सुखी गृहस्थ जीवन डाॅ. बी. एल. शर्मा प्राचीन वेद पुराणों में मानव जीवन में पालन के लिए जिन चार आश्रमों की व्यवस्था की गयी थी वे हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम।
प्राचीन काल में इसी व्यवस्था के लिए बच्चों को गुरुकुल भेज दिया जाता था। वहां बच्चे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके विद्या अध्ययन करते थे। फिर विद्या अध्ययन के पश्चात् अपने माता-पिता के पास आकर गृहस्थ आश्रम में आने के लिए विवाह संपन्न करते थे।
विवाह करना आवश्यक क्यों है?
जिस मनुष्य के मन में भोगेच्छा है या जो अपनी वंश परंपरा को आगे बढ़ाना चाहता है तो ऐसे व्यक्ति को विवाह करना चाहिये क्योंकि गृहस्थ आश्रम ही सब आश्रमों का पालक है। मनुष्य शरीर और गृहस्थ आश्रम उद्धार करने का खास जरिया है। भोग भोगने और आराम करने के लिए यह मनुष्य शरीर नहीं हे। प्राणी मात्र की हित की भावना रखते हुए गृहस्थ आश्रम में रहना चाहिये और अपनी शक्ति के अनुसार तन, मन, धन, बुद्धि आदि के द्वारा दूसरों को सुख पहुंचाना चाहिये। दूसरों की सुख-सुविधा के लिए त्याग करना मनुष्यता है। इसी के साथ ईश्वर का सतत चिंतन-मनन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैदिक रीति से या समाज में मान्य अन्य रीति रिवाज से संपन्न विवाह की मान्यता समाज में होती है। भारतीय समाज में बिना विवाह संपन्न किये स्त्री-पुरुष का साथ में रहना उचित नहीं माना जाता है। उन्हें समाज में आदर प्राप्त नहीं होता।
इसलिए यदि उपरोक्तानुसार विवाह करना आवश्यक है तो अपनी वंश-परंपरा के अनुसार विधि-विधान से विवाह संपन्न कराना चाहिये। वैवाहिक जीवन का ज्योतिषीय विश्लेषण जन्म पत्रिका में सप्तम स्थान विवाह स्थल माना जाता है। लड़का हो या लड़की - उस स्थान में गये हुए विभिन्न ग्रहों के गुण, धर्म-स्वभाव, सौम्य-क्रूर ग्रह, पाप ग्रह आदि की व्याख्या करके वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है। इसी के साथ यह भी याद रखने योग्य बात है कि प्रत्येक प्राणी अपने भाग्य के अनुसार फल भोगता है। कर्म के सिद्धांत के अनुसार कन्या बड़ी हो जाय तो भी विवाह की विशेष चिंता नहीं करनी चाहिये क्योंकि वह कन्या अपना प्रारब्ध लेकर आयी है और उसकों अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति उसके प्रारब्ध के अनुसार मिलेगी।
माता-पिता को तो उसके विवाह के विषय में यह विचार करना है कि जहां कन्या सुखी रहे, वहीं उसका विवाह संपन्न करना है। ऐसा विचार करना माता-पिता का कर्तव्य है। परंतु हम उसकों सुखी कर देंगे, उसको अच्छा परिवार मिल ही जायेगा, यह हमारे वश की बात नहीं है। हमें अपने कर्तव्य का पालन करना है, पर चिंता नहीं होनी चाहिये। निम्नलिखित ज्योतिष योग वाले व्यक्ति का वैवाहिक जीवन उसकी पत्नी के पतिव्रत धर्म का पालन करने के कारण सुखी रहता है। ऐसे योग वाले व्यक्ति बिरले ही होते हैं। यदि किसी लड़के की जन्म-पत्रिका में ऐसा योग हो और जन्मपत्रिका लड़के-लड़की की उत्तम मिलती हो तो विवाह संपन्न करना शुभ रहता है। उपरोक्त योग की परिभाषा नीचे दी गई है।
