विशाल अलंकृत व चित्ताकर्षक शिखर, मीनाकारी से युक्त गौपुर, सुसज्जित स्तंभों पर टीके, सभामंडप और बड़े परकोटे के साथ-साथ देव स्तंभ व शिल्प-कौशल से परिपूर्ण विशाल सिंह द्वार से जुड़े दक्षिण भारतीय देवालयों का भारतीय सभ्यता संस्कृति में उत्कृष्ट स्थान है। आज भी संपूर्ण दक्षिण भारत के शताब्दिक स्थानों पर ऐसे ख्यातनाम देवालय हैं जिनका अपना सुदीर्घ इतिहास रहा है और इनके दर्शन से बीते हुए युग की स्मृति सहज में जीवन्त हो जाती है। ऐसा ही एक देवालय तमिलनाडु प्रदेश की राजधानी चेन्नई में नगरखंड ट्रिप्लिकेन में विराजमान है जिसे अरानयूला पार्थ सारथी मंदिर कहा जाता है। चेन्नई का पार्थ सारथी मंदिर द्रविड़ कला संस्कृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जिसे चेन्नई क्षेत्र के सर्व पुरातन जीवन्त देवालय के रूप में अभिहित किया जाता है। यह मंदिर वर्तमान में मद्रास प्रांत के पुराने नगरीय क्षेत्र ट्रिप्लिकेन में अवस्थित है जिसका प्राचीन नाम ‘तिरूवल्लिकेनी’ अथवा ‘‘तिरू-अल्ली-केनी’’ था। स्वीकार किया जाता है कि प्रजा में धार्मिक संदेश प्रदान करने व धर्म तत्व की ध्वजा दूर देश तक फहराने के उद्देश्य से इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में पल्लव राजा नरसिंह वर्मन द्वारा किया गया। ऐसे दर्शन कीजिए पार्थसारथी मंदिर का कहीं-कहीं राजा के रूप में दन्ति वर्मन का नाम भी मिलता है।
इसे आगे के समय में चोल राजाओं द्वारा फिर बाद में विजयनगर साम्राज्य के शासकों द्वारा यथेष्ठ सहायता, सुरक्षा व संरक्षा प्रदान किया गया। इस मंदिर क्षेत्र से प्राप्त अभिलेखों से इसके इतिहास पर विशद् प्रकाश पड़ता है जो मूलतः ‘तमिल’ व ‘तेलुगू’ में है। इस मंदिर में पाषाण उत्कीर्णन का बड़ा ही अच्छा कार्य हुआ है। भगवान श्री कृष्ण को समर्पित वैष्णव संप्रदाय के 108 दिव्य देश में इसकी गणना की जाती है। अलंकृत प्रदेश द्वार से प्रवेश करने के बाद 36 पाषाण स्तंभों पर टीका विशाल सभा मंडल पार कर गोपुरम में भीतर प्रवेश करने पर स्वर्ण मंडित स्तंभ का दर्शन किया जा सकता है। यहां के प्रत्येक स्तंभ पर पाषाण कलाकारिता का उत्कृष्ट नमूना देखा जा सकता है जिस पर किसी न किसी पौराणिक धर्माख्यान से जुड़े कथानक का विशिष्ट चित्रण किया गया है। इस चित्रण का रूप अंकन व मीनाकारी देखने योग्य है। मंदिर प्रवेश के बाएं तरफ मंदिर का कार्यकाल है जो मंदिर की व्यवस्था पर पूरा नजर रखता है। संप्रति मंदिर में कुछ निर्माण कार्य चल रहा है। अंदर में पांच सीढ़ी चढ़कर प्रवेश करने पर श्री पार्थ-सारथी देव का दर्शन किया जा सकता है जिनके एक तरफ श्री देवी व दूसरी ओर भू-देवी का स्थान है। सामने में नीचे चरण की प्रतिकृति रखा गया है। ऊपर में अलंकृत व आकर्षक चांदी छत्र और पीछे में रंगीन चमकदार शीशा लगा देने से यहां की आकर्षकता द्विगुणित हुई है।
