मंगल: क्या कहते हैं पुराण
मंगल: क्या कहते हैं पुराण

मंगल: क्या कहते हैं पुराण  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 8533 | जुलाई 2015

इतिहास गवाह है कि ब्रह्मांड का कोई भी ग्रह मानव को इतना रोमांचित व लालायित नहीं कर पाया जितना कि मंगल ग्रह ने किया है। इस लाल रंग के आकर्षक ग्रह के बारे में जानने के लिये वैज्ञानिक हमेषा से उत्सुक रहे हैं। यह उन्हें अचंभित कर उत्तेजना से भरता रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से भी यह सिद्ध हुआ है कि मंगल ग्रह और पृथ्वी के बीच में कोई समानता है, वो भी इतनी कि यह माना जा रहा है

कि कभी बहुत पहले मंगल ग्रह पृथ्वी का ही एक हिस्सा रहा होगा और कालांतर में यह पृथ्वी से अलग हो गया होगा। भारतीय पुराणों के अनुसार भी मंगल ग्रह को ‘‘भौम’’ या ‘‘भूमि-पुत्र’’ अर्थात ‘भूमि का अंश’ भी कहा गया है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय पुराणों के लेखक, हमारे महान ऋषि-मुनि आधुनिक वैज्ञानिकों से दूरदृष्टि में बहुत आगे थे। स्वरूप व विशेषतायें:- मंगल ग्रह आग है। इसमें गर्मी है, तेज है क्योंकि यह अग्निपुत्र है।

‘‘बृहत्पाराशर होराशास्त्र’’ के अनुसार - ‘‘क्रूरो रक्तेक्षणो भौमश्चपलादारमूर्तिकः पित्तप्रकृतिकः क्रोधी कृशमध्यतनुर्द्वि ज’’ अर्थात क्रूर, रक्त नेत्र, चंचल, उदारहृदय, पित्तप्रकृति, क्रोधी, कृश मंगल: क्या कहते हैं पुराण डाॅ संजय बुद्धिराजा और मध्यम देह का स्वामी मंगल है. ‘‘नारदीय पुराण’’ के अनुसार - ‘‘क्रूरदृक्तरूणो भौमः पैत्तिकश्चपलस्तथा’’ अर्थात मंगल क्रूर दिखता है, यह युवा है, यह चपल है और साहसी भी है। ‘‘गरूड़ पुराणानुसार’’ एक विशाल रथ पर सवारी करने वाले भूमिपुत्र के रथ का रंग सुनहरा है और यह आठ घोड़ों द्वारा खींचा जाता है जिनमें आग सी चपलता है।


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इस कारण मंगल साहसी, निडर व तेज है। ‘‘जातकतत्वम्’’ के अनुसार - ‘‘दुष्टदृक् तरूणः कृशमध्यो रक्तसितांगः पैत्तिकश्चलधीरूदारप्रताप्यारः’’ नामावली:- मंगल ग्रह को हमारे हिंदू पुराणों ने कई नाम दिये हैं जो मंगल की विषेषताओं को ही बताते हैं, जैसे कि अंगारक - अग्नि से पैदा हुआ भौम - भूमि का पुत्र कुज - भूमि का पुत्र मंगला - मंगलकारक लोहिता - लाल अग्निभुवः - अग्नि से उत्पन्न महीसुत - भगवान शिव की संतान भू-सुत - भूमि का पुत्र धराज - धरा यानि पृथ्वी पुत्र क्रूरनेत्र - क्रूर आंखों वाला मिर्रीख, लोहितांग, अवनिज, क्षितिनंदन आदि। अर्थात आंखों में कांइयांपन, जवान शरीर, पतली कमर, हल्का रक्त वर्ण, पित्त प्रधान प्रकृति, चंचल बुद्धि, उदार व प्रतापी ये मंगल की विशेषतायें हैं।

वातावरण:- मंगल ग्रह के वातावरण को लोहिता अर्थात लाल कहा जाता है। यह नौ रश्मियों युक्त और जलीय स्थल वाला है। ‘‘लोहितो नवरश्मिस्तु स्थानमाप्यं तु तस्य वै’’ जन्म:- ‘‘मत्स्य पुराण’’ अनुसार सभी ग्रह सूर्य की रश्मियों से पैदा हुये हैं। ‘‘संवर्धनस्तु यो रश्मिः स योनिर्लोहितस्य च’’ अर्थात लोहिता यानि मंगल भी सूर्य की उन रश्मियों की पैदावार है जिसे ‘‘संवर्धना’’ कहते हैं।