1. सप्तमेश चतुर्थ भाव अथवा दसवें भाव में गया हो तो स्त्री पतिव्रता होगी।
2. सप्तमेश रवि हो और वह शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो स्त्री पतिव्रता होगी।
3. सप्तम भाव का स्वामी शुक्र हो और वह शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो पतिव्रता स्त्री वाला होगा।
4. सप्तम भाव में गुरु गया हो तो धर्मशीला और पतिव्रता स्त्री वाला होगा।
निम्नलिखित योग में भी सुशील व धर्मशीला पत्नी मिलने की संभावना रहती है।
1. सप्तमेश अथवा सप्तम का कारक ग्रह (शुक्र) शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो, या शुभ ग्रहों के मध्य गया हो तो अच्छी पत्नी मिलेगी।
2. सप्तम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो अच्छी पत्नी मिलेगी।
3. सप्तम भाव को गुरु देखता हो तो सुशील पत्नी मिलेगी।
ऐसे ग्रह योग आदि किसी कन्या की पत्रिका में हो तो उसे सद्मार्ग पर चलने वाला और एक पत्नीव्रतधारी पति मिलने की संभावना रहेगी। निम्नलिखित ग्रह-योग हों और उक्त योग वाले ग्रह की महादशा या अंतर्दशा निकट भविष्य में आने वाली हो तो उक्त समय विवाह-विच्छेद (तलाक) की संभावना रहती है। ऐसे ग्रह योग वाले नियमः इस प्रकार हैं: सप्तमेश, अष्टम में या अष्टमेश सप्तम में हो और उक्त सप्तमेश या अष्टमेश मारकेश की श्रेणी में आता हो या सप्तमेश क्रूर ग्रहों के मध्य पंचम या अन्य स्थान में हो तो ऐसे ग्रह- योग के कुछ उदाहरण वास्तविक प्रकरणों द्वारा नीचे दिये जा रहे हैं।
उदाहरण कुंडली नं. 1. यह कुंडली एक कन्या जातक की है। जिसका जन्म दिनांक 23-12-1971 जन्म लग्न कन्या एवं राशि कुंभ है। इस कन्या की पत्रिका में अष्टमेश मंगल सप्तम (विवाह स्थान) में बैठा है मंगल के कारण विवाह विच्छेद हुआ 1995 में विवाह हुआ विवाह के एक माह बाद से पति-पत्नी विवाह विच्छेद की कानूनी लड़ाई लड़ते हुए लड़की ने तलाक ले ली है और दूसरा विवाह कर लिया है।
उदाहरण कुंडली नं. 2. इस महिला का जन्म दिनांक 16.08. 1953 है। इनका जन्म लग्न कन्या एवं राशि तुला है। राशि से सप्तमेश मंगल एकादश स्थान में केतु एवं सूर्य, बुध के साथ होने से सन् 1992 ाुबुमसूकेमें विवाह विच्छेद हुआ। परंतु पति अपनी पत्नी का अभी भी भरण-पोषण ठीक से कर रहे हैं। इनके पति का कर्क लग्न एवं मिथुन राशि है। राशि से सप्तमेश गुरु अष्टम स्थान में पंचमेश के साथ है। पति ने दूसरा विवाह कर लिया है।
इनके अतिरिक्त और भी कई प्रकरणों का विश्लेषण उक्त नियम की पुष्टि करता है। ऐसे प्रकरणों में संबंधित ग्रह के मंत्र, जाप व उक्त ग्रह के दान नियमपूर्वक करने से विवाह-विच्छेद रुकने की संभावना प्रबल रहती है। कई ऐसे ग्रह योग वाले व्यक्तियों के द्वारा विवाह पूर्व ही पीड़ित एवं पीड़ादायक ग्रह के मंत्र जाप कराने एवं ग्रह संबंधी सामग्री दान करने से इस प्रकार की कठिनाईयों से बच सकते हैं। पीड़ित ग्रह एवं पीड़ा दायक ग्रह का राशि रत्न कभी धारण नहीं करें। अन्यथा लाभ के स्थान पर नुकसान की अधिक संभावना रहती है। ज्योतिष ग्रंथों में उल्लेख आया है कि निम्नलिखित ग्रह योग वाले व्यक्ति अपनी पत्नी-पति के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं रहते हैं। विवाह पूर्व इस विषय में खोजबीन कर लेवें तो उत्तम रहता है।
