गोचर के शनि का प्रभाव एवं उपाय नरेंद्र टेलर कंटक शनि: जब गोचर शनि चंद्र लग्न से चैथे, सातवें और दसवें स्थान में जाता है, तो उसे कंटक शनि कहते है तब साधारण रूप से कंटक शनि मानसिक दुःख की वृद्धि करता है, जीवन को अव्यवस्थित बनाता है और इस कारण नाना प्रकार के दुःखों का सामना करवाता है। जब गोचर का शनि चंद्र लग्न से चैथे स्थान में होता है, तब जातक के निवास स्थान में अवश्य ही परिवर्तन होता है और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ जाता है। चंद्र लग्न से जब गोचर का शनि सातवें स्थान में होता है, तब जातक का परदेश वास होता है और यदि वह सप्तम स्थान पर चर राशि का हो, तो यह फल अवश्य ही होता है। चंद्र लग्न से यदि गोचर का शनि दसवें स्थान में होता है, तब जातक के व्यवसाय एवं नौकरी आदि में गड़बड़ी होती है और असफलताएं मिलती हैं। इस प्रकार कुंडली में स्थित अशुभ शनि के प्रभाव, गोचर शनि के दुष्प्रभाव तथा दशा-अंतर्दशाओं में ग्रह पीड़ा के निवारण हेतु जातक को चाहिए कि वह, श्रद्धा से युक्त, पवित्र और एकाग्र चित्त हो कर, शनि की लौह प्रतिमा का शमी पत्रों से पूजन करे, तिल मिश्रित उड़द भात, लोहा, काली गौ, या बैल ब्राह्मण को दान करे तथा शनिवार के दिन निम्न स्तोत्र का पाठ करे। नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च। नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः।। नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोअस्तु ते।। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने।। नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोअसतु ते। सूर्यपुत्र नमस्तेअस्तु भास्करेअभयदाय च।। अधोदृष्टे नमस्तेअस्तु संवर्तक नमोअस्तु ते। नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोअस्तु ते।। तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्थं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः।। ज्ञान चक्षुर्नमतेअस्तु कश्यपात्मजसूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात्।। देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगाः। त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः।। प्रसाद कुरू मे देव वरार्होअहमुपागतः।। शनिवार को सवेरे उठ कर इस स्तोत्र का पाठ जो भी करता है तथा पाठ होते समय जो श्रद्धापूर्वक इसे सुनता है, उसके लिए शनि की पीड़ा कम होगी तथा पाप से शीघ्र मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।