मंगली होना दोष नहीं, बल्कि योग है
मंगली होना दोष नहीं, बल्कि योग है

मंगली होना दोष नहीं, बल्कि योग है  

मनोज कुमार शुक्ला
व्यूस : 35988 | जुलाई 2015

सामान्यतः मांगलिक पत्रिका वाले जातक प्रतिभा संपन्न होते हैं तथा उनमें विशेष गुण पाये जाते हैं। मांगलिक होने का विशेष गुण यह है कि जातक किसी भी कार्य को पूर्ण लगन एवं निष्ठा से करता है। किसी भी कठिन से कठिन परिस्थितियों से वह नहीं घबराता है तथा कठिन से कठिन कार्य भी पूर्ण ईमानदारी से, समय से पूर्व पूर्ण करने का प्रयास करता है। नेतृत्व की क्षमता भी गजब की होती है।

यह गुण मांगलिक पत्रिका में जन्मजात देखा जा सकता है। ऐसे जातकों में महत्वाकांक्षा अधिक होती है जिसके कारण उनका स्वभाव क्रोधी प्रवृत्ति का होता है। परंतु इस प्रकार के जातकों में दयालुता का भाव अधिक होता है। लग्न, चतुर्थ, सप्तम भाव का मंगल इस प्रकार के गुणों में वृद्धि करता है। ऐसे जातक कोई भी गलती करने से परहेज करते हैं तथा गलत के सामने नहीं झुकते हैं, मानवतावादी विचारधारा को अपनाने वाले होते हैं। अपने संबंधों को पूर्णता की ओर पहुंचाने का प्रयास करते हैं।

उच्च पद, व्यावसायिक योग्यता, राजनीति, चिकित्सक, अभियंता जैसे पदों पर पहुंचाने का सपोर्ट मांगलिक पत्रिका करती है। अब एक प्रश्न उठता है कि जब इतने सारे गुण मांगलिक पत्रिका में उपस्थित हैं तो फिर मांगलिक पत्रिका वाले जातक का विवाह मांगलिक कन्या से ही क्यों किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मांगलिक पुरुष या स्त्री अपने जीवन साथी के प्रति विशेष संवेदनशील रहते हैं तथा इसी संवेदनशीलता के चलते वे अपने जीवन साथी से विशेष अपेक्षाएं रखते हैं।

शायद इसी कारण मांगलिक पुरूष जातक का विवाह, मांगलिक जातिका से किया जाता है। इस विषय पर और भी तर्क दिए जा सकते हैं। अतः मांगलिक होना कोई अमंगलकारी नहीं है तथा इसे दोष न समझकर योग स्वीकार करना उचित होगा। जिस प्रकार किसी योग का परिणाम योग निर्मित करने वाले ग्रहों की शक्ति पर निर्भर करता है उसी प्रकार मांगलिक योग में मंगल की शक्ति व इसका अन्य ग्रहों से संबंध भी परिणाम को कम या अधिक करता है।

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इसे विभिन्न लग्नों में देखने का प्रयास करते हैं:-

