भारत देश की सांस्कृतिक राजधानी और मंदिरों की महानगरी वाराणसी में मंदिरों की कोई कमी नहीं। काशी तीर्थ में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक एक से बढ़कर एक मान्यता प्राप्त पौराणिक देवालय हैं पर इनकी कुल संख्या कितनी है यह गहन शोध का विषय है। समय के साज पर यहां कितने मंदिर बने फिर कालांतर में उजाड़ होते चले गए...
स्वर्णिम युग से अवसान का युग प्रारंभ हो गया पर इन सबों के मध्य वाराणसी के काल भैरव मंदिर की अपनी विशिष्ट महत्ता है जिसे देश के ख्याति प्राप्त भैरव तीर्थों में प्रथम स्थान पर परिगणित किया जाता है। काशी तीर्थ के भैरव नाथ मुहल्ले में विराजमान काल भैरव को काशी तीर्थ का क्षेत्रपाल कहा जाता है और काशी के कोतवाल के नाम से इनकी प्रसिद्धि संपूर्ण जंबूद्वीप में है। यहां स्थल मार्ग (काशी विश्वनाथ से आगे) व जलमार्ग (गंगा जी में नाव से होकर) दोनों से आना सहज है।
भारतीय वाङ्गमय में विवरण मिलता है कि ब्रह्मा और कृतु के विवाद के समय ज्योतिर्निगात्मक शिव का जगत् प्रादुर्भाव हुआ, जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिवजी का अपमान किया तब उनको दंड देने के लिए उसी समय भगवान शिव की आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने भैरव जी को वरदान देकर उन्हें ब्रह्मा जी को दंड देने का आदेश दिया।
सदाशिव ने भैरव का नामकरण करते हुए स्पष्ट किया कि आपसे काल भी डरेगा। इस कारण इस लोक में ‘काल भैरव’ के नाम से आपकी प्रसिद्धि होगी। काशी में श्री चित्रगुप्त और जयराम का कोई अधिकार तो नहीं होगा वरन् काशी में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा और पापी व्यक्ति के शमन-दमन का एकमेव अधिकार आपके हाथों में होगा।
विवरण है कि भैरवजी ने ब्रह्मा जी का पांचवां सिर त्रिशूल से काट दिया। ऐसे कहीं-कहीं यह भी चर्चा है कि श्री भैरव ने अपने बाएं हाथ के नख (नाखून) से ब्रह्माजी का पांचवां सिर नोच लिया। लेकिन इसके बाद वह कपाल इन्हीं की हाथों से सटा रहा और प्रभु भैरव जी को ‘ब्रह्म हत्या’ का पाप लग गया। सभी लोकों और तीर्थ उपतीर्थ में भ्रमण करते-करते जब भैरव बैकुंठ लोक पहुंचे तो उन्हें भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के त्रिशूल पर विराजमान तीनों लोकों से न्यारी काशीपुरी जाने का परामर्श दिया। इसके बाद भैरव काशी तीर्थ आए।
काशी में इनके हाथ से जहां वह कपाल विमुक्त हुआ वह तीर्थ कपाल मोचन के नाम से जगतख्यात हुआ। काशी के तीर्थों में कपालमोचन एक पुरातन तीर्थ है जिसके दर्शन से भैरव कथा की वह घटना जीवंत हो जाती है। विवरण है कि काल भैरव जी के दर्शन व आराधना के बिना काशी विश्वनाथ की पूजा-अर्चना व काशी-वास पूर्ण सफल नही होती, ऐसी स्थिति में साधक अधोगति को प्राप्त करता है।
काशी तीर्थ में काल भैरव की इतनी प्रसिद्धि है कि क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिक्ख, क्या ईसाई, क्या देशी, क्या विदेशी सब के सब बाबा के श्री चरणों में अपना सिर जरूर ही नवाते हैं और बाबा हरेक नतमस्तक का कल्याण अवश्य करते हैं। न सिर्फ काशी वरन् पूरे देश में इस बात की चर्चा है कि कालभैरव में जो जिस भाव से आता है उसकी संपूर्ति प्रभु बम-बम भैरव अवश्य किया करते हैं। प्राच्य काल में बाबा काल भैरव का मंदिर कब और किसने बनाया स्पष्ट नहीं होता पर अकबर के शासन काल में संपूर्ण काशी क्षेत्र में राजा मानसिंह ने सवा लाख देवालयों का या तो निर्माण कराया या नवशृंगार ......
उसी में इस देवालय की भी गणना की जाती है। विवरण है कि 1825 ई. में बाजीराव द्वितीय ने स्वयं निर्देशित कर काशी के कोतवाल काल भैरव जी के देवालय का नव शृंगार कराया। आजादी के बाद इस मंदिर की व्यवस्था व मार्ग में और भी सुधार किए गए।
काल भैरव मंदिर के प्रथम दर्शन से ही इसकी प्राचीनता का स्पष्ट अनुभव होता है। यहां गर्भगृह में ऊंचे पाठ पीठ पर कालभैरव की आकर्षक व प्रभावोत्पादक विग्रह देखी जा सकती है जो चांदी से मढ़ी है और भक्त वात्सल भाव से ओत-प्रोत है। मंदिर के आगे बड़े महावीर जी व दाहिने मंडप में योगीश्वरी देवी का स्थान है। मंदिर के पिछले द्वार के बाहर क्षेत्रपाल भैरव की मूर्ति है। पास में ही दंडपाणि मंदिर, कामरूप, नवग्रहेश्वर महादेव व थोड़ी दूर पर कालेश्वर महादेव का पुरातन स्थान है।
स्वयं भैरव जी के इस मंदिर में एक से बढ़कर एक पुरा व तांत्रिक महत्व के विग्रह शोभायमान हैं। ज्ञातव्य है कि काशी के देवी-देवताओं में श्री काशी विश्वनाथ सहित 15 विनायक, 9 दुर्गा, 8 गौरी, 12 आदित्य व 16 केशव के साथ अष्ट भैरव की गणना की जाती है और इनके स्थान भी यहां निर्दिष्ट हैं। इनके नाम बटुक भैरव, क्रोध भैरव, दंडपाणि (शूल पाणी), भूत भैरव (भीषण भैरव), कपाल भैरव, चंड भैरव, आसितांग भैरव व आनंद भैरव मिलते हैं।
धर्मज्ञों की राय में देश भर में काल भैरव के त्रिप्रधान तीर्थ हैं उज्जैन के भैरवगढ़ के काल भैरव, काशी के काल भैरव और गया के श्री भैरवस्थान के काल भैरव; पर इन तीनों में और संपूर्ण देश के भैरव तीर्थों का श्री पति ‘काल भैरव’ को स्वीकारा जाता है। ऐसे तो हरेक दिन भक्तों का यहां आगमन होता है पर प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को होने वाले वार्षिक महापूजन में यहां दूर-देश के भक्तों के आगमन से मेला लग जाता है।
अस्तु ! देश भर के भैरव तीर्थों में काशी के काल भैरव की महत्ता अक्षुण्ण है। भैरव पूजन व साधना-आराधना का यह स्थल जागृत है तभी तो भैरव कृपा से काम में विघ्न नहीं होता और समस्त मार्ग सहज ही खुल जाते हैं।