शनि कर्मो का फल देते हैं
शनि कर्मो का फल देते हैं

शनि कर्मो का फल देते हैं  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 13834 | नवेम्बर 2011

‘‘शनि कर्मों का फल देता है’’ महर्षि डाॅ. भारत भारद्वाज वैदूर्यकरंतिरमलः प्रजानांवाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरतः। अन्यापि वर्ण युवगच्छति तत्सवर्णा भसूर्यात्मजः अन्यतीति मुनि प्रवादः। ‘‘आचार्य वाराह मिहिर’’

भावार्थ - शनि ग्रह वैदूर्य रत्न अथवा बाणफूल या अलसी के फूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है तो उस समय प्रजा के लिए शुभ फल देता है। यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता हो तो उच्च वर्णों के लोगों का नाश करता है। शनि ग्रह के बारे में पुराणों में बहुत कुछ कहा गया है शनि सूर्य पुत्र हैं। लेकिन पितृ शत्रु भी है। इसके बारे में अनेक भ्रांतियां हैं। इसीलिए इसे मारक अशुभ और दुःख देने वाला माना जाता है पाश्चात्य इसे ‘‘इविल फेट ब्रिगंर’’ अर्थात दुःख दाता मानते हैं।

प्राचीनकाल की कथानुसार शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं। सूर्य की दो पत्नियां थीं सूर्य की पहली पत्नी सूर्य देव का तेज सहन नहीं कर पाती थी क्योंकि सूर्य के पास जो भी जाता वह भस्म हो जाता था इसलिए सूर्य की पत्नी मन ही मन में व्याकुल रहने लगी। एक रोज विचार आया कि कुछ ऐसा कि मैं सूर्य देव की अद्र्धांगिनी भी बनी रहंू और सूर्य देव भी खुश रहें। तब इसने अपनी छाया को समझाया कि आज से तुम सूर्य देव की पत्नी के रूप में रहो और मैं यहां से कहीं ओर चली जाती हूं। तब से छाया सूर्य की पत्नी के रूप में सूर्य के साथ रहने लगी।

यह बात सूर्य को बिल्कुल भी मालूम नहीं पड़ी और समय अपनी गति के अनुसार गतिमान रहा। इसके बाद शनि का जन्म हुआ और इसके बाद यमुनाजी का जन्म हुआ। शनिदेव महर्षि कश्यप के वंशज हैं। अतः इनका गोत्र कश्यप है। इनकी जाति क्षत्रीय है। इनका रंग श्याम (काला) है। गिद्ध पक्षी एवं भैंसा इनके प्रमुख वाहन हैं। पक्षी गिद्ध अपनी तीव्र दृष्टि, शारीरिक बल, ऊंची उड़ान मांसाहारी और तामसिक प्रकृति के लिए प्रसिद्ध है।

पौराणिक ग्रंथों में शनि के प्रमुख नाम यमागज, रविपुत्र सूर्यपुत्र, दायातयज, अकैसुवन, असित सौकि, नीलकाय, क्रूर कुशांग, कपिलाक्ष और पंगु प्रसिद्ध है। माता के छल के कारण पिता सूर्य ने शाप दिया के शनि तू क्रूरतापूर्ण दृष्टि वाला मंदगामी ग्रह हो जा। पद्म पुराण के अनुसार राजा दशरथ शनि के प्रकोप से अपने राज्य को घोर कष्टों से बचाने हेतु उससे मुकाबला करने पहुंच गये।

शनि राजा दशरथ की प्रजा के लिए किया पुरुषार्थ देख प्रसन्न हो गये और दशरथ को वरदान मांगने को कहा। दशरथ ने विधिवत् शनि की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। दशरथ रचित शनि स्त्रोत जगप्रसिद्ध है। श्रीचमनलाल भारद्वाज अमृतसर पंजाब वालों का दशरथ रचित शनि स्त्रोत अद्भुत शुभ फल देने वाला है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में शनि ने मां पार्वती को बताया कि मैं सौ, जन्मों तक जातक की करनी का फल देता हूं। परमात्मा ने शनि को तीनों लोगों का परम न्यायाधीश बनाया है। शनि हमारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल देता है। यही कारण है। कि न्यायालयों में इसकी प्रधानता है अर्थात न्यायाधीश का कोट काला होता है। वकीलों का कोट भी काला होता है। काला रंग शनि का है और काले रंग की विशेषता है कि इस पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता। शनि की बड़ी सूक्ष्म दिव्य दृष्टि है।

