फेंग शुई: फेंग शुई का शाब्दिक अर्थ है, फेंग हवा और शुई पानी, अर्थात् हवा और पानी। पृथ्वी को उचित मात्रा में हवा और पानी प्राप्त हों तो फसल भरपूर होती है। फलस्वरूप किसान समृद्ध होते हंै। इसलिए इस शब्द का उपयोग आरंभ में किसानों द्वारा इस अर्थ में किया गया कि, हवा और पानी, अर्थात् फेंग शुई की अच्छी और अनुकूल दशा होने पर, फसल भरपूर होती है और किसानों को समृद्धि प्राप्त होती है।
कालांतर में फेंग शुई शब्द सुख-समृद्धि तथा अच्छे रहन-सहन के लिए भवन निर्माण संबंधी ज्ञान के लिए किया जाने लगा। वास्तु: वस् धातु, तुण प्रत्यय से, नपुंसक लिंग में वास्तु शब्द की निष्पत्ति होती है। हलायुद्ध कोष के अनुसार वास्तु संक्षेपतो वक्ष्ये गृहदो विघ्नाशनम्। इसानकोणादारभ्य हयोकार्शीतपदे प्यज्येत्।।
अर्थात्, वास्तु संक्षेप में इशान्यादि कोण से प्रारंभ हो कर गृह निर्माण की वह कला है, जो घर को विघ्न, प्राकृतिक उत्पातों और उपद्रवों से बचाती है अमर कोष के अनुसार ’गृहरचना वच्छिन्न भूमे’ गृह रचना के योग्य अविछिन्न भूमि को वास्तु कहते हैं। वास्तु वह स्थान कहलाता है, जिस पर कोई इमारत खड़ी हो, अथवा घर बनाने लायक जगह को वास्तु कहते हैं या वास्तु वस्तु से संबंधित वह विज्ञान है, जो भवन निर्माण से ले कर भवन में उपयोग की जाने वाली वस्तु के बारे में मनुष्य को बतलाता है।
संक्षेप में वस्तु को सुनियोजित तरीके से रखना ही वास्तु है। समरांगण सूत्र धनानि बुद्धिश्च सन्तति सर्वदानृणाम्। प्रियान्येषां च सांसिद्धि सर्वस्यात् शुभ लक्षणम्।। यात्रा निन्दित लक्ष्मत्र तहिते वां विधात कृत्। अथ सर्व मुपादेयं यभ्दवेत् शुभ लक्षणम्।। देश पुर निवाश्रच सभा वीस्म सनाचि। यद्य दीदृसमन्याश्रच तथ भेयस्करं मतम्।। वास्तु शास्त्रादृतेतस्य न स्यल्लक्षणनिर्णयः। तस्मात् लोकस्य कृपया सभामेतत्र्दुरीयते।।
अर्थात्, वास्तु शास्त्र के अनुसार भली भांति योजनानुसार बनाया गया घर सब प्रकार के सुख, धन-संपदा बुद्धि, सुख-शांति और प्रसन्नता प्रदान करने वाला होता है और ऋणों से मुक्ति दिलाता है। वास्तु की अवहेलना के परिणामस्वरूप अवांछित यात्राएं करनी पड़ती हैं, अपयश, दुख तथा निराशा प्राप्त होते हैं। सभी घर, ग्राम, बस्तियां और नगर वास्तु शास्त्र के अनुसार ही बनाये जाने चाहिए। इसलिए इस संसार के लोगों के कल्याण और उन्नति के लिए वास्तु शास्त्र प्रस्तुत किया गया है। फेंग शुई एवं वास्तु में अंतर: चीन सूदूर पूर्व में स्थित देश है।
इसके उत्तर में मंगोलिया का ठंडा रेगिस्तान है। पूर्व की ओर खुला प्रशांत महासागर है। यहां उत्तर की ओर से बहुत ठंडी हवाएं आती हैं, जो अपने साथ ढेर सारी पीली धूल उड़ा कर लाती हैं। इसलिए उत्तर दिशा को यहां शुभ नहीं माना जाता और अपने भवनों में उत्तर की ओर खुलते दरवाजे, खिड़कियां, बरामदे आदि रखना अच्छा नहीं समझा जाता है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व की ओर से गर्मियों में शीतल सुहावनी समुद्री हवाएं आती हैं। इसलिए पूर्व और पूर्व-दक्षिण दिशाओं को यहां शुभ माना जाता है। इसके विपरीत भारत में उत्तर को शुभ माना जाता है। फेंग शुई एवं वास्तु में समानताएं दोनों ही शास्त्रों ने पूर्व दिशा को अच्छा माना है। दोनों ही शास्त्रों ने पांच तत्व एवं अपनी-अपनी ज्योतिष विधा को महत्व दिया है।
दोनांे ही पद्धतियांे ने मनुष्य जीवन का प्रकृति से संतुलन किया है। दोनों ही शास्त्रों ने उत्तर-पूर्व को ज्ञान एवं शिक्षा की दिशा माना है। दोनों ही शास्त्रों ने दक्षिण दिशा का लाल रंग से संकेत किया है। दोनों ही शास्त्रों में जनकल्याण की भावना निहित है। दोनों ही शास्त्रों में सुधार के उपाय अपनी-अपनी जगह शुभ परिणाम देते हैं। फेंग शुई: चीन प्रकृति वैज्ञानिकों के अनुसार समस्त ब्रह्मांड यिन और यांग नाम की ऋणात्मक और धनात्मक द्वैत शक्तियों से आच्छादित है। ’यिन’ स्त्री शक्ति है और ’यांग’ पुरुष शक्ति है। ये अलग-अलग दिशाओं के स्वामी हैं और इनके अपने-अपने प्रभाव हैं। इनका विवरण तालिका में प्रदर्शित है।
फेंग शुई का सिद्धांत पांच तत्वों के संतुलन के साथ ’यिन’ और ’यांग’ का आपस में संतुलन करता है। फेंग शुई के पंच तत्व: काष्ठ - रंग हरा, दिशा पूर्व काष्ठ पोषक, पारिवारिक मानसिकता तथा लचीले स्वभाव का द्योतक है। यह प्रायः विकास से जुड़ा रहता है। काष्ठ का सृजन करने वाले पुरुष ऊर्जावान और सर्वजनोन्मुख होते हैं। ऐसे पुरुष नित नयी योजनाओं को जन्म देते हंै; साथ ही प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण सफलता भी प्राप्त करते हैं। कलात्मकता की ओर इनका झुकाव होता है। इसके विपरीत यदि काष्ठ की प्रतिकूलता देखी जाए तो इसका सृजन करने वाले धैर्यहीन और क्रोधी होते हैं। वे अक्सर जिस काम को आरंभ करते हैं, उसे पूरा नहीं कर पाते।
अग्नि - रंग लाल, दिशा दक्षिण अग्नि ऊर्जा से परिपूर्ण प्रेरणादायक तथा समझदार होती है। साथ ही यह प्रेरित करने वाले उत्साह से परिपूर्ण बुद्धिमान भी होती है। यह प्रकाश, गरमाहट और खुशियां ला सकती है तो दाह, धमाका और विनाश भी कर सकती है। अग्नि तत्व सम्मान और न्याय का साथ देता है। किंतु इसके विपरीत यह युद्ध और आक्रमण का साथ भी देता है। अग्नि का सृजन करने वाले पुरुष नेता क्रियाशील होते हैं। ऐसे पुरुष नियमों को नापसंद करते हैं और इस स्थिति में काफी कठिनाइयों का सामना करते हैं। इस तत्व की अनुकूलता यह है कि इसका सृजन करने वाले क्रियाशील, हंसमुख और धैर्यवान होते हैं, जबकि प्रतिकूलता यह है कि इसका सृजन करने वाले असंयमी, शोषक और स्वार्थी किस्म के होते हैं।
पृथ्वी - रंग पीला, दिशा मध्य पृथ्वी, यानी भूमि भरोसेमंद, निष्ठावान तथा दयालु होती है। इसका विनम्र स्वभाव तो होता ही है, साथ ही जिम्मेदारियां वहन करने में इसे आनंद मिलता है। यह तत्व पर्यावरण के स्वास्थ्य का प्रतिनिधि है। इस तत्व का सृजन करने वाले सहयोगी, व्यावहारिक, क्रियाशील और निष्ठावान् होते हैं। इस तत्व का अनुकूल प्रभाव देखें, तो इसका सृजन करने वाले ईमानदार, विश्वासपात्र और धैर्यवान होते हैं, जबकि प्रतिकूल प्रभाव में शोषक एवं परपीड़क होते हैं। जिस समस्या का अस्तित्व ही नहीं, उससे किसी को उलझा देना इसकी प्रतिकूलता है।