सामने के देवालय में देवी मां (महालक्ष्मी) का स्थान है। लोग चढ़ावे के रूप में जो भी ले जाते हैं उसे देवता के समक्ष भाव अर्पण कर दे दिया जाता है। यहां दीपदान का विशेष महत्व है यही कारण है कि मंदिर के बाहर दीप की खूब बिक्री होती है। कहते हैं दक्षिण भारत के पांच प्रसिद्ध वैष्णव देवालय जो क्रमशः श्रीरंगम्, अहोबिल, कोम्बिल, विलिपुलूर और कांची पुरम् में स्थापित है, की भांति यह देवालय भी अतिशय महत्व का है। इस देवालय में नयनार संतांे का विग्रह भी देखा जा सकता है तो अन्यान्य भारतीय संत खासकर सप्तऋषियों को भी यहां देवता की भांति स्थान दिया गया है। मूलतः इस मंदिर में श्री विष्णु के पांच रूप-अवतारों का विशद् चित्रण हुआ है जिनके नाम हैं नृसिंह, राम, वरदराज, रंगनाथम और श्री कृष्ण। यहां विष्णु जाया (लक्ष्मी जी) भोवावाली आमान भी छोटे से मंदिर में विराजित हैं। विवरण है कि 16वीं शताब्दी में विजयनगर के राजाओं ने यहां नव संस्कार कराया उसके बाद यह मंदिर देश प्रसिद्ध हो गया। इस देवालय में पार्थ सारथी के अलावे श्रीराम परिवार, बलराम, सात्यकि, प्रद्युम्न, अनिरूद्ध, भाग्य लक्ष्मी व पीछे में महाविष्णु व्रजराजय, आण्डाल स्वामी, सोएनाडम् राजा आदि के स्थान हैं।
इस देवालय से आगे एक मंदिर में राम लक्ष्मण जानकी का आकर्षक विग्रह दर्शनीय है। पार्थ सारथी मंदिर को उत्सवों का देवालय भी कहा जाता है जहां सालांे भर धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन होता रहता है। यहां के प्रधान उत्सवों में जनवरी-फरवरी में थाई, फरवरी-मार्च में भाभी, मार्च-अप्रैल में पानुनी, अप्रैल मई में चैतिराई, मई-जून में वैगासी, जून-जुलाई में आती, सितंबर-अक्तूबर में पुरातसी, अक्तूबर-नवंबर में त्रिपासी और नवंबर-दिसंबर में करतिगाई के साथ-साथ दिसंबर-जनवरी में मरगाझी उत्सव में दूर-दूर के भक्तों का आगमन होता है। ऐसे यहां का सर्वप्रसिद्ध वार्षिक पुण्यकारी तिथि ‘श्री वैकुंठ एकादशी है, तब पांच सप्ताह का मेला यहां लगता है। यहां के एक कर्मी उमावागेश्वरण बताते हैं कि उत्सव के दिनों में मंदिर में विशेष व्यवस्था की जाती है ताकि भक्तों को कोई परेशानी न हो। इस बार जून माह के द्वितीय सप्ताह में आयोजित कुंभाभिषेक समारोह के दौरान यहां देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से लाखों श्रद्धालुओं का आगमन होना इस बात का साक्षी है कि जन-जन के बीच इस देवालय के प्रति अटूट विश्वास व अगाध निष्ठा है।
वर्तमान में यह देवालय 1650 ई. के करीब नवशृंगार के साथ उपस्थित हुआ है जहां कुछ विशेष उत्सव दिवस को छोड़कर प्रातः छः से बारह बजे तक और सायंकाल चार से नौ बजे तक खुला रहता है। मंदिर में विशेष दर्शन के लिए शुल्क की भी व्यवस्था है जो बीस अथवा पचास रु. के टिकट के रूप में देय है। दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला और उसकी शैलीगत क्षेत्रीय विभिन्नताओं के व्याख्यान स्मारक के रूप में प्रस्तुत श्री पार्थ सारथी मंदिर न सिर्फ चेन्नई वरन् संपूर्ण दक्षिण भारतीय देवालयों में पांक्तेय है जिसे देश का एकमेव अर्जुन का स्वतंत्र मंदिर बताया जाता है। यह जानने की बात है कि भारत के पहले पहल चार महानगरों में एक मद्रास का ही नया नाम अब चेन्नई है जहां छोटे-बड़े शताधिक देवालयों के बीच नौ की प्रसिद्धि चातुर्दिक है। इसमें श्री पार्थ सारथी के अलावे नीचे वर्णित मंदिरों का दर्शन किया जा सकता है।
