कलियुग के व्यस्त शनिदेव ज्योतिष में मान्य सात ग्रह पिण्डों में शनिदेव पृथ्वी से सबसे दूर अपनी न्याय व्यवस्था का संचालन करने में व्यस्त हैं। शनिदेव ईश्वरीय न्यायालय के परम निष्ठ एवं गुणी न्यायाधीश हैं। शनिदेव के दंड विधान से कोई बच नहीं पाता।
यह पृथ्वी पर चल रहे लौकिक न्यायालय से भिन्न हैं। यहां किसी जीवात्मा को धर्मशास्त्र को छूकर शपथ लेने की छूट नहीं है। लौकिक न्यायालयों में व्यक्ति धर्मग्रंथ को छूकर शपथ लेता है कि वह जो भी कहेगा, सत्य कहेगा और सत्य के सिवाय कुछ नहीं कहेगा।
परंतु ऐसा शपथ लेकर भी व्यक्ति झूठ बोलता है और न्यायालय को भ्रमित कर अन्याय की रेखा को बड़ा कर देता है। शनिदेव सर्वज्ञ हैं। जीवात्मा के शुभाशुभ कर्मों की पल-पल की जानकारी उनके सूचना भंडार में संचित है जिसे अपनी इच्छा मात्र से वे दृश्य पटल पर बार-बार प्रदर्शित कर सकते हैं।
आजतक कलियुग में पाप का भंडार बढ़ रहा है और पुण्य का भंडार घट रहा है। शनि का संचरण एक राशि पर ढाई वर्ष का होता है और नक्षत्र के एक चरण पर मध्यमान से तीन मास, दस दिन। अधिकांश कुंडलियों में शनि की स्थिति अच्छी नहीं पाई पायी जाती।
अधिकांश कुंडलियों में यह भी देखने को मिलता है कि शनि उच्च राशि तुला में तो है परंतु नवांश में नीच के हो जाते हैं और उस पर भी पापादि प्रभाव में शनि तुला, मकर लग्न की हरिश्चंद्र प्रसाद ‘‘आर्य’’ कुंडलियों में नवांश में परम योग कारक होकर लग्न या दशम में उच्च के रहे हैं परंतु नवांश में नीच राशि मेष में हो जाना यह सिद्ध करता है कि व्यक्ति के कर्म पूर्व जन्म में अच्छे नहीं रहे जिसके कारण व्यक्ति ने ऐसे समय गर्भधारण कर जन्म लिया कि शनि अशुभ फलदाता हो गये।
शनि में और ग्रहों के विपरीत एक विशेषता है कि जब शनि कुंडली में निर्बल होता है तो अपने दुख कारक स्वभाव की वृद्धि करता है। व्यक्ति की कुंडली में श्ािन जितना अधिक निर्बल होता जायेगा उस जातक के शनि जनित दुख में वृद्धि होती जायेगी। क्या हमने कभी सोचा है कि कलियुग में शनि से व्यक्ति अधिक भयभीत क्यों है?
शनि जब ईश्वरीय न्यायालय के दंडाधिकारी हैं तो फिर हमें उनसे डरने की क्या जरूरत है? दरअसल यह दंडाधिकारी हमारे भले बुरे कर्मों के आधार पर ही बिना विचलित हुए हमें दंड देने को तत्पर हैं। उनके यहां कोई सेवा शुल्क या घूस नहीं चलता है और नहीं कोई जीवात्मा उन्हें भ्रमित कर सकता है।
शनि जिन कुछेक लोगों की कुंडलियों में योगकारक बली एवं अंतिम रूप से शुभ फल प्रदाता होते हैं वे लोग अपने जीवन में सभी खुशियों को प्राप्त करते हैं। पंचमहापुरुष योगों में शनि से बना शश नाम का एक योग भी है। कुछ निराले लोगों को छोड़कर अधिकांश लोगों को शनि की साढ़ेसाती, ढैया एवं शनि के गोचर में अत्यंत कष्ट उठाने पड़ते हैं।
हम जब समाज की ओर निश्चल दृष्टि से देखेंगे और मनन करेंगे तो पता चलेगा कि अधिकांश व्यक्ति इस कलियुग में येन-केन प्रकारेण अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए निदनीय एवं धर्म विरुद्ध आचरण में लिप्त हैं और फिर शनि के कठोर दंड से पीड़ित होना भी उनकी नीयत है। यही कारण है कि कलियुग में शनि अधिक व्यस्त हैं।
जीवात्मा के पाप कर्मों का सूक्ष्म परीक्षण कर उन्हें दंड देने का गुरुŸार दायित्व शनिदेव पर बढ़ गया है। हम पूजा-पाठ, मंत्र जप हवन की अपेक्षा अपने कर्मों को सुधारने का प्रयास करें जिससे इस जीवन के साथ-साथ भावी जीवन में शनिदेव का सहयोगात्मक आशीर्वाद प्राप्त हो। भावी जन्मों में शनि की शुभत का शंखनाध ज्योतिषी कुंडली देखकर कर सकें यह हम अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं।