शनि एक परिचय डा. भगवान सहाय श्रीवास्तव शनि, न्यायप्रिय, कर्मप्रधान, आध्यात्मिक, आर्थिक सामाजिक सुख, मानसिक सुख और शारीरिक सुख देता है। तो फिर इनसे भय क्यों?
क्योंकि मनुष्य शनि ग्रह के स्वभाव के अनुरूप कार्य नहीं करता वरन् विपरीत कार्य करने से दुष्प्रभाव से प्रभावित होता है। भारतीय ज्योतिष पद्धति नवग्रह और बारह राशियों पर आधारित है। सूर्यपुत्र शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। यह एक राशि पर करीबन दो वर्ष छः माह रहता है।
बारह राशि की परिक्रमा 29 वर्ष, 5 मास, 17 दिवस 12 घंटों में पूर्ण करता है। शनि 140 दिन वक्री रहता है और मार्गी होते समय 5 दिन स्तंभित रहता है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को अशुभ माना है। पश्चिमी ज्योतिषी भी इसे दुर्गति लाने वाला ग्रह कहते हैं। अन्य ग्रंथों में भी शनि को भय, काल, दुख-दर्द, मंद आदि अशुभ सूचक हैं।
अंग्रेजी में इसे शैतान कहा गया है। हर एक इंसान को एक दिन मरना होता है। इसलिए व्यक्ति मृत्यु से रोज डरता है। परंतु शनि के डर से जीते-जागते ही मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने से वह भयाक्रांत है। शनि ग्रह के कारण ही मानव समाज में एक अंजान भय का वातावरण बना हुआ है।
शनि जब किसी राशि पर भ्रमण करता है, उस वक्त वह अपनी वर्तमान राशि, पिछली राशि, अगली पत्रिका में बारह घरों में से दो-तीन को छोड़ सभी घर शनि की दृष्टि से प्रभावित रहते हैं। यह भी भय का ही एक मुख्य कारण है। शनि गति का प्रभाव:
1. शनि अपना प्रभाव तीन चरणों में दिखाता है। पहले चरण में जातक का मानसिक संतुलन बिगड़ना, निश्चय विचार व संकल्प शक्ति में बिखराव-भटकाव दूसरे चरण में मानसिक व शारीरिक रोग। तीसरे चरण में मस्तिष्क ठीक न रहना, आवेश-आक्रोश व क्रोधाधिक्य होना।
2. शनि न्यायप्रिय और कर्म प्रधान ग्रह है। अध्यात्म, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और शारीरिक सुख का दाता है। इसके अलावा शनि-अध्यात्म, आर्थिक, वैभवशाली जीवन इत्यादि को विशेष प्रकार से प्रभावित करता है। जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, शनि उसी के अनुरूप फल देता है। जैसे कोई शराबी है, तो शनि ग्रह उस शराबी को शराब में डुबोए रखता है, चाहे उसका घर क्यों न बर्बाद हो जाये। दूसरी ओर यदि धार्मिक है। भगवत स्मरण, ध्यान-पूजन जैसे सद्कार्य- शुभकार्यों में संलग्न है, तो शनि इसी के अनुसार अपना प्रभाव देने लगेगा।
शनि के कारण ही उस व्यक्ति की जीवनशैली अभावमुक्त सुख और शांति से व्यतीत होगी। हमेशा वह प्रसन्न चिŸा रहेगा चाहे शनि कितना खराब क्यों न हो शनि के प्रभाव को सूक्ष्मता व गहराई से अध्ययन करने पर यह पाया गया है कि शनि में दुर्गुणों की अपेक्षा सद्गुण् ाों की भरमार है।
शनि की गुणवŸाा: कर्मप्रधान, न्यायप्रिय, त्यागी, लोककल्याण के लिए प्रयत्नशील, मिलनसार, उदार, राष्ट्रीय कार्य में तत्पर, घर बसाने वाला, परोपकारी प्रवृŸिा आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला, विश्वबंधुत्व-प्रेम, पवित्रता की भावना विकसित करने वाला, किसी भी गूढ़ शास्त्र में तह तक खोज करने वाला, अभ्यास, लेखन, ग्रंथ प्रकाशन तत्व ज्ञान का प्रसार, अपमानित स्थिति में दीर्घकाल तक जीवित न रहकर स्वाभिमान में दो दिन में मरना अच्छा। ऐसी भावना वाला।
