शनि आराधना के प्रमुख मंत्र
शनि आराधना के प्रमुख मंत्र

शनि आराधना के प्रमुख मंत्र  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 20801 | नवेम्बर 2011

श्रीशनि आराधना के प्रमुख मंत्र व स्तोत्र पं. सुनील जोशी जुन्नरकर जातक के जीवन पर शनि अतिशीघ्र प्रभाव डालते हैं। शनि संबंधी चिंताओं का निवारण करने में शनि मंत्र, शनि स्तोत्र विशेष रूप से शुभ रहते हैं। शनि मंत्र शनि पीड़ा परिहार का कार्य करता है।

सूर्य पुत्र शनि ग्रहों के राजा बने: नवग्रह परिवार में सूर्य को राजा व शनिदेव को भृत्य (नौकर) का स्थान प्राप्त है। ऐसा अनेक प्राचीन ग्रंथों में लिखा है। किंतु महर्षि काश्यप ने शनि स्तोत्र के एक मंत्र में सूर्य पुत्र शनिदेव को महाबली और ग्रहों का राजा कहा है- ‘सौरिग्र्रहराजो’ महाबलः।’

शनिदेव ने शिव भक्ति व तपस्या से नवग्रहों में यह सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है। इसकी पौराणिक कथा बड़ी ही रोचक है। शनि पौराणिक कथा: एक समय सूर्यदेव जब गर्भाधान के लिए अपनी पत्नी छाया के समीप गये तो छाया ने सूर्य के प्रचण्ड तेज से भयभीत होकर अपनी आंखें बंद कर ली थीं। कालांतर में छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। श्ािन के श्याम वर्ण (काले रंग) को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर यह आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है। तभी से शनि अपने पिता सूर्य से शत्रुता रखते हैं।

शनिदेव ने अनेक वर्षों तक भूखे प्यासे रहकर शिव आराधना की तथा घोर तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया था। तब शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने शनिदेव से वरदान मांगने को कहा। शनिदेव ने प्रार्थना की- युगों-युगों से मेरी मां छाया की पराजय होती रही है, उसे मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत अपमानित व प्रताड़ित किया गया है इसलिए मेरी माता की इच्छा है कि मैं (शनिदेव) अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनंू। तब भगवान शिवजी ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वी लोक के न्यायाधीश व दण्डाधिकारी रहोगे।

साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। यहां यह बताना प्रासांगिक होगा कि शनिदेव काश्यप गोत्रिय हैं तथा सौराष्ट्र उनका जन्म स्थल माना जाता है। राज्य सुख के दाता शनिदेव: जब शनि की अशुभ महादशा या अंतर्दशा चल रही हो अथवा गोचरीय शनि जन्म लग्न या राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम, द्वादश स्थानों में भ्रमण कर रहा हो तब शनि अनिष्टप्रद व पीड़ादायक होता है।

शनि प्रदŸा पीड़ा की शांति व परिहार के लिए श्रद्धापूर्वक शनिदेव की पूजा-आराधना मंत्र व स्तोत्र का जप और शनिप्रिय वस्तुओं का दान करना चाहिए। ‘तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्’ शनिदेव प्रसन्न (संतुष्ट) होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे छीन लेते हैं।

शनिदेव के प्रसन्न होने पर व्यक्ति को सर्वत्र विजय, धन, काम, सुख और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। श्री शनिदेव का ध्यान आवाह्न: नीलद्युति शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशातं वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेण्यम्।।

नीलमणि के समान जिनके शरीर की कांति है, माथे पर रत्नों का मुकुट शोभायमान है। जो अपने चारों हाथों में धनुष-बाण, त्रिशूल, गदा और अभय मुद्रा को धारण किये हुए हैं, जो गिद्ध पर स्थित होकर अपने शत्रुओं को भयभीत करने वाले हैं, जो शांत होकर भक्तों का सदा कल्याण करते हैं। ऐसे सूर्यपुत्र शनिदेव की मैं वंदना करता हूं, ध्यानपूर्वक प्रणाम करता हूं। शनि नमस्कार मंत्र: ऊँ नीलांजनं समाभासं रविपुत्रम् यमाग्रजम्। छाया मार्तण्डसंभूतम् तं नमामि शनैश्चरम्।। महर्षि वेदव्यास रचित नवग्रह स्तोत्र का यह श्लोक भी अत्यंत प्रसिद्ध व प्रभावशाली है।

