शनि-दोष निवारण उपाय ब्रह्मर्षि डाॅ. हरिकृष्ण छँगाणी शनि कब अशुभ फल प्रदान करता है? जन्मकुंडली में शनि नीच राशिगत, वक्री, अशुभ स्थान का स्वामी होकर ग्रहों के प्रभाव में हो तो शनि अपनी महादशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती या ढैया अवधि, जन्म शनि पर गोचर शनि का गोचर होने पर अशुभ फल देता है।
शनि क्या अशुभ फल प्रदान करता है? व्यवसाय, नौकरी व कार्यों में बाधाए,ं अस्वस्थता, मानसिक अशांति, पारिवारिक अशांति, धन-संचय में कमी, परेशानीपूर्ण यात्राएं, मित्रों से मतभेद, संतान संबंधी चिंता, सट्टा में हानि, शत्रुओं द्वारा परेशानी, मुकदमा-बाजी, लाभ व मान प्रतिष्ठा में बाधाएं, रुपये ब्लाॅक होना, व्यय का योग अधिक, हानि, ऋण आदि।
शनि-दोष निवारण के अनुभूत उपाय ः शनि के मंत्र:
वैदिक शनि मंत्र: ऊँ शन्नोदेवीर- भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
पौराणिक शनि मंत्र: ऊँ हृीं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
तांत्रिक शनि मंत्र: ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। शनि स्तोत्र: कोणस्थः पिंगलोबभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः। सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः।। एतानि दशनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्। शनैश्चर कृता पीड़ा न कदाचिद्भविष्यति।।
प्रातः उठकर शनि के उपर्युक्त दस नामो का स्मरण करने से भी शनि की पीड़ा शांति होती है।
शनि का दान: शनि की अनिष्टता निवारण के लिए निम्नलिखित वस्तुओं का दान देना चाहिए- तेल, काले तिल, काली उड़द, लोहा, काले वस्त्र, काली कंबल, छाता, चमड़े के जूते, काली वस्तुएं आदि।
शनि का व्रत: शनि की अनिष्टता निवारण के लिए शनिवार का व्रत करना चाहिए। एक समय भोजन करना चाहिए।
शनि की मुद्रिका: काले घोड़े के पैर की नाल की अभिमंत्रित अंगूठी मध्यमा अंगुली में धारण करनी चाहिए।
शनि पीड़ा निवारण रत्न: शनि दोष निवारण के लिए तुला, वृषभ, मकर, कुंभ राशि/लग्न के व्यक्तियों को शनि रत्न नीलम धारण करना चाहिए।
शनि यंत्र: ‘‘शनियंत्र’’ शुभ मुहूर्Ÿा में अनुष्ठान किया हुआ धारण करने से शनि की पीड़ा शांत हो जाती है।
शनि दोष निवारण के लिए भगवान् शिव, सूर्य, हनुमान जी की आराधना: भगवान शिव, सूर्य व हनुमान की आराधना करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और शनि की पीड़ा शांत हो जाती है।
भगवान् शिव के पंचाक्षर मंत्र ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’ का जप करना चाहिए तथा महामृत्युंजय मंत्र- ‘‘ऊँ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्’’ का जप करना चाहिए। सूर्य के ‘‘ऊँ घृणिः सूर्याय नमः’’ मंत्र का जप करना चाहिए तथा ‘‘आदित्य हृदय स्तोत्र’’ का प्रातः पाठ करना चाहिए।
श्री हनुमानजी की आराधना में ‘‘ऊँ हनुमते नमः’’ मंत्र का जप करना चाहिए तथा ‘‘हनुमान चालीसा’’ व ‘‘सुंदरकाण्ड’’ का पाठ करना चाहिए।
शनि के अशुभ समय में निम्नलिखित नियमों का पालन करने से शांति के अशुभ प्रभावों में निश्चित रूप से कमी होती है। शांति धारण करना आहार-विहार में नियमितता समायोजन व सहिष्णुता जोखिम भरे कार्यों से दूर रहना वर्तमान में विचरण केवल ‘‘मणि-मंत्र औषधि’’ के शास्त्रोक्त प्रयोग ‘‘विज्ञापन से भी फलित।