भगवान शिव से संबंध: ‘‘स्कन्द पुराण’’ के अनुसार जब भगवान शिव को सती के मरने का दुख हुआ तो उन्होंने कैलाश पर्वत पर तांडव किया जिससे उनके शरीर में अतिरिक्त ऊष्मा उत्पन्न हुई और माथे से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी.. इस बूंद से एक बालक उत्पन्न हुआ जिसके शरीर का रंग लाल था, उसकी चार भुजायें थीं, तन से एक विशेष प्रकार की गंध आ रही थी और उसने रोना शुरू कर दिया था।

धरती माता ने उस बालक को गोद में लिया और दूध पिलाकर शांत कियाइस बात से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर धरती यानि भूमि को वरदान दिया कि यह बालक अब उसके नाम से जाना जायेगा। क्योंकि बालक का पालन पोषण भूमि ने किया था, अतः बालक भूमि-पुत्र, भौम और कुज कहलाया। भगवान शिव के पसीने से मंगल की उत्पत्ति अवंति (उज्जैन) के पास हुई थी। आज भी वहां शिप्रा नदी के तट पर मंगल (मंगलान्था) का मंदिर है।

भगवान विष्णु से संबंध:- ‘‘देवी भागवत’’ में बताया गया है कि वराह के रूप में अवतार लेने वाले महाविष्णु की पत्नी भूमि देवी यानि पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है। अग्नि से संबंध:- एक अन्य पुराण के अनुसार कुमार यानि मंगल, अग्नि और स्वाहा (अग्नि की पत्नी) की संतान है। कुमार कई नामों से जाना जाता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- भौम, गुहा, महासेना, शक्तिधारा, श्रभु, सेनापति।

मंगल के कारकत्व:- ‘‘उत्तर कालामृत’’ के अनुसार मंगल से निम्न विषयों का


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विचार करना चाहिये:- शूरता, भूमि, राज्य, चोर, विरोध, शत्रु, पशु, राजा, क्रोध, विदेशगमन, अग्नि, पित्त, घाव, छोटा कद, रोग, शस्त्र, कडवा, ग्रीष्मऋतु, शील, तांबा, दक्षिण दिशा, सेनाधीश, वृक्ष, भ्राता, दंडाधिकारी, सांप, तर्कशक्ति, गृह आदि।

विभिन्न भावों में मंगल के फल ः- ‘‘मानसागरी’’ के अनुसार मंगल के विभिन्न भावों में स्थित होने से निम्न फल मिलते हैं - प्रथम भाव में - शरीर में रोग, चंचल; द्वितीय - तेज और चटोरा ; तृतीय- विद्वान, साहसी; चतुर्थ - कष्ट भोगने वाला, दुखी ; पंचम - धन व संतान की कमी ; षष्ट - बलवान, शत्रु विजेता ; सप्तम - पत्नी से निष्कासित ; अष्टम - स्वस्थ व खुश ; नवम - घायल, भाग्यहीन ; दशम - विद्वान व साहसी ; एकादश - धनी व सम्मानित ; द्वादश - निर्धन व बीमार। मंगल के व्यवसाय:- ‘‘उत्तर कालामृत’’ के अनुसार मंगल ग्रह से संबंधित निम्न व्यवसाय होने चाहिये ः- अग्नि, बिजली, रेडियो, भट्ठी आदि के सभी कार्य। बारूद, बंदूक, तोप तलवार आदि शस्त्रों के कार्य, सेना से संबंधित कार्य, मंगल की पूजा:- मंगल की शांति के लिये निम्न दिन शुभ कहे जाते हैं -

Û मंगलवार मंगल ग्रह के लिये शुभ दिन है।

Û जब कभी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी मंगलवार को आती है तो यह दिन मंगल की पूजा के लिये शुभ माना जाता है। इसे अंगारक चतुर्थी भी कहते हैं।

Û ‘‘स्कन्द पुराण’’ के अनुसार षष्ठी तिथि को भी मंगल की पूजा के लिये शुभ कहा जाता है क्योंकि इसी दिन मंगल को सेनापति बनाया गया था। इस दिन मंगल की पूजा करने से धन व पुत्रलाभ मिलता है। ‘‘अपुत्रो लभते पुत्रमधनो पि धनं लभेत’’

Û यदि अंगारक चतुर्दशी को मंगल की पूजा की जाये तो सौ सूर्य ग्रहणों के बराबर फल की प्राप्ति होती है। मंगल ग्रह की प्रार्थनायें:- ‘‘स्कन्द पुराण’’ के अनुसार अंगारक शक्तिधरो लोहितांगो धरासुतः। कुमारो मंगलो भौमो महाकायो धनप्रदः।। ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशनः। विद्युत्प्रभो व्रणकर कामदो धनहत् कुजः।। सर्वा नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम्।।



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