आयु के कौन से वर्ष में कौन सी राशि या भाव के ग्रह प्रभावी होंगे।
आयु के कौन से वर्ष में कौन सी राशि या भाव के ग्रह प्रभावी होंगे।

आयु के कौन से वर्ष में कौन सी राशि या भाव के ग्रह प्रभावी होंगे।  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 16804 | नवेम्बर 2011

आयु के कौन से वर्ष में किस राशि नंव खाना नं. के ग्रह प्रभावी होंगे पं. उमेश शर्मा लाल-किताब पद्धति से फलादेश करते समय इस सूत्र को ध्यान में रखना भी आवश्यक है। इसमें बताया गया है कि आयु का कौन सा वर्ष में कौन से खाना तथा कौन सी राशि के प्रभाव में होगा।

कुण्डली का विस्तार पूर्वक अध्ययन करने के लिए यह सूत्र एक महत्वपूर्ण जानकारी देता है। आयु के किस वर्ष में कौन सी राशि व खाना अपना प्रभाव रखता है वह एक तालिका के द्वारा विस्तार रुप से बताया गया है। उम्र के हिसाब से, असर का खाना नं0 देखते जाऐं अगर कोई खाना नं0 खाली ही आ जाये तो उस खाली खाना नं0 की राशि के स्वामी ग्रह जिस खाना में हो वह खाना लें मगर यह वहम ना करें कि एक ही खाना के ग्रह कई बार क्यों बोले।

उदाहरण के लिए मान लें किसी जातक का 25वां वर्ष चल रहा है। उपरोक्त तालिका के अनुसार 25-27 वर्ष तक कन्या राशि अर्थात कुंडली के खाना नं. 6 में स्थित ग्रहों का प्रभाव होगा। और अगर खाना नं. 6 खाली हो तो खाना नं. 6 का स्वामी बुध जिस भाव में स्थित हो उस भाव को विचार के लिये लंेगे।

कई बार एक ही भाव एक से ज्यादा बार विचार करने के लिए भी आ सकता है। ग्रह का असर हर ग्रह के लिए उसकी ऊंच-नीच हालत, उसका पक्का घर व उसकी अपनी राशि का स्वामित्व सदा के लिए निश्चित है चाहे वह किसी और ग्रह की राशि में ही क्यों न बैठा हो।

उदाहरण: जैसे कि मंगल की ऊंच राशि मकर है और नीच राशि कर्क है तथा वह एक व आठ नं0 की राशियों का स्वामी है एवं उसका पक्का घर तीसरा है अब कुंडली में मंगल किसी भी खाना व राशि में हो उसका अपनी राशि आदि से स्वामित्व न हटेगा। इसी प्रकार प्रत्येक ग्रह अपनी निश्चित राशि में शुभ फल ही करेगा चाहे वह राशि किसी दूसरे ग्रह का पक्का घर हो गयी हो। उदाहरण:

शुक्र स्वामी है नं0 2 और 7 नं0 का परन्तु 2 नं0 पक्का घर है बृहस्पति का।

अब अगर शुक्र 2 नं0 में बैठा होने पर शुभ फल ही देगा और नं0 7 पक्का घर है बुध और शुक्र का अतः शुक्र का फल तो शुभ होगा और बुध का फल शुभ होने के साथ साथ दूसरों को भी मदद देगा। इसी प्रकार अन्य ग्रहो को लेगें।

जैसे बुध नं0 3 और 6 का स्वामी है नं0 3 पक्का घर है मंगल का अब बुध का फल शुभ होगा अगर कुंडली में मंगल शुभ फल का हो तो।

नं0 6 के स्वामी बुध और केतु दोनो है परन्तु नं0 6 पक्का घर है केतु का।

अतः बुध का उत्तम मगर केतु का अपनी स्वयं की वस्तुओं पर अशुभ मगर दूसरो पर अच्छा प्रभाव होगा।

नं0 5 राशि है सूर्य की परन्तु पक्का घर है बृहस्पति व सूर्य का और इसमें सूर्य का शुभ प्रभाव होगा।

नं0 8 का स्वामी है मंगल और पक्का घर है मंगल, चन्द्र व शनि का इस नं0 में यह तीनों ग्रह अगर अलग अलग बैठे तो इनके फल शुभ होगें परन्तु एक साथ बैठे होने पर इनका फल अशुभ हो जायेगा।

नं0 11 का मालिक है शनि परन्तु पक्का घर है बृहस्पति का इसमें शनि का फल शुभ होगा। ग्रह बैठा होने वाले खाना में ग्रह की कारक वस्तुएं स्थित होने से उस ग्रह का प्रभाव बढ़ता है।

जैसे केतु नं0 9 हो तो जद्दी यानि अपने पैतृक मकान में कुत्ता रखने से, अपने दोहते की सेवा करने आदि से केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि होगी।