हंसी-मजाक का वातावरण बनाना, व्यवहारिक ज्ञानदाता, कार्य- कुशलता गुणवŸाा बढ़ाने वाला, व्यापार में चतुरता देने वाला, भोजन बनाने की कला मंे निपुण, झूठ और सच का भेद समझने वाला, समझ-सोचकर गंभीरता से सच बोलने वाला, आत्मविश्वासी, मितव्ययी, सहनशील, शांत, स्थिर, अनासक्ति, निर्लिप्त इच्छा न होते हुए भी अधिकार प्राप्त करने वाला, अन्याय अत्याचार, अनुशासन हीनता का प्रतिकार करने वाला, विचार गुप्त रखने वाला, संसार में आसक्त आरै दीर्घायु देने वाला, चिकित्सा व्यवसाय देने वाला ग्रह है।
शनि स्वभाव संदर्भ: यह ग्रह शांत, गंभीर, शालीनता, सभ्यता और विचारक-सुधारक की प्रवृŸिा बनाता है। वृद्धावस्था पर इसका अधिकार, आत्मविश्वास, संकुचित वृŸिा, मितव्ययी, सावधानता, धूर्तता इच्छाशक्ति प्रबल होने से सहनशील, स्थिर, दृढ़ प्रवृŸिा होती है। उल्लास, हर्ष, आनंद, प्रसन्नता ये गुण कम दिखाई देते हैं। हंसी-मजाक का वातावरण बनाना, व्यावहारिक ज्ञान और कुशलता के बल पर सफल व्यापारी या कर्मचारी होना भी एक प्रकार से प्रत्यक्ष प्रमाण के उदाहरण हैं जिनकी जांच-पड़ताल स्वयं अनुभव व दर्शन द्वारा कर सकते हैं।
शनि अवगुण: स्वार्थी, लालची, धूर्तदुष्ट, आलसी, मंद व कुंद बुद्धि, अविश्वासी, घंमडी, अहंकारी, नीच कार्य करने वाला, झगड़े करने वाला, दूसरों की उन्नति-प्रगति से ईष्र्या रखने वाला, कठोर व कटु वचन बोलने वाला, असंतोष व्यसनों में आसक्ति, पाप-पुण्य, धर्म-कर्म की परवाह न करना, दुराचरण, अच्छे कार्यों में विघ्न-बाधा उत्पन्न करना, स्वार्थी, दूसरों की त्रुटियां ढंूढना, बुराई करना, दूसरे के धन का अपहरण करना, धन की तृष्णा, सŸाा की कोशिश, जुर्म जुल्म और दुराचार-अपराध करना, क्रोधी प्रवृŸिा, धोखाधड़ी, गद्दारी, दरिद्रता, ग्रह-कलह।
भ्रष्टाचार का कारक: आज चारों तरफ जो भ्रष्टाचार, अनैतिक, बेईमानी, कामचोरी का बोलबाला है। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्वार्थ में लगा हुआ है, चाहे वह भ्रष्टाचार के विरोधी लोग ही क्यों न हों? भ्रष्टाचार, अनैतिकता, बेईमानी से प्राप्त धन या वस्तु स्थिर नहीं रहती। टुकड़ों में संग्रहीत होती है और थोक या एक मुश्त में जाती है। जैसे सरकारी कार्यवाही होना, पारिवारिक विवादों में उलझना आदि इन कष्टों के लिए शनि का ही दोष-अवगुण बताया गया है।
सदैव से सदैव के लिए प्रत्येक व्यक्ति की मुख्य आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा, मकान और पारिवारिक सुख हैं। इनकी प्राप्ति के लिए जो अनैतिक हथकण्डे अपनाये जाते हैं उससे क्षणिक सुख की प्राप्ति जरूर होती है, परंतु दीर्घ सुख से वंचित होना पड़ता है। यदि घर में गलत कार्य या मार्ग द्वारा अर्जित धन या वस्तु आ रही है, तो उसके साथ-साथ घर में अशांति, बीमारी, मानसिक, सामाजिक परेशानियां आने लगती हैं। ऐसा जातक दो वक्त की रोटी भी चैन से नहीं खा सकता है।
इसका दोष सिर्फ शनि का ही होता है। शनि एक अच्छा ग्रह तभी है, जब इसके स्वभाव के अनुरूप कार्य होगा तो शनि के दुष्प्रभाव का किंचित मात्र भी असर नहीं होगा। शनिदेव महिलाओं का आदर-सत्कार न करने वाले लोगों से क्रोधित रहते हैं। वह चोरी, डकैती और अपहरण जैसे बुरे कर्म करने वाले लोगों को भी परेशान करते हैं। इसके अलावा शनि का कोप भाजन का शिकार, मांस-मदिरा का सेवन और धूम्रपान करने वाले लोग भी होते हैं। साथ ही धर्म के नाम पर पाखंड व ठगी करने वाले और शनि मंदिर के नाम से व्यापार करने वाले लोगों को भी शनिदेव छोड़ते नहीं सताते हैं।
