बिगड़ा मुकद्दर संवारे: शनि धाम पं. मदन लाल राजस्थानी धन-दौलत, यश-अपयश सब कुछ मानव को उसके भाग्य की देन है। कोई काम सिद्ध हो जाने पर इंसान खुश हो जाता है और बिगड़ जाने पर इसे सितारों का खेल बताता है। मुकद्दर को बिगाड़ने और संवारने की जिम्मेदारी सर्वकालिक महान न्यायाधीश श्री शनि देव पर है।
श्री राम पर जब साढ़े साती आयी, तो उन्हें वनवास हो गया और रावण पर जब शनि की दशा पड़ी, तो उसने सीता का हरण कर लिया। शनि देव एक ऐसे ग्रह हैं, जो कल्याणकारक हैं तथा प्रभु भजन न करने वालों के लिए वह मारकेश हो जाते हैं।
दिल्ली में स्थित श्री सिद्ध शक्ति पीठ शनि धाम: महरौली में छत्तरपुर मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर गांव असोला में दुनिया का अद्वितीय शनि मंदिर है, जहां श्री शनि देव जी की प्राचीन अष्ट धातु प्रतिमाएं स्थापित हैं। एक प्रतिमा में शनि देव गिद्ध पर तथा दूसरे में भैंसे पर सवार हैं। साथ में दक्षिणमुखी बजरंगबली की प्रतिमा भी विराजमान है। हर शनिवार को श्री शनि पूजन और शनि परिक्रमा से न सिर्फ भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि उनका बिगड़ा मुकद्दर संवर जाता है। व्यक्ति रंक से राजा बनता है; बशर्ते पूजा विधिवत हो।
यहां विश्व की विशालतम शनि शोभा मूर्ति भी स्थापित की गयी है, जिसका अनावरण अनंत श्री विभूषित शंकराचार्य स्वामी श्री माधवाश्रम जी महाराज, वर्तमान पीठाधीश्वर, बदरिकाश्रम के कर कमलों द्वारा किया गया। शनि ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं। आश्चर्यजनक किंतु सत्य यह है कि देश का प्रथम नव ग्रह मंदिर भी श्री शनि देव की प्रतिमा के पास ही अवस्थित है। असोला में देश की पहली शनि शक्ति पीठ आज श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गयी है।
शनि धाम के विशाल प्रांगण में शनि देव महाराज की भव्य मूर्तियों की स्थापना का विशेष उद्देश्य है- जनहित के लिए सेवा कार्य करना तथा लोगों के मन में बैठी झूठी भ्रांतियों को दूर करना। यहां पर हर शनिवार को, भंडारे का आयोजन कर, प्रसाद बांटा जाता है और गरीबों के लिए भोजन आदि की व्यवस्था की जाती है।
इसके अलावा समय-समय पर गरीबों को कंबल, अनाज और वस्त्रादि का सहयोग भी प्रदान किया जाता है। यहां शनिवार के दिन सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहता है तथा श्रद्धालु सरसों के तेल से शनि देव का अभिषेक करते हैं। जो भी भक्त सच्चे हृदय से सेवा और भक्ति की भावना से यहां आता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कोई विशेष व्यक्तित्व हो, या आम आदमी, श्री शनि देव धाम में सब बराबर हैं।
इस मंदिर में शनि देव की भव्य मूर्ति की स्थापना के पहले यहां 100 करोड़ 25 लाख शनि मंत्र का जाप करवाया गया था। ऐसी मान्यता है कि यहां शनि देव स्वयं जागृत अवस्था में विराजमान हैं तथा जो भी व्यक्ति शनि की ढैय्या और साढ़े साती से परेशान हैं, वे यहां पर सरसों के तेल से अभिषेक करने पर अवश्य लाभान्वित होते हैं। शनि देव को अनुकूल कराने में शनि अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सरसों के तेल से अभिषेक करने और साबुत उड़द आदि शनि देव पर चढ़ाने का विशेष फल होता है। शनि अमावस्या वर्ष में सिर्फ 2, या 3 बार ही पड़ती है।
अतः श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे शनि अमावस्या को, पूजा-अर्चना के साथ, अपने हाथों से शनि देव का तैलाभिषेक भी अवश्य करें। शनि धाम में शनि देव, अपने प्रधान उपास्य शिव शक्ति के साथ ही, आद्या शक्ति श्री काली, दुर्गा की मूर्तियों सहित विराजमान हैं। मंदिर परिसर में, आदि शक्ति सीता और शेषावतार लक्ष्मण के साथ, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, श्री राधा सहित भगवान श्री कृष्ण एवं अंजनी नंदन शंकरावतार वायु पुत्र हनुमान की मूर्तियां भी विराजमान हैं, जो शनि धाम की मोहनीय कीर्ति पताका को चार चांद लगा रही हैं। धन्य हंै शनि देव, जिनकी कृपा से इस धाम की कीर्ति गाथा मात्र संपूर्ण भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु अखिल विश्व में गायी जा रही है। जीवन में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के थपेड़े खाते-खाते हर प्रकार से निराश हो चुके लोगों में भी शनि धाम ने आशा की नवीन किरणें जगायी हैं और शनि देव की ओर से लोगों की सूखी बगिया में भी, सुख-सुकून के वसंत ला, वह उन्हें नयी-नयी खुशियों से नवाजता रहता है।
भारतवर्ष में शनि देव के मंदिर तो कई स्थानों पर हैं, किंतु ऐसी विशेषता अन्यत्र देखने में नहीं आती। शनि धाम में प्रतिदिन प्रातः 6 बजे, मध्याह्न 12 बजे, मध्याह्नोत्तर 3 बजे एवं सायं 7 बजे आरती होती है और ज्योति जलायी जाती है। प्रत्येक शनिवार को प्रातः 6 बजे शनि देव की भव्य आरती की जाती है। मंदिर के द्वार सभी आगंतुक भक्तों के लिए खोल दिये जाते हैं। उसके पश्चात श्रद्धालुओं द्वारा शनि देव का तैलाभिषेक प्रांरभ होता है।
शनिवार को प्रातः 6 बजे से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुजन, स्नान कर, गीले लाल वस्त्र पहन कर, खुली देह, तेल ले कर पंक्तिबद्ध खड़े हो जाते हैं। आरती के बाद शनि देव का प्रसाद ले कर वापस लौटते हैं। यह क्रम हरेक शनिवार को रात्रि के 10-11 बजे तक चलता रहता है। प्रत्येक शनिवार को शनि धाम द्वारा भंडारे का भी आयोजन होता रहता है।
प्रातः 8 बजे से 12 बजे तक भंडारा चलता रहता है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग इच्छानुसार भोजन करते हैं। प्रत्येक रविवार को प्रातः 7 बजे से साढ़े 8 बजे तक ध्यान का कार्यक्रम चलता है। इस कार्यक्रम में गुरु जी के शिष्यगण, ध्यानावस्थित हो, आत्मज्ञान की स्वानुभूति प्राप्त करते हैं। ध्यान कार्यक्रम के पश्चात करीब डेढ़ घंटे तक श्री गुरु जी का सत्संग होता है।
इसके अतिरिक्त वह, जिज्ञासुओं की जन्मकुंडली देख कर, उनके सारे प्रश्नों का समुचित उत्तर दे, उनकी शंकाओं का समाधान भी करते हैं। क्योंकि जिज्ञासुओं की संख्या अधिक रहती है, अतः प्रातः 9 बजे शनि धाम परिसर में आ कर संबंधित व्यक्ति के पास अपना नाम लिखा कर उनसे टोकन ले लेना आवश्यक रहता है, जिससे जिज्ञासुओं को क्रमानुसार बुलाने में आसानी रहती है। उस दिन समयाभाव के कारण जो नहीं मिल पाते, उन्हें समय दे कर दूसरे दिन बुला लिया जाता है। सामान्यतया महर्षि जी 9 बजे से लगातार आगंतुकों से मिलते रहते हैं।