पूजा के समय अथवा कभी भी शनिदेव को इस मंत्र से यदि नमस्कार किया जाए तो शनिदेव प्रसन्न होकर पीड़ा हर लेते हैं। शनिदेव की कृपा प्राप्ति कष्टमुक्ति का अचूक उपाय: शनि स्तोत्र का पाठ, शनि प्रतिमा का पूजन व दान- जिनको शनिदेव की कृपा प्राप्त करनी हो उन्हें चाहिए कि वे शनिदेव की एक लोहे की प्रतिमा बनवाएं, जिसकी चार भुजाएं हों- उनमें धनुष, त्रिशूल, बाण और वर मुद्रा अंकित कराएं।

पीड़ा परिहार के लिए स्त्री/पुरुष शनिवार को व्रत रखकर, तैलाभ्यंगस्नान करके शनि पूजा के लिए बैठें। शनिदेव की लोहे की मूर्ति को काले तिल के ढेर के ऊपर स्थापित करें। तिल के तेल या सरसों के तेल से शनिदेव की मूर्ति का अभिषेक-स्नान करें।

मंत्र सहित विधिपूर्वक पूजन करते हुए कुमकुम से तिलक करें, नीले पुष्प, काली तुलसी, शमी के पŸो, उड़द, गुड़ आदि अर्पित करें। शनि पूजन, जप व दान का संकल्प निम्न प्रकार से लें। हाथ में जल लेकर कहें- मम जन्मराशेः सकाशात् अनिष्टस्थानेस्थितशनेः पीड़ा परिहार्थं एकादशस्थानवत् शुभफलप्राप्त्यर्थं लोहप्रतिमायां शनैश्चपूजनं तत्प्रीतिकरं स्तोत्र जपं एवं दानंच करिष्ये।। (पृथ्वी पर जल छोड़ें)। अथ: ध्यानम्- अहो सौराष्ट्रसंजात छायापुत्र चतुर्भुज। कृष्णवर्णार्कगोत्रीय बाणहस्त धनुर्धर।। त्रिशूलिश्च समागच्छ वरदो गृध्रवाहन। प्रजापतेतु संपूज्यः सरोजे पश्चिमेदले।।

ध्यान के पश्चात उक्त प्रकार से श्री शनिदेव का विधिवत् पूजन करें। शनिदेव की प्रतिमा पूजन के बाद राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का दस हजार की संख्या में जप करें। श्री शनि स्तोत्र (1) ऊँ कोणस्थः पिंगलोबभ्रु कृष्णो रौद्रान्तको यमः। सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्लाश्रय संस्थितः।। जो व्यक्ति प्रतिदिन अथवा प्रति शनिवार को पीपल वृक्ष पर जल अर्पित करके शनिदेव के उपरोक्त नामों-

कोणस्थ,

पिंगल,

बभु्र,

कृष्ण,

रौद्रान्तक,

यम,

सौरि,

शनैश्चर,

मन्द,

पिप्लाश्रय संस्थित को पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर जपेगा उसको शनि की पीड़ा कभी नहीं होगी।

एक बार शनिदेव पिप्लादमुनि आश्रित हो गये थे तथा पिप्लाद मुनि ने शनि देव को अंतरिक्ष में स्थापित किया था इसलिए शनिदेव का दसवां नाम ‘पिप्लाश्रय संस्थित’ पड़ा है।

महर्षि पिप्लाद मुनि ने भगवान शिव की प्रेरणा से शनिदेव की स्तुति की थी जो इस प्रकार है- नमस्ते कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते बभ्रुरुपाय कृष्णायच नमोस्तुते।। नमस्ते रोद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च। नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।। नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।। इस नमस्कार मंत्र का उच्चारण करते हुए शनिदेव का तैलाभिषेक करें (तेल चढ़ाएं) व कुमकुम से तिलक करें।