जिसने जो कर्म किया है उसका यथावत भुगतान करते हैं। दक्षिण भारत में अधिकतर मूर्तियों में शनि देव की सवारी कौआ है। शनि जी की मूर्ति के अगल-बगल में कौआ जरूर होता है। कौओं की सवारी वाले शनि तमिलनाडू (मद्रास) में अधिक हैं। कौओं में कुछ विशेषताएं हैं। जिसके कारण शनिदेव की कृपा प्राप्त हुई। जब कभी हम कौओं को रोटी डालते हैं तो कव्वा कांव-कांव चिल्लाकर अपने अनेक साथियों को बुला लेता है। फिर मिल बांटकर खाता है। कव्वा ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की भावना रखता है।

इसीलिए शनिदेव ने वरदान दिया कि श्राद्धपक्ष में तुम्हारा मान बढ़ेगा लोग पितरों की शांति हेतु तुम्हें बुला-बुला कर भोजन करायेंगे। अतः शनि पूर्व जन्म के पुण्य-पाप का फल भी कौओं के भोजन द्वारा मनुष्य को देते हैं पुष्कर राज में पिण्ड दान के समय चाहे आंधी आये, वर्षा आये कव्वा कहीं न कहीं से अपना पिण्ड (पेडा) खाने आ जाता है। यह हमारा प्रत्यक्ष देखा हुआ है।

दिल्ली में दूधिया भैरव पर भी कौओं को दूध अर्पण किया जाता है। जिस प्रकार सुनार सोने को अग्नि में तपाकर पिघला कर उसमें से खोट निकाल शुद्ध करता है। उसी प्रकार शनि भी जातक के दुःखों और कष्टों को अग्नि में जलाकर उसमें से अभिमान और अहम को निकालता है।

शनि का कार्यक्षेत्र भूमि, भूमिकर्म, भूस्वामी, खेती-बाड़ी, भूगर्भीय पदार्थ, मजदूर वर्ग, खान व खनिज पदार्थ, वृद्ध व्यक्ति, प्राचीन स्थल, रात्रि का कारक है, शनि शरीर में पांव, घुटने संधि स्थान विकार, पेट मज्जा, दुर्बलता चोट-मोच, पक्षाघात, गंजापन, केश न्यूनता उन्माद, लंगड़ापन को दर्शाता है शनि अपनी अनिष्ट ढैया, साढ़ेसाती, शनि विशोŸार एवं प्रत्यंतर्दशा में अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार फल देता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अष्टम शनि अकाल मृत्यु का कारक है, पुत्र जन्म के समय रावण ने अपने पुत्र की जन्मकुंडली देखी तो शनि की द्वादश भाव में स्थिति के कारण रावण को बड़ा क्रोध आया उसने शनि को उलटा लटका दिया और शनि की दांयी टांग को पकड़कर जोर की पटकनी दी तभी से शनि लगड़ा हो गया। उसकी चाल धीमी हो गई उसी दिन से उसका नाम शनै-चर अर्थात शनैश्चर पड़ा।

शनि हमेशा अशुभ फल नहीं देता। वह जीवन में शुभ लाभ, विदेश यात्रा, जमीन जायदाद, स्थिरता, आध्यात्मिक प्रगति भी देता है। यदि कुंडली में शनि सूर्य कहीं भी इकट्ठे बैठे हों, तो उस जातक की पिता से नहीं बनती। यदि जातक पिता वाला कारोबार करता है तो नुकसान उठाना पड़ता है। उस जातक के परिवार में कबाड़ बहुत होता है।

जैसे खराब रेडियो, टेलीविजन, म्यूजिकल सिस्टम, बच्चों के खिलौने घर में नेगेटिव ऊर्जा होती है। जातक के घर में दीवारों में सीलन व दरारें अवश्य होगी। चैथे घर में शनि होने पर बेटी का तलाक हो जाता है या अन्य कारण से बेटी बाप के घर में रहती है। शनि यदि बारहवें भाव में तो व्यक्ति जन्म स्थान से दूर तरक्की करता है या विदेश में बस जाता है या विदेश में नौकरी करता है। शनि की दृष्टि बृहस्पति पर हो या दोनों इकट्ठे बैठे हों, तो व्यक्ति बहुत अच्छा सलाहकार होता है।

