श्री महावीर निर्वार्ण्ण भूमि : पावन तीर्थ पावापुरी डॉ. राकेश कुमार सिन्हा 'रवि' सम्पूर्ण भारतीय जैन तीर्थों में बिहार राज्य के प्राचीन मगध क्षेत्र में पूर्वी छोर पर विराजमान पवित्र-पुनीत स्थल पावापुरी का विशिष्ट स्थान है। देशी-विदेशी पर्यटक और जैन भक्तों के अटूट आकर्षण का केंद्र पावापुरी महाश्रमण भगवान महावीर के निर्वाण स्थली के रूप में विश्व विश्रुत है। पावापुरी वही स्थान है जहां 72 वर्ष की अवस्था में 14 वें तथा अंतिम जैन तीर्थकर श्री वर्द्धमान महावीर जी की 526 ई. पूर्व में जीवन गाथा समाप्त हुई और वे परम मोक्ष को प्राप्त हुए। जैन तथा बौद्ध साहित्य में इसे 'निर्वाण' कहा गया है। ज्ञातव्य है कि इसी वर्ष से जैनियों का 'वीर निर्वाण' संवत्' प्रारंभ होता है।
ऐतिहासिक साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि भगवान महावीर धर्म-प्रचार के क्रम में निर्वाण की स्थिति प्राप्त होने का आभास होने पर ही 72 वर्ष की अवस्था के पहले चरण में 'पावा' आए जो राजगृह व नालंदा के मार्ग में अवस्थित गया से कोई ज्यादा दूर नहीं था। इसी 'पावा' में उन्होंने लोक कल्याणार्थ अंतिम प्रवचन दिया और अंत में वहीं प्राण त्यागे जहां आज विशाल सरोवर के मध्य जल मंदिर बना है। विश्वास किया जाता है कि भगवान महावीर का अंतिम संस्कार एक विशाल कमल सरोवर के मध्य किया गया। वैसे जैन आगम शास्त्र में इस सरोवर का नाम 'नौखूद सरोवर भी मिलता है। नाम के पीछे यह तर्क है कि नौखूद द्वारा पवित्र भूमि को खोदकर मिट्टी अपने स्थान पर ले जाने की अभिलाषा से यहां सरोवर बढ़ता गया और नाम ''नौखूद'' पड़ गया।
प्राचीन काल में करीब 50 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत लाल, नीले व सफेद कमल पुष्प से सुशोभित इस सरोवर की वर्तमान शोभा भी देखते बनती है जहां आज भी हजारों रंग बिरंगी मछलियां तैरती नजर आती हैं। मुखय मार्ग से मंदिर तक जाने के लिए पूरे क्षेत्र में अपनी तरह के अनूठे लाल पत्थर का छोटा पुल बना हुआ है जिसके प्रवेश द्वार पर भव्य सिंह द्वार शोभायमान है। पुल की समाप्ति पर भी एक सुंदर प्रवेश द्वार है। मंदिर के चारों तरफ तालाब में घाट बने हैं। तालाब के बीच में बना यह मंदिर निर्माण कौशल में कला की ऐश्वर्य स्वाभाविकता, जीवन की समरसता, अलंकारिता और आध्यात्मिकता का सुंदर मेल है जहां आज भी लोग हर वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या अर्थात् दीपावली के दिन भगवान महावीर जी की निर्वाण तिथि पर सपरिवार आकर उनके श्री चरणों में असीम श्रद्धा व अटूट आस्था व्यक्त करते हैं।
जल-मंदिर के आसपास कुछ धर्मशाला, जलपान-गृह आदि तथा छोटे-बड़े मंदिर भी हैं। आगे थोड़ा हटकर गांव में एक विशाल जैन मंदिर है जिसे गांव मंदिर कहा जाता है। इसकी ऊपरी मंजिल की छत नक्काशी बेजोड़ है। मंदिर में भगवान महावीर का आकर्षक व प्रभावोत्पादक विग्रह दर्शनीय है। पावापुरी का अंतिम पड़ाव समावशरण (समोशरण) है जो दुग्ध धवल संगमरमर से बना जैन वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट नवीनतम् नमूना है। इसे भगवान के अंतिम प्रवचन स्थल पर निर्मित बताया जाता है। भगवान के जीवन-निर्माण में अशोक वृक्ष का विशेष योगदान रहा। इसी कारण इस मंदिर की बाहरी दीवार पर अशोक वृक्ष की कलाकारिता देखने योग्य है। इस मंदिर परिसर में कुछ अन्य मंदिर व धर्मशाला भी विद्यमान हैं। बिहार प्रदेश के त्रिप्रमुख पर्यटन केंद्र यथा राजगीर, नालंदा व पावापुरी में वर्तमान में पावापुरी में पर्यटन के विकासार्थ काफी कुछ कार्य किए गये हैं और हो रहें हैं।
यह सराहनीय बात है। तथापि इसके विकास के कितने ही कार्य शेष हैं। वैसे तो पावापुरी में भ्रमणार्थी पूरे साल आते हैं, पर आने का सही मौसम अक्तूबर से मार्च तक हैं और इसी दौरान देश-विदेश के यात्रियों का यहां नित्य आगमन होता है। पावापुरी जाने के लिए आरामदायक वाहन बिहार शरीफ, पटना, राजगीर, नालंदा, नवादा व गया में मौजूद रहते हैं। यहां दिनभर घूमकर शाम को लौटा जा सकता है। ध्यान देने की बात यह है कि झारखंड राज्य बन जाने के बाद सम्मेद शिखर, पारसनाथ व कोल्हुआ पर्वत उस राज्य में चला गया। ऐसे में बिहार के लहुआ, बासोकुण्ड, पोगर-पचार, वैशाली, राजगीर, गुणावा, पावापुरी क्षेत्र झारखंड राज्य में चले गये व ब्रह्मयोनि आदि के मध्य पावापुरी जैसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ सुनाम है। आज भी इस स्थल के भ्रमणार्थी यहां की शांति, रमणीयता व वास्तुकला की खूब चर्चा करते हैं और इसकी स्मृति वर्षों तक मानस-पटल पर जीवंत बनी रहती है।