पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कई ऐतिहासिक व सांस्कृतिक स्थल झारखंड राज्य में अवस्थित हैं जो अपने समृद्ध सांस्कृतिक एवं धार्मिक अतीत के कारण युगों-युगों से देश-विदेश के पर्यटकों एवं श्रद्धालु-भक्तों के आकर्षण के केंद्र रहे हैं। सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व के इन ऐतिहासिक स्थलांे में सर्व प्रसिद्ध हैं ईटखोरी का मां भद्रकाली मंदिर। दूर-दूर तक विस्तृत शैल मालाओं, निसर्ग नयनाभिराम सौंदर्य से लदे वनप्रांतरों और बरसाती यौवन से इतराती दो पहाड़ी नदियां यथा बकसा और महाने के संगम से घिरा ईटखोरी प्रखंड मुख्यालय से 1 कि.मी. दूरी पर स्थित मां भद्रकाली मंदिर अपनी विशेष यश शक्ति के कारण देश भर के देवी मंदिरों में प्रथम पंक्ति में गणन योग्य है।
सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक अस्मिता की रक्षा के लिए प्राचीनकाल से चर्चित उŸारी छोटा नागपुर प्रमंडल में चतरा जिला के ईटखोरी प्रखंड में स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग-2 (जी.टी.रोड) पर बसे चैपारण से 96 कि.मी. दक्षिण की ओर अवस्थित मां भद्राकाली मंदिर परिसर में पहुंचते ही सिद्ध पीठस्थ शक्ति का अनुभव होता है। यह एक जाग्रत सिद्धपीठ है जो साधकों, योगियों, तांत्रिकों, श्रद्धालु-भक्तों आदि का युगयुगीन प्रामाणिक केंद्र के रूप में सर्वमान्य है। मां भद्रकाली का मंदिर हिंदुओं, बौद्धों एवं जैनियों में समान रूप से पूजनीय है। पूरे भारतवर्ष में बहुत कम ऐसे स्थान हैं जिन्हें लगभग सभी धर्मों में समान रूप से आदर प्राप्त है। अभी मई माह की 23 तारीख को यहीं नदी तट से एक विशाल मुखलिंग की प्राप्ति होने से पूरे देश के पुराविदों का ध्यान पुनश्च एक बार यहां गया है।
भारतवर्ष का यह दूसरा विशाल मुखलिंग स्वीकार किया जा रहा है। आदि-अनादि काल से मां भद्रकाली के अतिशय उद्भव क्षेत्र या श्रेष्ठ पूजन स्थल के रूप में स्वीकार्य इस स्थल का प्राच्य नाम भदुली (भैदुली) मिलता है जहां आज इसी नाम की एक सरिता प्रवाहित है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार प्राचीन संस्कृति के साधक व देवी तथ्य के सुविज्ञ ज्ञाता महामुनि मेघा ऋषि का आश्रम भदुली में ही था। यहीं चैत्र वंशीय राजा सुरथ ने मेघा मुनि के मार्ग दर्शनोपरांत देवी सिद्धि की प्राप्ति की थी। समाधि वैश्य ने भी इसी स्थान पर देवी वरदान पाकर कृत-कृत हुए थे। विवरण है कि कार्तिकेय एवं महासूर शंखचूड़ के मध्य प्रत्यंकारी युद्ध प्रकरण में अवतरित भगवती भद्रकाली की पूजार्चना व तपस्या ‘राजा सुरथ’ और समाधि वैश्य’ ने महाने नदी के तट पर अवस्थित ‘तमासीन’ वन में की थी।
भद्रकाली मंदिर पौराणिक महत्व यहां के ऐतिहासिक पुरातात्विक अवशेषों के निरीक्षण से स्पष्ट होता है कि किसी जमाने में यहां विशाल पूजन स्थल व राज महल रहा होगा। मंदिर परिसर के आस-पास आज भी ध्वस्त भवन की अद्भुत ईटें, प्राचीन कलात्मक स्तंभ और अनेक प्रकार के दुर्लभ पाषाण कला कौशल के उत्कृष्ट नमूने प्राचीन गौरव गाथा का व्याख्यान करने में सक्षम हैं। स्वीकार किया जाता है कि यहां रामायण काल में श्रीराम, लक्ष्मण व जानकी का चार दिन विश्राम हुआ था तो महाभारत काल में विराट देश की यात्रा के पूर्व पांचांे पांडव यहां आये थे। मगध देश के राजा भद्रसेन के देवी आराधना की यह भूमि मगध के प्रख्यात तांत्रिक भैरवानंद के जमाने में जगत् चर्चित हुई।