छठे घर में शनि व्यक्ति को शत्रु हंता बनाता है। लाल किताब अनुसार दशम शनि व्यक्ति को तंत्र-मंत्र का ज्ञाता होता है। यदि जन्म पत्रिका में शनि 12वें स्थान में हो, चंद्र छठे में और सूर्य 8वें हो, तो विष योग बनता है। विषयोग में जन्मा बालक अपने सगे संबंधियों, मित्रों, भाई-बहिन द्वारा विश्वासघात प्राप्त करता है। जातक को बीमारी में दवा नहीं लगती है। यदि आप्रेशन हुआ तो घाव देर से भरता है, कर्ज भी कम नहीं होता।

शनि की साढ़ेसाती, ढैया, दशा के चमत्कारिक उपाय: काले घोड़े की नाल या नाव (किश्ती) की कील का छल्ला बनवाकर। हाथ की मध्यमा अंगुली में शनिवार को सूर्यास्त के समय पहनंे। पहनने से पहले छल्ले को एक लोहे की कटोरी में काला तिल व सरसों का तेल डालकर उसमें डुबो दें।

शुक्रवार की शाम को डुबोये व शनिवार की शाम को अंगुठी निकालकर पहनें। वह तिल व तेल पीपल के पेड़ पर डालें। हनुमान जी की सेना को (बंदरों) शनि व मंगलवार को गुड़ चना खिलाएं, लाभ होगा। मिट्टी के बर्तन में सरसों का तेल भरकर पानी में तालाब, नदी के किनारे शाम को दबा दें। भैरों मंदिर में सायंकाल रम्म (शराब) चढ़ाएं व क्षमा याचना मांगे। हनुमान चालीसा शनि उपाय हेतु रामबाण औषधि है। हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने से चमत्कारिक फल मिलता है। शनिवार को 8 लोहे के कटोरे लें। उनमें सरसों का तेल भर दें। किसी पार्क या सड़क के किनारे आक (आकडा) देख लें।

शनिवार को सायंकाल आक के पेड़ की जड़ में इन कटोरों का तेल डालकर कटोरों को उलटा कर प्रार्थना करें कि मेरे सब कष्टों को दूर करो। फिर पीछे मुड़कर न देखें। यह उपाय मुझे एक संत द्वारा प्राप्त हुआ था इसे चमत्कारिक फल मिले हैं। अश्वमेघ यज्ञ का फल: शनिवार को एक मुख का गोला लें उसे ऊपर से काट लें।

काटना इस प्रकार से है कि गोले का ढक्कन बन जाये। फिर इस गोले में उड़द साबुत, काले तिल, सफेद तिल, शक्कर गुड़ वाली व एक चम्मच गाय का घी मिलाकर भर दें। फिर ढक्कन से बंद कर दें और ढक्कन पर चार मोची कीलें लगा दें। फिर किस पार्क या जंगल में मकोड़ों की जगह गड्डा करके दबा दें।

मकोड़ों को एक महीने का राशन मिल जायेगा और वे आपको आशीर्वाद देंगे। यह उपाय भी मुझे हरिद्वार यात्रा में एक संत द्वारा प्राप्त हुआ था। शनिवार को सायंकाल कोकिलावन (कोसी) में परिक्रमा करके शनिदेव के दर्शन करके भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करें, तो शनि का श्रेष्ठ उपाय है। शनि शिगणापुर महाराष्ट्र के अहमद नगर का गांव है, अहमद नगर जिले से 30 कि.मी. दूर है।

सांई बाबा शिरडी से 80 कि. मी. दूर है, यहां दर्शन करने से भी शनिदेव शांत होकर आशीर्वाद देते हैं इस क्षेत्र की प्रसद्धि कहावत है। देव है देवालय नहीं। घर है द्वारा नहीं वृक्ष है। पर छाया नहीं। अनुष्ठान में जप हेतु शनि के निम्न कोई भी मंत्र का जप करवाएं। - ।।ऊँ शं शनैश्चराय नमः।। - ।।ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।। - ।।ऊँ शन्नौदेवी रभिष्ठयऽआपो भवंतु पीतते। शंरुयोरभिश्रवंतु नः।।



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