वैधव्य या वैवाहिक जीवन को नष्ट करने वाला ग्रह केवल मंगल ही नहीं है अपितु अन्य क्रूर ग्रह भी मंगल की तरह जातक के वैवाहिक सुख में कमी कर सकते हैं। ज्योतिष में लग्न भौतिक शरीर का सूचक है, चन्द्रमा मन को प्रदर्षित करता है जबकि शुक्र ग्रह वैवाहिक जीवन के संदर्भ में शारीरिक संबंधों का कारक ग्रह माना जाता है। इसीलिए इन तीनों से ही मंगल ग्रह तथा अन्य क्रूर ग्रहों की स्थिति को विषेष भावों में जांचा परखा जाता है।
जन्म कुंडली के कुछ भाव जैसे कि प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादष भावों को वैवाहिक जीवन के संदर्भ से बहुत ही संवेदनषील माना गया है। इसीलिए इन भावों में स्थित मंगल या अन्य क्रूर ग्रह जैसे सूर्य, शनि, राहु और केतु की उपस्थिति वैवाहिक सुख में कमी कर देता है। यदि मंगल दोष सिर्फ लग्न से हो तो कमजोर माना जाता है, यदि चंद्रमा से भी हा तो मंगल दोष अधिक होता है और यदि शुक्र से भी हो तो यह दोष और भी अधिक शक्तिषाली माना जाता है।
मंगल दोष वैवाहिक जीवन को इतना भी अधिक नहीं प्रभावित करता जितना कि लोग समझते हैं। लेकिन कुंडली मिलान करते समय इसका अति महत्वपूर्ण स्थान है। म्ंागल दोष वैवाहिक जीवन को कितना प्रभावित करेगा इसके लिए मंगल ग्रह का कुंडली के विषेष भावों में उपस्थिति के साथ सप्तम भाव, सप्तमेष, शुक्र तथा गुरु की स्थिति को आंकना भी आवष्यक है।
सप्तम भावाधिपति की कुंडली में स्थिति जैसे कि यदि सप्तमेष स्वराषि, उच्चराषि का हो, यदि सप्तमेष सप्तम भाव पर दृष्टि डाले, सप्तमेष पर बृहस्पति या शुक्र की दृष्टि या फिर सप्तम भाव पर बृहस्पति या शुक्र की दृष्टि मंगल दोष के प्रभाव को कम करती है या नगण्य ही कर देती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सप्तमेष, बृहस्पति तथा शुक्र की स्थिति कुंडली में कितनी सुदृढ़ है। कुछ विषेष परिस्थितियों में इन विषेष स्थानों पर मंगल उपस्थित होकर भी जातक का अषुभ नहीं करता है। यह विषेष परिस्थितियाँ मंगल दोष के परिहार के रूप में जानी जाती हैं।
(1) यदि मंगल अपनी खुद की राषि मेष या वृष्चिक या अपनी उच्च राषि में हो या फिर अपने मित्र सूर्य, बृहस्पति या चंद्रमा की राषि में हो।
(2) यदि मंगल द्वितीय भाव में हो लेकिन मिथुन या कन्या राषि में हो।
(3) यदि मंगल द्वादष भाव में हो लेकिन वृषभ या तुला राषि में हो।
(4) यदि मंगल सप्तम भाव में हो लेकिन कर्क राषि में हो।
(5) यदि मंगल अष्टम भाव में हो लेकिन धनु या मीन राषि में हो।
(6) कर्क तथा सिंह लग्न में मंगल योगकारक ग्रह होता है अतः इस लग्न में मंगल की 1, 2, 4, 7, 8, 12 भावों में उपस्थिति अनिष्टकारी नहीं होती है
(7) कुंभ लग्न में मंगल की चतुर्थ या अष्टम में स्थिति मंगल दोषकारी नहीं होती है।
(8) बृहस्पति या शुक्र की लग्न में उपस्थिति भी मंगल दोष का परिहार करती है।
(9) यदि मंगल, बृहस्पति या चंद्रमा से युक्त हो या दृष्टि में हो
(10) यदि मंगल सूर्य, बुध, शनि के साथ हो या उनकी दृष्टि में हो।
(11) यदि शनि मंगल द्वारा शासित भावों को देखता हो
म्ंागल दोष के उपाय
(1) 28 वर्ष के बाद विवाह करने से मांगलिक दोष का अषुभ प्रभाव कम हो जाता है।
(2) मंगलीक कुंडली वाली कन्या का विवाह मंगल दोष वाले वर से करने पर मंगल दोष का परिहार हो जाता है और कोई अनिष्ट भी नहीं होता है तथा दांपत्य सुख में वृद्धि होती है।
(3) वधू की कुंडली में स्थित वैधव्य योग को नष्ट करने के लिए उपयुक्त ज्योतिष परामर्ष के बाद कन्या का विष्णु की मूर्ति, पीपल या घट विवाह करवाया जा सकता है। वर की स्थिति में तुलसी के साथ विवाह करवाया जा सकता है