परंतु ऐसे योग की पत्रिका में उक्त योग वाले ग्रह पर गुरु की दृष्टि हो तो उक्त योग का बुरा योग क्षीण हो जायेगा। इसका सूक्ष्म परीक्षण करना आवश्यक है। निम्नलिखित योग स्त्री-पुरुष दोनों की पत्रिका में समान रूप से लागू होते हैं।
1. शुक्र और मंगल सप्तम या दशम में होना भी इसी श्रेणी में आता है। यानी मनुष्य व्याभिचारी होगा।
2. इसी प्रकार का योग शुक्र और मंगल का दशम और चतुर्थ के स्वामी होने से होता है।
3. चंद्रमा से दशम में शुक्र और शुक्र से दशम भाव में शनि भी यह योग बनाता है।
4. शुक्र की राशि में गये हुए बुध, शुक्र और शनि सप्तम या दशम स्थान में होने से यह योग बनता है।
5. सप्तमेश, धनेश और दशमेश ये तीनों ग्रह दशम में गये हो।
एक और नियम गृहस्थ जीवन में कलह के बीज बो सकता है - वह है पंचमेश सप्तम में और सप्तमेश पंचम स्थान में हो या पंचमेश और सप्तमेश की युति किसी स्थान में जन्मपत्री में हो। पंचम स्थान प्रेम संबंध, प्रणय संबंध का है अतः इसका स्वामी सप्तमेश (विवाह स्थान के स्वामी) से स्थान परिवर्तन करता है तो प्रेम विवाह की प्रबल संभावना रहती है। अतः विवाह पूर्व इस नियम की अवहेलना करके विवाह संपन्न नहीं कराना चाहिए। माता-पिता योग्य ज्योतिषी से कन्या वर की जन्म पत्रिका परीक्षण करा कर ही निर्णय लें।
उदाहरण कुंडली नं. 3. प्रसिद्ध फिल्म स्टार माननीय श्री राजेश खन्ना का जन्म दिनांक 29-12-42 है और उसका मिथुन लग्न एवं सिंह राशि है। लग्न से पंचमेश, शुक्र सप्तम में बुध और सूर्य के साथ होने से प्रेम विवाह तो हुआ परंतु सफल नहीं हुआ। सप्तम में बुध, सूर्य तलाक कराने में जिम्मेदार है किसी भी पत्रिका में सप्तम में सूर्य-बुध हो तो जन्मपत्री मिलान में विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
उदाहरण कुंडली नं. 4. सुनील गवास्कर प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी की जन्म दिनांक 10.07. 49 है। मकर लग्न एवं धनु राशि हे पंचमेश शुक्र सप्तम में है। इस कारण प्रेम विवाह संपन्न हुआ। अपने बच्चों को गृहस्थ जीवन में प्रवेश होने के पूर्व उनकी जन्मपत्रिका का परीक्षण योग्य ज्योतिषी से अवश्य करा लें। धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से विवाह मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है - और वर कन्या के परिणय सूत्र में बंधने से चहुमुखी प्रगति व स्थिरता की प्राप्ति होती है। अतः गहन विचार के पश्चात ही वर कन्या को परिणय सूत्र में बांधंे। गृहस्थ जीवन मोक्ष-प्राप्ति की सीढ़ी है। इससे समस्त इंद्रियों की इच्छा पूर्ति के साथ ही ईश्वर प्राप्ति में सरलता रहती है।