ज्योतिष ग्रंथों में बताये गये मांगलिक दोषों के परिहारों के आधार पर भावी वर एवं वधू की कुंडलियों में मांगलिक दोष होने पर मंगल दोष समाप्त हो जाता है, परंतु इसमें भी यह देखना आवश्यक ह ै कि दा ेष समान रूप से हो। मुहूर्त संग्रह दर्पण में भी कहा गया है कि वर अथवा कन्या में से किसी एक की कुंडली में मांगलिक दोष हो तथा दूसरे की कुंडली में अरिष्ट योगकारक शनि या अन्य कोई पाप ग्रह विद्यमान हो, तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
यहां यह ध्यान देना आवश्यक है कि परिहार करने वाला ग्रह कुंडली का अरिष्ट ग्रह हो, योगकारी ग्रह न हो। मेष का मंगल लग्न में, वृश्चिक का चतुर्थ भाव में, मकर राशि का मंगल सप्तम भाव में, कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में तथा धनु का मंगल द्वादश भाव में होने से मंगल दोष नहीं होता, क्योंकि अपनी राशि, अपनी उच्च तथा मूल त्रिकोण राशि में केंद्रस्थ मंगल रूचक नामक महापुरुष योग बनाएगा।
अष्टम भाव में अपनी नीच राशि स्थित मंगल, धन तथा परिवार भाव को उच्च दृष्टि से देख कर, उसके शुभत्व में वृद्धि करेगा और शनि से सप्तम भाव को, अपनी नीच दृष्टि से देख कर, मारक स्थान की हानि करेगा। बली गुरु अथवा शुक्र लग्न या सप्तम स्थान में हो तथा मंगल नीचस्थ, शत्रु गृही, अस्तगत हो, तो भी मंगल दोष नही ं होता। द्वितीय भाव मे ं च ंद्रमा तथा शुक्र की युति, मंगल पर गुरु की द ृष्टि, क े ंद ्रस्थ राह ु अथवा क े ंद ्र म े ं म ंगल-राह ु की युति मंगल दोषनिवारक है।
मुहूर्त दीपक के मतानुसार कुंडलियों में राशि मित्रता, गणों की एकता तथा गुणों की बहुलता हो, तो मांगलिक दोषों का निराकरण हो जाता है। यदि कुंडली में ग्रह स्थितियों तथा योगों के आधार पर मांगलिक दोष का परिहार नहीं हो, तो घट विवाह आदि से मांगलिक दोषों का शमन हो जाता है, ऐसा मुहूर्त चिंतामणि का मत है।