  1. मेष लग्न मेष लग्न में मंगल लग्नेश व अष्टमेश होकर मांगलिक योग बनाता है। ऐसा मंगल लग्न व अष्टम भाव में स्वराशि होने का बल प्राप्त करता है। साथ ही ऐसा मंगल जहां द्वादश भाव में गुरु का सपोर्ट प्राप्त करता है वहीं सप्तम भाव में शुक्र का सपोर्ट प्राप्त करता है। गुरु व शुक्र नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह होते हैं।अतः इस लग्न में मंगल योग कारक ग्रह की भूमिका अदा करता है। हालांकि चतुर्थ भाव में ऐसा मंगल नीच का होता है। परंतु मांगलिक योग विचार में नीच, अस्त तथा वक्री मंगल को दोष परिहार का कारण बताया गया है। इस स्थिति में यदि नीच भंग योग बना तो मेष लग्न का मंगल जातक को शिखर तक पहुंचा देता है।
  2. वृष लग्न वृष लग्न में मंगल द्वादशेश व सप्तमेश होकर मांगलिक योग बनाता है। मंगल स्त्री के लिए रति सुख का कारक है। ऐसा मंगल द्वादश भाव में व सप्तम भाव में स्वराशि का बल प्राप्त करता है। लग्न में शुक्र का व अष्टम भाव में गुरु का सहयोग प्राप्त करता है। चतुर्थ भाव में अपने मित्र सूर्य का सहयोग प्राप्त कर जातक में शुक्र, सूर्य व गुरु के कारक गुणों को अपनाता है। ऐसा मंगल निश्चित रूप से जातक के लिए कल्याणकारी होता है बशर्ते ऐसे मंगल पर शनि व राहु का अशुभ प्रभाव न हो।
  3. मिथुन लग्न मिथुन लग्न में मंगल लाभेश व षष्ठेश होकर मांगलिक योग का निर्माण करता है। षष्ठेश होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां तो दे सकता है परंतु लग्न में बुध, चतुर्थ में बुध, सप्तम में गुरु, अष्टम भाव में उच्च होने का बल व द्वादश भाव में शुक्र का सहयोग पाने में सक्षम होता है। वस्तुतः इस लग्न का मंगल, अपने मांगलिक घरों में अच्छे परिणाम देने में सक्षम हो सकता है बशर्ते अन्य अशुभ ग्रहों का प्रभाव इस पर न हो।
  4. कर्क लग्न कर्क लग्न में मंगल, निःसंदेह योग कारक (केन्दे्रश/त्रिकोणेश) होकर मांगलिक योग का सृजन करता है। ऐसा मंगल द्वादश भाव में बुध का, चतुर्थ भाव में शुक्र का, सप्तम भाव में उच्च का होने का तथा अष्टम भाव में शनि का बल प्राप्त करता है। केवल लग्न में नीच राशि में होकर जीवन में थोड़ी बहुत बाधाएं देता है परंतु नीच भंग योग होने से ऐसा मंगल जीवन की प्रगति में सहयोग प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है।
  5. सिंह लग्न सिंह लग्न में मंगल केन्द्रेश व त्रिकोणेश होकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ऐसा मंगल द्वादश भाव में चंद्र का, लग्न में सूर्य का, सप्तम भाव में शनि का, अष्टम भाव में गुरु का सहयोग प्राप्त करता है। चतुर्थ भाव में स्थित होकर कल्याणकारी रूचक योग का निर्माण करता है। सिंह लग्न में चतुर्थ भावस्थ मंगल पर यदि अन्य कोई शुभ या योगकारक ग्रह का प्रभाव हो तो जातक को रूचक योग के परिणाम मिलने में संदेह नहीं रहता।
  6. कन्या लग्न: कन्या लग्न में मंगल तृतीयेश व अष्टमेश होकर जहां पराक्रम में वृद्धि करता है वहीं थोड़ी बहुत परेशानियां भी देता है। ऐसा मंगल चतुर्थ में गुरु का, सप्तम में गुरु का, अष्टम में स्वयं का तथा द्वादश भाव में अपने मित्र सूर्य का सहयोग प्राप्त करता है।
  7. तुला लग्न तुला लग्न में मंगल द्वितीयेश व सप्तमेश होकर प्रबल मारकेश होने का प्रमाण देता है। परंतु ऐसा मंगल द्वादश भाव में बुध का, लग्न में शुक्र का सहयोग प्राप्त करता है। अष्टम भाव में भी शुक्र का सहयोग प्राप्त करता है। चतुर्थ और सप्तम भाव में रूचक योग का निर्माण करता है। अतः ऐसे मंगल को यदि अन्य शुभ या योग कारक ग्रहों का सपोर्ट मिल जाए तो जातक अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करता हुआ अपनी मंजिल प्राप्त कर ही लेता है।
  8. वृश्चिक लग्न वृश्चिक लग्न में मंगल लग्नेश व षष्ठेश होकर कारक ग्रह की भूमिका में होता है। द्वादश व सप्तम भाव में स्थित होकर शुक्र का व अष्टम भाव में स्थित होकर बुध का नैसर्गिक सहयोग प्राप्त करता है। चतुर्थ भावगत होकर शनि का सपोर्ट लेने में सक्षम होता है।
  9. धनु लग्न धनु लग्न में मंगल द्वादशेश होकर कार्य करता है। परंतु ऐसा मंगल शुभता प्राप्त करता है। द्वादश स्थान में स्वयं के गुणों में वृद्धि करता है। लग्न व चतुर्थ भावगत हो कर गुरु की शुभता को ग्रहण करने में सक्षम होता है।
  10. मकर लग्न मकर लग्न में मंगल चतुर्थेश होकर कार्यों में गति प्रदान करता है। ऐसा मंगल द्वादश भाव में गुरु का, सप्तम में चंद्र का व अष्टम में सूर्य का सहयोग प्राप्त करता है। चतुर्थ भाव में वो रूचक योग का निर्माण करता है। अतः मकर लग्न के मांगलिक स्थानों में स्थित मंगल को यदि शुभ ग्रहों का और सपोर्ट मिल जाए तो जातक अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में सफल होता है।
  11. कुंभ लग्न कुंभ लग्न में मंगल कर्मेश होकर कार्य करता है। अर्थात इस लग्न में मंगल विशेष बलशाली होकर कार्य करता है। ऐसा मंगल द्वादश भाव में शनि का, चतुर्थ भाव में शुक्र का, सप्तम भाव में सूर्य का व अष्टम में बुध का सहयोग प्राप्त करता है।
  12. मीन लग्न इस लग्न का मंगल द्वितीयेश व नवमेश होकर धर्मप्रसिद्धि के कार्य कराता है तथा अपने मांगलिक स्थानों में रहकर विशेष शुभता देता है। चतुर्थ व सप्तम भाव में स्थित होकर बुध का व लग्न में स्थित होकर गुरु का सहयोग प्राप्त करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मंगल अपने मांगलिक स्थानांे में रहकर विवाह के कारक ग्रहों शुक्र व गुरु से निश्चित रूप से सहयोग प्राप्त करता है। अतः मांगलिक योग हर दृष्टि से कल्याणकारी रहता है। इससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि जीवन में मंगल नहीं होगा या मंगल का प्रभाव नहीं होगा तो व्यक्ति ऊर्जाहीन हो जाएगा।

अतः मंगल से डरना छोड़कर सहयोग लेने का प्रयास करना चाहिए तथा मंगली को दोष नहीं बल्कि योग के रूप में पहचानना चाहिए।

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