चेनाम्बा मंदिर: स्वीकार किया जाता है कि माता चेनाम्बा के ही नाम से चेन्नई नगर का नामकरण हुआ है। इन्हें मद्रास क्षेत्र की रक्षिका देवी (अधिष्ठात्री शक्ति) माना जाता है। साहुकार पेठ में श्री बालाजी मंदिर से थोड़ी दूरी पर माता जी का चित्ताकर्षक देवालय विराजमान है।
बाला जी मंदिर: चेन्नई के साहुकार पेठ के सन्निकट यह मंदिर श्री बाला जी को समर्पित है। मंदिर के अंदर गर्भ गृह में श्री देवी व भू देवी के मध्य श्री बाला श्री स्वामी का विग्रह दर्शनीय है। अंदर भाग में परिभ्रमण स्थल में श्री लक्ष्मी जी का आकर्षक मंदिर है। मंदिर के बाहरी क्षेत्र में गणेश, कार्तिकेय, राधा-कृष्ण, श्री राम लक्ष्मण जानकी व लक्ष्मी नारायण आदि के आकर्षक स्थान है।
कपालीश्वर मंदिर: अपने आकर्षक 36 मीटर ऊंचे प्रवेश द्वार व उत्कृष्ट शिखर के साथ जागृत शैव तीर्थ के रूप में कपालीश्वर (कपालेश्वर) महादेव की गणना की जाती है जो मेहलापुर (मैलापुर) मुहल्ले में विराजमान हैं। मंदिर के बाहरी परिक्रमा मार्ग में मयूरेश्वर लिंग है जहां मयूरी के रूप में पार्वती जी भगवान शंकर की आराधना कर रही हैं। मंदिर में ही पार्वती जी और सुब्रह्मण्यम स्वामी का मंदिर है। इस देवालय में श्री गणेश, नटराज व नायनार को भी स्थान दिया गया है। मंदिर के समक्ष विशाल सरोवर है जिसके मध्य में टापूनुमा गुंबज प्रत्येक दर्शकों को आनंद प्रदान करता है।
अष्ट लक्ष्मी मंदिर: यह मंदिर समुद्र (अरब सागर) के किनारे विशाल द्वार के अंदर में अवस्थित है जहां की दीवारें कन्याकुमारी मंदिर की तरफ रंगीन बनी हंै। यहां देवी लक्ष्मी के आठों रूप का अलग-अलग मंदिर निचले व ऊपरी तल पर विराजित है। मंदिर के छत से समुद्र का दर्शन सुखकारी प्रतीत होता है। यह मंदिर मुख्यतः इलियट्स बीच के किनारे है। इसके अलावे राघवेन्द्र मंदिर, अरूल-मिज्जु मरून्दीश्वर मंदिर, विश्वरूप अधिवयाधिहरा मंदिर, थापथंबली मंदिर, इस्काॅन मंदिर, श्री निवास मंदिर, श्री मुरूगन स्वामी मंदिर आदि यहां की धार्मिक फलक को समृद्ध बना रहा है। श्री पार्थसारथी मंदिर के पुण्यकारिणी को ‘कैरावाणी’ कहा गया है जहां इंदिरा, झोमा, अग्नि, मीन व विष्णु के रूप में कुंड का स्थान है। विशेष पूजन अवसर पर इस सरोवर की शोभा देखते बनती है। अस्तु ! आधुनिकता से सराबोर चेन्नई नगर में श्री पार्थ सारथी मंदिर दर्शन का अपना आनंद है जहां चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन व बस टर्मिनल से सवारी सहज में मिल जाते हैं। सच कहें तो मंदिर के प्रथम दर्शन से ही पल्लवकालीन कलाकारिता आंखों के आगे जीवन्त हो जाती है।