कुंडली में ग्रह जिस प्रभाव का होता है वह अपना प्रभाव ( अच्छा-बुरा, ऊंच-नीच आदि) सिर्फ उस वर्ष देगा जिस वर्ष कि वह वर्षफल में उस बैठा होने वाले प्रभाव के लिए निश्चित की हुई राशि या पक्के घर में आ जाये।

उदाहरण के तौर पर माना कि कुंडली में बृहस्पति खाना नं0 4 में बैठा है तो बृहस्पति ऊंच का फल सिर्फ उस वर्ष होगा जिस वर्ष वह वर्षफल में अपने नेक होने के खाना नं0 4 या 2 आदि में आ जाये।

जन्म से ऊंच तो है मगर वास्तव में ऊंचपन सिर्फ निर्धारित वर्ष और राशि या खाना नं0 या पक्के घर में आने पर ही प्रत्यक्ष होगा। इसी तरह ही सब ग्रहों का और सब तरह से होगा न हमेशा शुभ और न हमेशा अशुभ होगा।

वर्षफल के अनुसार कुंडली में लग्न अर्थात खाना नं0 1 में आया हुआ ग्रह सबसे पहले उस खाना पर अपना प्रभाव (अच्छा या बुरा) प्रकट करेगा जहां कि वह कुंडली में बैठा है। उसके बाद अपने दुश्मन ग्रहों पर चाहे वह उसी खाना में ही क्यों न हों जिसमें कि वह स्वयं बैठा था। अगर एक ही खाना में कई दोस्त या दुश्मन ग्रह स्थित हों तो ग्रह क्रमवार से ( बृहस्पति के बाद सूर्य के बाद चन्द्र्र आदि) प्रभाव करेगा।

अगर कुंडली के भावों में मित्र और दुश्मन ग्रह अलग-अलग भावों में हों तो क्रमवार भावों (खाना नं0 1 के बाद, खाना नं0 2 के बाद खाना नं0 3 आदि) पर प्रभाव डालेगा। प्रत्येक ग्रह अपना शुभ प्रभाव खाना के लिए निर्धारित फलों के अनुसार करता है परन्तु स्वयं निर्धारित फलों के विपरीत कार्य करने पर उनके प्रभाव में बदलाव हो जायेगा।

उदाहरणार्थः- अगर कुंडली में राहु खाना नं0 4 में हो तो जातक को नई आदत विशेषकर पखानें की आदत नहीं बदलनी चाहिए, ऐसे व्यक्ति से व्यापारिक साझेदारी नहीं करनी चाहिए जिसके लड़का न हो, दत पर कच्चे कोयलों की बोरियां नहीे रखनी चाहिए परन्तु ऐसा करने पर राहु शुभ की अपेक्षा अशुभ प्रभाव देना प्रारम्भ कर देगा।

कुंडली में बृहस्पति खाना नं0 4 जिसमें वह ऊॅंच माना जाता है हो और जातक बृहस्पति से सम्बन्धित वस्तुऐं जैसे पीपल का वृक्ष कटवाना, बुजुर्गों का अपमान करना, साधु-संतों का अपमान करने से बृहस्पति का सोना मिट्टी हो जायेगा अर्थात बृहस्पति के शुभ फल नष्ट हो जायेंगे।

प्रत्येक ग्रह अपना प्रभाव अपने खाना से सम्बंधित वस्तुओं व रिश्तेदारों द्वारा प्रदर्शित करेगा। वर्षफल के सूर्य के हिसाब से माहवारी चक्कर पर जब ग्रह अपने इच्छित खाने में आने पर अपना प्रभाव प्रकट करेगा। यदि कोई ग्रह अपने मित्र/शत्रु ग्रह के खाना में स्थित हो तो उस ग्रह की समयावधि में मित्र/शत्रु ग्रह जिसके खाना में ग्रह स्थित है की समयावधि का योग करके दो से विभाजित कर दें जो भागफल आयेगा उस वर्ष में ग्रह के शुभ/अशुभ फल अवश्य प्राप्त होंगें।

उदाहरण: जैसे किसी जातक के कंुडलीे में सूर्य नवम खाना में स्थित हो तो सूर्य के 22वर्ष और बृहस्पति के 16 वर्ष के जोड़ 38 को 2से भाग देने पर उत्तर 19 आया अर्थात 19 वें वर्ष में जातक को अवश्य सूर्य के शुभ फलों की प्राप्ती होगी। इसी प्रकार अगर सूर्य अगर शनि के दशम या एकादश खाना में हो तो सूर्य के 22 और शनि के 36 वर्ष कुल जोड़ 58 वर्ष को 2 से भाग देने से 29 वें वर्ष अवश्य अपना अशुभ फल देगा।

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