शनि सूर्य संबंध आचार्य दलीप कुमार शनि को सूर्य पुत्र कहा जाता है सूर्य प्रकाश है, शनि अंधकार है। सूर्य जीवन है और शनि मृत्यु का कारक है। सूर्य उŸारायण में बली होता है और शनि दक्षिणायन में बली होता है। सूर्य मेष राशि में उच्च और तुला राशि में नीच हो जाता है। जिस राशि में सूर्य उच्च फल प्रदान करता है, उसी राशि में शनि नीच हो जाता है और सूर्य जिस राशि में नीच होता है उसी राशि में शनि उच्च फल प्रदान करता है। जहां सूर्य बलहीन हो जाता है, वहां शनि बली हो जाता है। सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और सूर्य से प्रकाश लेते हैं सूर्य में अपना प्रकाश है। शनि सूर्य से सबसे अधिक दूर स्थित हैं, इसीलिए सूर्य का प्रकाश शनि तक पहुंच नहीं पाता है। शनि का रंग प्रकाशहीनता के कारण काला है। सूर्य-शनि ज्योतिषीय योग फल: न्यायकारी ग्रह शनि, सूर्य के पुत्र हैं। सूर्य आत्मकारक, प्रभावशाली, तेजस्वी ग्रह है। प्रकृति का नियम है कि अंधकार और प्रकाश एक स्थान पर नहीं रह सकते। सूर्य के आने पर अंधकार को मिटना ही होता है। यदि सूर्य-शनि युति योग किसी जातक की कुंडली में बन रहा हो, जिसमें सूर्य शनि राशि में या शनि सूर्य राशि में हो उन व्यक्तियों को सरकारी कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक को समय समय पर आत्मविश्वास में वृद्धि के उपाय करते रहते चाहिए। व्यक्ति को उच्च पद और उच्चाधिकारियों से संबंध मधुर बनाए रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। यह योग व्यक्ति के जीवन को संघर्षमय बनाता है। शनि-शनि समसप्तक स्थिति में हो, तो पिता-पुत्र में वैचारिक मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं। इस स्थिति में पिता-पुत्र को एक छत के नीचे कार्य नहीं चाहिए। अन्यथा दोनों के संबंध प्रभावित होते हैं।