काले उड़द, काले तिल, नीले फूल व सिक्का (पैसा) चढ़ाएं। गुड़ का भोग लगाएं। शनि के इन स्तुति मंत्रों का शनिवार को प्रातःकाल शनि की होरा में अथवा प्रतिदिन 10 बार, एक माला, दस माला अथवा 10 हजार की संख्या में जप करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है। राजा दशरथकृत (संक्षिप्त) शनि स्तोत्र - कोणस्थः पिंगलो बभ्रु कृष्णो रौद्राऽन्तको यमः। सौरिः शनैश्चरो मंदः पिप्लादेन संस्तुतः।। रुद्राक्ष की माला से दस हजार की संख्या में इस स्तोत्र का जप करें, जप का दशांश हवन करें, जिसकी सामग्री काले तिल शमीपत्र, घी, नील कमल, खीर और चीनी मिलाकर बनाई जाए।

हवन की समाप्ति पर दस ब्राह्मणों की घी तथा दूध से निर्मित पदार्थों का भोजन कराएं। अकाल मृत्यु के नाश व कष्टों के परिहार के लिए शनि प्रतिमा का उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ दान करें। स्वर्ण, लौह धातु, नीलम रत्न, उड़द, तेल, कंबल आदि काले वस्त्र नीले फूल, भैंस या दूध देने वाली गाय (बछड़े सहित) शनि प्रतिमा का दान निम्न मंत्र का साथ ब्राह्मण को दें। शनैश्चरप्रीतिकरंदानं पीड़ा-निवारकम्। सर्वापŸिा विनाशाय द्विजाग्रयाय ददाम्यहम्।। यदि मरणासन्न व्यक्ति हेतु दान करना हो तो दान की उपरोक्त वस्तुओं में नमक, छाता व चमड़े के जूते भी शामिल करें। इसके फलस्वरूप मरने वाले जीव को यम यातना (नरक) का कष्ट नहीं भोगना पड़ता है।

एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्। शनैश्चरकृत पीड़ा न कदाचिदभ्विष्यति। जो दशरथकृत शनिदेव के उपरोक्त दस नामों का 10 बार जप प्रतिदिन प्रातःकाल करता है उसे शनिदेव भविष्य में कभी भी कष्ट नहीं देते हैं तथा अन्य ग्रहों द्वारा प्रदŸा कष्टों को भी दूर कर देते हैं। शनि यंत्र का चमत्कारिक प्रभाव: शनिवार को सायंकाल भोजपत्र या सादे कागज पर काली स्याही से निम्नलिखित शनि तैतीसा यंत्र को हिंदी के अंक लिखते हुए सावधानी व श्रद्धापूर्वक बनाएं।

यंत्र बनाते समय तांत्रिक शनि मंत्र- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।’’ का उच्चारण करते रहें। इस विधि से 33 यंत्र लिखकर उन यंत्रों पर उड़द व काले तिल रखें तथा इन यंत्रों का धूप दीप से पूजन करके काले कपड़ें में रुपया पैसा सहित बांधकर किसी शनि मंदिर में शनिदेव के चरणों में अर्पित करें। इस प्रकार का टोटका लगातार तीन शनिवार करें। शनि यंत्र दान का चमत्कारिक प्रभाव देखा गया है। ऐसा करने से शनि पीड़ा से शीघ्र मुक्ति मिलती है।

सिद्ध शनि तैतीसा यंत्र - ।। ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।। सभी प्रकार की शनि आराधनाओं के अंत में प्रार्थना स्वरूप शनि पीड़ा हर स्तोत्र पढ़ा जाना चाहिए। ऊँ सूर्यपुत्रो दीर्घदेहोविशालाक्षः शिवप्रियः। मन्दचार प्रसन्नात्मा पीड़ा दहतु मे शनिः।।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.