सर्वकल्याणकारिणी हैं लक्ष्मी स्वरूपा माँ पद्मावती
सर्वकल्याणकारिणी हैं लक्ष्मी स्वरूपा माँ पद्मावती

सर्वकल्याणकारिणी हैं लक्ष्मी स्वरूपा माँ पद्मावती  

राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
व्यूस : 6658 | अकतूबर 2016

आदि अनादि काल से धर्म सम्मत रहे भारतवर्ष में सनातन देवी-देवताओं के पूजन क्रम में धन की अधिष्ठात्री देवी विष्णु प्रिया लक्ष्मी जी की आराधना विभिन्न अभीष्टों की पूर्ति के लिए की जाती है। इतिहास गवाह है कि वैदिक कालीन त्राय महादेवी यथा महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती में एक महालक्ष्मी को धन, वैभव, ऐश्वर्य, संपत्ति व सुख-संपदा का आधार स्वीकारा जाता है जिनकी उपासना का क्रमवार रूप गुप्तकाल के पूर्व से संपूर्ण भारतीय प्रायद्वीप में निर्बाध रूप से दृष्टिगत होता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन अनुशीलन से ज्ञात होता है कि कितने ही राजवंशों ने राजमहिषी व कुल देवी के रूप में देवी महालक्ष्मी को स्थान दिया है। और तो और राजकीय पत्र, राज मुहर व अर्थ विभाग के कागजात भी लक्ष्मी देवी के अंकन से युक्त हैं। ऐसे तो संपूर्ण देश में माता लक्ष्मी के कितने ही देवालय विराजमान हैं जिनका अपना महिमाकारी इतिहास रहा है पर इन सबों के मध्य तिरूपति की माता पद्मावती मंदिर का विशिष्ट स्थान है जिसे देव श्री वेंकटेश्वर स्वामी की अद्र्धांगिनी रूपी अधिष्ठात्री शक्ति स्वीकारा जाता है। तिरूपति नगर मुख्यालय से तकरीबन पांच कि.मी. दूरी पर अलामेलु मंगापुरम अर्थात् त्रिरूचानूर में देवी जी का यह देवालय विराजित है जिसे कलियुग की जाग्रत लक्ष्मी देवी के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय स्तर पर इसे ‘मंगपद्मा’ भी कहा जाता है जहां का सर्वप्रधान पुण्यमय तीर्थ पù सरोवर है। इसी पù सरोवर के पास माता पद्मावती का विशाल व आकर्षक मंदिर शोभायमान है। कहा जाता है कि श्री पद्मावती देवी के दर्शन के बाद ही तिरूमल तिरूपति यात्रा का पुण्यफल सहज में प्राप्त हो जाता है।

पुराण प्रसिद्ध तथ्य है कि त्रिरूचानूर में स्वामी शुकदेव जी ने तपस्या की थी तो तिरूपति नगरस्थ संत रामानुज ने 15वीं शताब्दी में तिरूमाला पर्वत के नीचे गोविंद राज की विग्रह स्थापित की थी। तिरूपति तिरूमाला देव-स्थानम् अर्थात टीटी. डी. की तरफ से जिन देवालयों का राग-भोग सहित समस्त कार्यों का निर्वहण किया जाता है उसमें माता पद्मावती मंदिर भी एक है। इतिहास स्पष्ट करता है कि इस पुण्यकारी मंदिर का प्रथम निर्माण पल्लव शासन काल में हुआ जिसे कालान्तर में चोल शासकों ने नवशृंगार प्रदान किया। मंदिर से जुड़े धार्मिक कथा बताते हैं

कि नारद जी के कारण लक्ष्मी व पद्मावती देवी के वाद-विवाद को देखकर श्री निवास (विष्णु) शिलारूप धारण कर तिरूमाला पर्वत पर विराजमान हो गए। इस पर लक्ष्मी व पद्मावती दोनों को श्रीनिवास ने आदेश दिया, तदनन्तर लक्ष्मी व पद्मावती श्री निवास के वक्ष स्थल में प्रवेश कर गयीं। इस पर देव श्रीनिवास ने कहा- हे पद्मावती, हे लक्ष्मी रूपिणी ! तुम अपनी निज स्वरूप को जो मेरे बाएं वक्षस्थल में समाहित की हो उसी अंश तत्व से पù सरोवर में प्रवेश कर सदा भक्तों की रक्षा करो। मैं प्रत्येक दिन आधी रात के बाद तुम्हारे यहां आकर सुप्रभाव के समय आनंद विलय में रमण करूंगा। श्रीनिवास जी के आदेशानुसार देवी ने देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा द्वारा निर्मित पù सरोवर में प्रवेश कर शिलारूप धारण किया और उस जमाने से लेकर आज तक जन-जन का उद्धार कर रही हैं।


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विवरण है कि देवी लक्ष्मी बारह वर्ष बाद अपनी गहन तपस्या के उपरांत अलामेलु मंगापुरम् में एक पद्म (लाल कमल पुष्प) पर भगवान श्री बाला जी को दर्शन देकर कृत्य-कृत्य हो गयीं। कहीं-कहीं ऐसा भी विवरण आया है कि देवी आकाश राज के यहां कन्यारूप में प्रकट हुईं जिसे आकाश राज ने कन्या को घर ले आकर पुत्री के रूप में पालन किया यही जो एक लाल कमल पुष्प में प्रकट हुईं। इनका वैवाहिक संस्कार श्री बाला जी के संग संपन्न हुआ। इस सरोवर की गणना तिरूपति के पुण्यप्रद 365 तीर्थों में की जाती है। कहते हैं विवाह में बाला जी देवता ने धन के देवता श्री कुबेर स्वामी से कर्ज लिए थे जिसकी वार्षिक पूर्ति दान वसूल कर किया जा रहा है। यही कारण है कि ‘श्री वेंकटेश्वर माहात्म्य’ में बाला जी स्वयं कहते हैं ‘हे देवी ! तुम मेरे भक्तों को अपार धन सम्पत्ति दो तभी तो वे हमारे धाम में दान करेंगे और हम कर्ज मुक्त हो पाएंगे। यही कारण है कि तिरूपति दर्शन के पहले या बाद (अपनी मान्यता व विज ब्राह्मणों के मतानुरूप) भक्त बंधु माता जी के इस दिव्य धाम का दर्शन अवश्य करते हैं।

माता जी का यह मंदिर चार-चार विशाल द्वार व गोपुरम से युक्त है। इसका अलंकृत ऊंचा शिखर दूर से ही निमंत्रण देता प्रतीत होता है। माता जी के इस धाम में तिरूपति की ही भांति प्रसाद रूप में लड्डू मिलता है। दर्शन के नाम पर शुल्क की भी व्यवस्था है। यहां अंदर में माता जी के स्थान के अलावे भोले भंडारी, मुरुगन-स्वामी, गणेश, भैरव, काली व सरस्वती तीर्थ भी विराजमान हैं। विवरण है कि बगैर पद्मावती देवी दर्शन के तिरूपति दर्शन अपूर्ण है। तिरूपति रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड के साथ गंुटूर, रेजिगुंडा अथवा चेन्नई से यहां आना सहज है।

ऐसे तो पूरे देश में द्वादश प्रधान देवी तीर्थ में पंचम स्थान पर शोभित कोल्हापुर की महालक्ष्मी, रामेश्वरम् का महालक्ष्मी तीर्थ, चंबा का लक्ष्मी नारायण मंदिर, काशी की लक्ष्मी, द्वंद की महालक्ष्मी, पणजी की माता लक्ष्मी, विंध्याचल की अष्टभुजी मां, जगन्नाथ पुरी की महालक्ष्मी, उत्तराखंड का बागंड नारायण मंदिर, श्री नगर की माता लक्ष्मी, मथुरा लाल दरवाजा की माता लक्ष्मी आदि का पूरे देश में नाम है तो कश्मीर की माता वैष्णो देवी, ओडीशा की माता तारिणी, पटना की माता पटन-देवी, गया की माता सर्वमंगला गौरी और उज्जैन की हरसिद्धि माता को लक्ष्मी स्वरूपा स्वीकारा जाता है। ऐसे अरब सागर के तट पर मालाबार हिल्स की उत्तरी दिशा में भूलाभाई मार्ग पर स्थित महालक्ष्मी मंदिर देश के लक्ष्मी जी के आधुनिक तीर्थों में उत्तमोत्तम है।

तिरूपति नगर मंे माता जी के इस मंदिर के अलावे कोदंडरम स्वामी मंदिर, श्री कपिलेश्वर स्वामी मंदिर, श्री निवास मंदिर, गोविंद राम स्वामी मंदिर, इस्काॅन मंदिर, मुरूगन स्वामी मंदिर आदि के दर्शन का अपना विधान है। यहां से करीब 30 किमीदूरी पर ‘‘कालहस्ती तीर्थ’’ का दर्शन भी जानकार लोग अवश्य करते हैं जहां की वायुतत्व लिंग कथा पूरे देश में प्रसिद्ध है।

माता जी के इस दरबार में ऐसे तो सालों भर यात्री व भक्तवंृद आते हैं पर ‘‘वैकुण्ठ महोत्सव’ में यहां तिल भर रखने की भी जगह शेष नहीं रहती। सचमुच पद्मावती मंदिर महालक्ष्मी जी का मंगलकारी तीर्थ है जिसके दर्शन से समस्त बाधाओं की विमुक्ति हो मानव प्रगति पथ पर अग्रसर हो जाता है।


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