि एक कुंडली मंगलीक तो हो सकती है, लेकिन मंगलीक दोष हो, यह आवश्यक नहीं। केवल पत्री में मंगलीक देख लेने मात्र से यह आवश्यक नहीं कि विवाह नहीं हो सकता। यह मानना कि मंगलीकक दोष का असर 28 वर्ष बाद समाप्त हो जाता है, ठीक नहीं है। मंगलीक दोष सर्वदा विद्यमान रहता है, लेकिन पूजा-पाठ द्वारा इसका प्रभाव कम किया जा सकता है। एक कुंडली का दूसरे के लिए मारक होना केवल मंगल पर ही आधारित नहीं होता। अन्य ग्रह, जैसे शनि, राहु, सूर्य भी ऐसी स्थितियां पैदा करने में सक्षम हैं।
विवाह प्रसंग में शनि मंगल से भी अधिक प्रभावशाली ग्रह है। यदि शनि लग्न, पंचम, सप्तम व दशम भाव में हो तो विवाह में बाधक बनता है। यदि शनि लग्नस्थ हो तो वैराग्य उत्पन्न करता है और विवाह होने के पश्चात् पत्नी से बहुत अच्छा संबंध नहीं होता। पंचम भावस्थ शनि मध्यायु के पश्चात् वैवाहिक जीवन में बाधाएं उत्पन्न करता है। सप्तमस्थ शनि विवाह में देरी करवाता है और विवाह की बात बार-बार बनते-बनते रह जाती है। ऐसे शनि के साथ मंगल, सूर्य या चंद्रमा की युति अन्यथा दृष्टि संबंध होने से शनि का अशुभ प्रभाव और बढ़ जाता है।
दशमस्थ शनि भी विवाह में देरी करवाता है और विवाहोपरांत भी जीवन में कुछ न कुछ कड़वाहट उत्पन्न करता रहता है। यदि शनि नवांश कुंडली में नीच राशि का हो तो भी वैवाहिक जीवन में अस्थिरता की स्थिति बनी रहती है, विवाह सुखमय नहीं होता, जातक का विवाह देरी से होता है या विवाह होता ही नहीं है अथवा विवाह होने के बाद अलगाव की संभावनाएं बनी रहती हैं।
सप्तम शनि की तो अवश्य ही काट देख लेनी चाहिए, क्योंकि यह द्विभार्या या वैधव्य योग देता है। इसके दोष निवारण के लिए ही घट विवाह या पीपल से विवाह प्रचलित हैं।
मंगल दोष शांति के उपाय
- यदि जाने-अनजाने मंगल दोष रहते हुए विवाह हो भी जाए, तो दंपति को मंगल शांति करा लेनी चाहिए। प्रत्येक शादी की वर्षगांठ पर घर में मंगल यंत्र स्थापित करके मंगल शांति के 108 पाठ करने से वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है।
- यदि मंगल योगकारक हो, तो 8 रत्ती का मूंगा पहनकर मंगलीक दोष का निवारण किया जा सकता है। मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है। अगर जाने अनजाने मंगलीक कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है।
- जिस कन्या की कुंडली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह कर ले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है। प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है।
- मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगलीक दोष शांत होता है।
- कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है। महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है। इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है। लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान्न एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल का अमंगल दूर होता है।