वर्ष में प्रायः 1, या 2 बार शनिवार को अमावस्या तिथि आती है, जो शनि देव की विशिष्ट तिथि मानी जाती है। उस दिन शनि देव का विशिष्ट तैलाभिषेक किया जाता है। इस अभिषेक में स्वयं महर्षि जी भी सम्मिलित होते हैं। अभिषेक के बाद सेवक और श्रद्धालुजन शनि चरणानुरागी महर्षि जी को प्रमाण कर, तिलक लगवा, प्रसाद प्राप्त कर, अनुग्रहीत होते हैं। सामान्तया नव रात्र साल में 4 होते हैं- शारदीय नव रात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से, वासंतीय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से, माघ शुक्ल प्रतिपदा एवं आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से। शनि धाम में शारदीय एवं वासंतीय नव रात्र उत्सव ही विशेष रूप से मनाये जाते हैं। सारे सेवकगण प्रतिपदा को, कलश स्थापना कर, भगवती का पूजन करते हैं। महाष्टमी की अर्ध रात्रि में गुरु जी भगवती का शंृगार पूर्वक, षोड़शोपचार पूजन के बाद, सेवकों को दर्शन करा, प्रसाद एवं आशीर्वाद देते हैं। विशेषता यह है कि परम आदरणीय गुरु जी संगीत और स्तुति के साथ स्वयं दुर्गा रूप हो जाते हैं। बाद में सेवक-सेविकाओं को, आशीर्वाद में वस्त्र और अलंकार आदि दे कर कृत-कृत्य करते हैं। शनि धाम में लक्ष्मी पूजा का विधान अपूर्व एवं विशिष्ट है।
दीपमालिका के पूजन के साथ ही श्री विद्या यंत्र का भी षोडशोपचार पूजन और अभिषेक स्वयं में अलौकिक होता है। त्रयोदशी-धनतेरस को ही प्रत्येक सेवक गुरुजी द्वारा प्रदत्त श्री यंत्र को यहां ला कर, पंक्तिबद्ध शुभासन पर स्थापित कर, प्रदोष काल से अर्ध रात्रि पर्यंत पूजन करते हैं। दीपावली की रात्रि को विशिष्ट पूजन के पश्चात, गुरुजी से तिलक-प्रसाद के साथ, श्री 108 यंत्र ले कर अपने-अपने घर जाते हैं। पूजन शास्त्रीय विधान के साथ श्री गुरु जी के द्वारा संपन्न किया जाता है। श्री सिद्ध शक्ति पीठ शनि धाम की महाशिव रात्रि स्वयं में निराली है। सायं काल से ही सेवक-सेविकाओं का संयुक्त समवेत स्वर में संगीत, नृत्य आदि सचमुच वैवाहिक उत्सव का आनंद दिलाते हंै।
मध्य रात्रि में परम पूजनीय श्री गुरुजी द्वारा शिव जी का भस्माभिषेक होता है। अभिषेक के लिए महाकालेश्वर, उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं रामेश्वर आदि कई तीर्थों के चिता भस्म एकत्रित कर उसी से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक करते-करते श्री गुरुजी स्वयं भी भस्माभिषेक से साक्षात शिव रूप हो जाते हैं। उसी रूप में सौभाग्य प्राप्त होता है। उसके उपरांत ही वह व्रत का पारण करते हैं। प्रत्येक वर्ष पूर्णिमा को गुरु पूजा पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
इस अवसर पर गुरु जी का प्रवचन हर भक्त के अंदर ज्ञान, वैराग्य और भक्ति भावना का संचार करते हैं और उन्हें भक्ति मार्ग में निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हैं। वर्ष में प्रायः 1, या 2 बार शनिवार को अमावस्या तिथि आती है, जो शनि देव की विशिष्ट तिथि मानी जाती है। उस दिन शनि देव का विशिष्ट तैलाभिषेक किया जाता है।