धातु - रंग सफेद तथा सुनहरी, दिशा पश्चिम धातु का संबंध प्रचुरता तथा भौतिक सफलता से होता है। साथ ही यह स्पष्ट विचार, विस्तृत जानकारी के प्रति चैकसी से भी जुड़ा होता है। धातु प्रधान व्यक्ति भावी योजनाएं बनाने में सदैव आगे रहते हैं। इस तत्व का सृजन करने वाले पुरुष धार्मिक सिद्धांतों और उसूलों पर चलने वाले होते हैं। ये अच्छे प्रबंधक होते हैं। ऐसे व्यक्ति धीर-गंभीर होते हैं तथा बहुत ही कठिनाई से किसी की मदद करने को राजी होते हैं। इस तत्व की प्रकृति वस्तु की ठोसता तथा योग्यता का प्रतिनिधित्व करती है। यह मार्गदर्शक भी है। संवाद का प्रतिनिधित्व, चमत्कारी संकल्पना और न्याय इसकी अनुकूलता में आते हैं, जबकि खतरा और अवसाद इसकी प्रतिकूलता दर्शाते है।
जल - रंग काला तथा नीला, दिशा उत्तर जल तत्व सामाजिक क्रियाकलापों, दूर संचार तथा बौद्धिकता को दर्शाता है। यह अंतःप्रेरणा से युक्त तथा संवेदनशील होता है। इसका सृजन करने वाले व्यक्ति आध्यात्मिकता तथा अध्ययन में रुचि रखते हैं। जल तत्व आंतरिकता, कला और खूबसूरती का भी प्रतीक है। जल पुरुष कूटनीतिक और अपने प्रभाव से काम निकालने वाले, दूसरों की मनोदशा के प्रति संवेदनशील होते हैं। वे जोखिम उठाते हैं और लाभकारी समझौते करते हैं। जल का सृजन करने वाले पुरुष लचीले और विश्वासयोग्य होते हैं।
अपने विचारों को वे उग्रता से पेश करते हैं तथा कलात्मक, सामाजिक और सहानुभूतिशील, संवेदनशील ओर अस्थिर होते हैं। जिस प्रकार फेंग शुई पंच तत्वों पर आधारित है, या फेंग शुई में ये पंच तत्व अति महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, ठीक इसी प्रकार वास्तु शास्त्र में भी पंच तत्वों का समावेश है। वास्तु शास्त्र भी इन पंच तत्वों के संतुलित संकलन के आधार पर प्रतिपादित है। वास्तु शास्त्र के पंच तत्व: भौतिक शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। ये पंचतत्व हैं अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल। शरीर के समस्त कठोर हिस्से, जैसे हड्डी पृथ्वी का भाग हैं। शरीर के समस्त तरल पदार्थ, जैसे रक्त तथा अन्य द्रव ’जल’ के हिस्से हैं। शरीर के समस्त गर्म भाग, जैसे पेट आदि अग्नि के हिस्से हैं।
शरीर का फैलना, सिकुड़ना, सांस लेना वायु के हिस्से हैं। क्रोध, भावनाएं, स्पर्श आदि संवेदनाएं आकाश के भाग हैं। वास्तु में आकाश तत्व स्फूर्ति है, वायु तत्व संवेग है, अग्नि तत्व पथ प्रदर्शक है, जल तत्व श्रम है और पृथ्वी तत्व प्रसन्नता ग्रहण करने वाला तत्व है। अतः अच्छे स्वास्थ्य, मन की शांति एवं दृढ़ इच्छा शक्ति के लिए भवन निर्माण में पंच तत्वों का समावेश उचित अनुपात में, वास्तु नियमानुसार किया जाना चाहिए। घर के अंदर उपयोग में लाने के लिए ’पानी’ की टंकी, ट्यूबवेल, कुएं इत्यादि निर्मित करते हैं। भोजन पकाने के लिए ’अग्नि’ का उपयोग करते हैं।
घर की चारदीवारी खड़ी कर के एक क्षेत्र, (स्पेस) का निर्माण करते हैं, जिसे ’आकाश’ कहते हैं। ’आकाश’ क्षेत्र को पूर्ण भरने के लिए ’वायु होती है। घर के अंदर खिड़की-दरवाजे लगाये जाते हैं, ताकि वायु को संचालित कर उपयोग में लाया जा सके। कहने का तात्पर्य यह है कि चारों तरफ के वातावरण में इन पंच तत्वों का समावेश उचित अनुपात में होगा, तो भौतिक शरीर पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। सही अनुपात में शरीर ऊर्जाएं ग्रहण करेगा।
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