सामुद्रिक शास्त्र और शनि अंकुर नागौरी हाथ में मध्यमा अंगुली को शनि की अंगुली कहते हैं। मध्यमा अंगुली के ठीक नीचे के स्थान को शनि का क्षेत्र, या शनि का पर्वत कहते हैं। हथेली में इस पर्वत का उभरापन असाधारण प्रवृत्तियों का सूचक है। इसके स्वाभाविक गुण तंत्र, या गुप्त विधियों में रुचि, एकांतप्रियता, दुखांत साहित्य, दुखांत संगीत, जासूसी साहित्य और गंभीर व्यक्तित्व हैं। मध्यमा अंगुली भाग्य की सूचक है। हथेली में भाग्य रेखा इसी पर्वत पर आ कर समाप्त होती है। शनि पर्वत यदि उन्नत, पुष्ट, या शुभ वर्ण से युक्त हो, तो व्यक्ति सत्यवादी, दूसरे के मन की बात जानने वाला, परोपकारी, न्यायाधीश, जादूगर और तंत्र में रुचि रखने वाला, गलत बात, या चुगली न पसंद करने वाला, संपत्ति, या जमीन-जायदाद का काम करने वाला, धातुओं, खनिज, लवण, रत्न आदि से संबंधित कार्य करने वाला होता है। अगर शनि पर्वत दबा हुआ हो, या शनि क्षेत्र में गड्ढा प्रतीत हो, तो उपर्युक्त गुणों में कमी आ जाती है और यह अपना विपरीत प्रभाव दिखाना शुरू कर देता है। हथेली में इस पर्वत का न होना असफलता का सूचक है। सामान्य रूप से उभरा हुआ शनि पर्वत ही शुभ माना गया है। यदि यह सुंदर और सुगठित हो, तो अशांति और दुःख उसके पास ही नहीं फटकते। भााग्य रेखा, अथवा शनि रेखा द्वारा जातक के जीवन पर शनि का प्रभाव जाना जा सकता है। हाथ में भाग्य रेखा हथेली में संपूर्ण, या दोषमुक्त हो, तो जातक अपने संपूर्ण जीवन में शनि का शुभ प्रभाव जान सकता है। हाथ में भाग्य रेखा हथेली में संपूर्ण, या दोषक्त के हो, तो जातक की जीवन वृत्ति अनिश्चित होगी और जीवन उतार-चढ़ाव से परिपूण्र् ा होगा। भाग्य रेखा किसी स्थान से टूटी हो, तो जहां पर टूटी हो, आयु की उस अवस्था में जातक को दुर्भाग्य और आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। परंतु यदि टूटी हुई रेखा का दूसरा भाग पहले भाग से पीछे आरंभ हो, तो जातक के जीवन में बिल्कुल नया परिवर्तन आता है। दोहरी भाग्य रेखा भी एक अत्यंत शुभ लक्षण है। शनि पर्वत और शनि रेखा दोनों ही जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव संबंधी जानकारी देते हैं। अगर हाथ में भाग्य रेखा टूटी हुई है, कमजोर है और हाथ में शनि पर्वत दबा और दोषयुक्त है, तो यह स्थिति दुर्बल भाग्य की परिचायक है। ऐसे में शनि के उपाय करने से लाभ मिलता है।