माॅ भद्रकाली के इस स्थल का नाम ईटखोरी मूलतः पाली शब्द ‘इत्खोई’ से संबंध जान पड़ता है अर्थात् जहां तथागत की विमाता गौतमी ने अपने मनः पुत्र को खो दिया वही यह स्थान ईटखोरी है। विवरण है धर्म मार्ग की खोज में घर से निकले तथागत को उनकी मौसी यहीं आकर घर लौटने के लिए काफी अनुनय-विनय किया पर शिद्वार्थ न माने और यहीं से राजगृह तद्परांत गया की ओर प्रमृत्र हुए थे। जैन धर्म में भी इस स्थल का सुनाम है यही कारण है कि न सिर्फ झारखंड वरन् मगध, मिथिला, भोजपुर, अंग बंगला के यात्री भी यहां नित्य आते रहते हैं। विवरण है कि 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ जी का जन्म स्थल भैदुली ही है जहां 10वीं शती उŸारार्द्ध में उनका इहलोक में आगमन हुआ था।
आज का भद्रकाली मंदिर परिसर न सिर्फ धार्मिक कृत्य वरन् सामाजिक कार्यों में काफी सहयोग कर रहा है। यहां का विशाल परिसर सदैव शादी-ब्याह, छेका, तिलक व छठी-समारोह से अटा-पटा रहता है। साल के दोनों नवरात्र के अतिरिक्त किसी भी पर्व-त्यौहार व नववर्ष के दिन यहां दूर-दूर के भक्तों के आगमन से मेला लग जाता है। मंदिर की विशेषता: मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही विशाल यज्ञशाला का दर्शन होता है। इसी के बाद मां का मंदिर है जहां गये गृह में मां का प्रभावोत्पाद विग्रह मातृ तत्व से परिपूर्ण है। इनके दोनों तरफ भद्रकाली की गणचर ‘जया’ व ‘विजया’ विराजमान हैं तो नीचे तलीय भाग में एक घोड़ा व एक हाथी शोभायमान है। मातृ विग्रह के दोनों तरफ दो-दो देव मूर्तियां का दर्शन किया जा सकता है जो ‘विष्णु’ सूर्य नारायण’, ‘भैरव’ व ‘सिद्धेश्वरी’ के बताए जाते हैं।
इसी कक्ष में ताखाओं में भी देव विग्रह विराजमान हैं जिनमें ‘उमाशंकर’ के विविध रूप-शैली का सुंदर अंकन हुआ है। धीरे-धीरे इस स्थल का सुंदर विकास हो रहा है। ऐतिहासिक संपदाओं एवं लोक कथाओं में इस पूरे स्थल का अक्षुण्ण महत्व है। इस मंदिर परिसर में सुफलनाथ महादेव, सहस्त्रलिंग महादेव, कौटेश्वर महादेव, कनुनिया मार्द, श्री भैरव नाथ, श्री बजरंग बली व नवसृजित सप्रमाद का स्थान दर्शनीय है। सहस्त्रलिंग महादेव में 1008 लिंग विराजमान हैं। तो कौटेश्वर महादेव 15 फीट ऊंचा विशाल बौद्ध स्तूप है जिसके ढक्कन को हटाने पर उस गड्ढे भाग में सदैव जल भरा रहना अपने आप में एक अचरज की बात है।
यहां महालिंगनुमा बौद्ध स्तूप इस बात का सूचक है कि यह स्थल शैव व बौद्ध फार्क के लोगों का समन्वय स्थल रहा है। कैसे पहुंचें: कभी यहां का विशाल सरोवर व पास बहती नदी इसकी सौंदर्य को श्रीवृद्धि करती थी पर आज पानी की मार से यहां का कुछ भाग आकर्षण खोता जा रहा है। तथापि भद्रकाली का यह स्थान अपनी चमत्कारी शक्ति के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। यहां आने के लिए निकटतम् हवाई अड्डा रांची है जो यहां से 156 कि.मी. दूरी पर है। यहां सभी के जेब के लायक खाने व ठहरने का स्थान होने से परिभ्रमणकारियों को कोई परेशानी नहीं होती। कुल मिलकार प्रकृति के सुरम्य वातावरण में विराजमान मां का यह महिमाकारी स्थल दर्शनीय है जहां साल के सभी दिन भक्तों व पर्यटकों का जमावड़ा बना रहता है।