अगर वास्तव में शनिदेव को प्रसन्न करना हो तो गरीबों व असहायों-अनाथों की हमेशा मदद करें। बड़ों-बुजुर्गों का सम्मान करें और हमेशा सद्भावना रखते हुए सद्कार्य करें। शास्त्रानुसार शिव-पूजन विधि: शास्त्रों के अनुसार अगर शनि जयंती या अमावस्या या महत्वपूर्ण तिथि के अवसर पर भक्तगण भगवान शिव तथा ग्यारहवें रुद्र मारुति नंदन की उपासना करें तो उन्हें शनि की साढ़ेसाती, दशा, अंतर्दशा, ग्रहदोष, पितृदोष आदि से मुक्ति मिलती है। रवि और गुरु द्वारा शनि पराजित होता है।
यह तुला मकर तथा कुंभ राशि में, विवाह स्थान में, स्वग्रह में, शनिवार को अपनी दशा में राशि के अंत भाग में युद्ध के समय, कृष्ण पक्ष में तथा वक्री हो उस समय किसी भी स्थान पर हो बलवान होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर शनिदेव अपनी दशा और अंतर्दशा में कुंडली में अशुभ स्थान पर हों तो जातक को कष्ट, विघ्न, बाधा, असफलता, गृहक्लेश, अशांति, स्थानांतरण, पदच्युत आदि कष्टों का सामना करना होता है।
ऐसी परेशानियों से बचने के लिए शनि जयंती, अमावस्या या शनिवार के दिन रुद्राभिषेक, तैलाभिषेक करना चाहिए और महामृत्युंजय कवच, शनि स्तोत्र, शनि चालीसा, हनुमान चालीसा महामृत्युंजय का जप अथवा शनि मंत्र का जप करें। संक्षिप्त विधि: शनि सात्विक तपस्वी ग्रह हैं, इसलिए इनकी पूजा में शुद्ध ता, सात्विकता तथा ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व होता है। प्रातःकाल स्नानादि से निवृŸा होकर पूर्ण ब्रह्मचय का पालन करते हुए घर या मंदिर में एकांत स्थान पर पश्चिम की ओर मुख करके काले ऊन के आसन पर बैठ जाएं।
अब सामने चैकी रखें और उस पर काला वस्त्र बिछाकर शनि यंत्र एवं शनि चित्र स्थापित करके तेल का दीपक जलाकर हाथ में अक्षत लेकर संकल्प लें। मम सकल दोष निवारणार्थ आयु आरोग्य धनधान्य, वृद्धयर्थ सकल कामना सिद्धये श्री शनिदेव प्रसन्ना च शनि वृतं अहं करिष्ये। तत्पश्चात काले अक्षत, काली उड़द, काले तिल, नीले पुष्प, दूब, गुड़, बिल्व पत्र, काली लकड़ी की चरण पादुका समर्पित करके शिव तथा हनुमान जी का पूजन करें फिर शनिदेव का एकाग्रचित ध्यान से आहवान करें।
मंत्र- ऊँ भूर्भुवः स्वः शनैश्चरः इहगच्छ इहतिष्ठ शनैश्चराय नमः।
ध्यान मंत्र- नील द्युति शुल धरं किरीटिन गृद्ध स्थितं त्रासकरं धनुर्धरम्। चतुर्भुजं-सूर्यसुतं प्रशांत वंदे सदाभीष्ट करंवरेण्यं।
तत्पश्चात शनि के मूल मंत्र ऊँ नमो भगवते शनैश्चराय सूर्य पुत्राय नमः का यथाशिक्त जपकर अंत में शनि यंत्र पर तेल चढ़ाकर आरती करके पूजन का विसर्जन करें तथा सौभाग्य प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
इस दिन बंदरों को चना तथा काले कुŸो को लड्डू खिलाएं। पीपल या वट वृक्ष, शनि तथा भैरव मंदिर में तेल का दीप जलाएं। काली गाय या भैंस को हराचारा खिलाएं। शास्त्रों के अनुसार अगर शनि जयंती या अमावस्या या महत्वपूर्ण तिथि के अवसर पर भक्तगण भगवान शिव तथा ग्यारहवें रुद्र मारुति नंदन की उपासना करें तो उन्हें शनि की साढ़ेसाती, दशा, अंतर्दशा, ग्रहदोष, पितृदोष आदि से मुक्ति मिलती है