गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार सरोवर बाँध से पश्चिम दिशा में 3.2 किलोमीटर की दूरी पर साधुबेट नामक स्थान पर जो कि नर्मदा नदी का एक टापू है उस पर सरदार पटेल का पूर्वमुखी स्टैच्यू बनेगा। पर्यटक इसे अमेरिका स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की तरह कुछ किलोमीटर दूर से स्टीमर द्वारा देखने आएंगे। इस परियोजना की कुल लागत 3000 करोड़ रुपये से अधिक होगी। लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति में बनने वाला विश्व का सबसे ऊँचा स्टैच्यू लोहे से ही बनाया जाएगा। इस प्रतिमा को बनाने के लिए लोहा पूरे भारत के गाँव में रहने वाले किसानों से खेती में काम आने वाले बेकार व पुराने हो चुके औजारों का संग्रह करके जुटाना तय किया गया था। लोहा एकत्र करने की अन्तिम तारीख 26 जनवरी 2014 रखी गई थी।
इस परियोजना को जितने भव्य स्तर पर बनाया जा रहा है उसके लिए जिस स्थान का चयन किया गया है उसकी भौगोलिक स्थिति के वास्तुदोषों को देखते हुए यह तय है कि न तो यह योजना अपने प्रस्तावित 56 माह के समय में पूर्ण होगी और न ही यह परियोजना पूर्ण होने के बाद इतनी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकेगी। इसके लिए इस स्थान की भौगोलिक स्थिति का वास्तु विश्लेषण करना होगा, जो कि इस प्रकार है। नर्मदा नदी सरदार सरोवर डैम से निकलकर साधुबेट पर दो धारा में बँट जाती है, जिसमें से एक धारा साधु बेट की दक्षिण दिशा में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बह रही है। यहाँ पर इसका पाट बहुत चैड़ा और गहरा है, इस कारण यहाँ वर्षभर पानी रहता है। साधुबेट के पूर्व आग्नेय और र्नैत्य कोण में भी नदी में बहुत गहराई होने के कारण भारी मात्रा में वर्षभर जल भराव रहता है। साधुबेट की उत्तर दिशा में बह रही दूसरी धारा बहुत उथली है।
यहाँ गहराई नहीं के बराबर है। जब डैम से बहुत ज्यादा मात्रा में पानी छोड़ा जाता है तब ही यहाँ पानी आता है अन्यथा यह धारा सूखी ही रहती है। इस प्रकार साधुबेट की पश्चिम दिशा, वायव्य कोण, उत्तर दिशा, ईशान कोण और पूर्व दिशा अन्य दिशाओं आग्नेय कोण, दक्षिण दिशा और र्नैत्य कोण की तुलना में ऊँची है। नदी के पूर्व से पश्चिम के बहाव के कारण निश्चित ही नदी का तल भी पूर्व दिशा में ऊँचा और पश्चिम दिशा ढलान लेता हुआ आगे चला गया है। साधुबेट की उत्तर दिशा में बह रही नर्मदा की दूसरी धारा से सटकर ही उत्तर दिशा में ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ हैं। इन पहाड़ियों और साधु बेट के बीच एक सड़क भी है जो कि केवड़िया कॉलोनी से सरदार सरोवर डैम की ओर जा रही है। इसी के साथ साधु बेट की जमीन के र्नैत्य कोण वाला बढ़ा हुआ भाग भी एक महत्त्वपूर्ण वास्तुदोष है। साधु बेट की उपरोक्त वास्तु विपरीत भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ हमेशा विवाद होंगे। इस परियोजना को पूर्ण करने में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
जैसी उम्मीद मोदी जी द्वारा की जा रही है, कि इस परियोजना के पूर्ण होने के बाद स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र बन जाएगी जो कि इस स्थान के वास्तुदोषों को देखते हुए बिलकुल भी सम्भव नहीं है। मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार लोहा एकत्र करने के लिए जिस स्तर पर आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी ने प्रयास किए उस मात्रा में लोहा एकत्र ही नहीं हुआ और जो हुआ वह इस स्टैच्यू में लगेगा ही नहीं, क्योंकि इस परियोजना के निर्माताओं के अनुसार भारत से एकत्र किये गए लोहे की क्वालिटी अच्छी नहीं है। अब इस लौहे का उपयोग परियोजना में रैलिंग, दरवाजे इत्यादि बनाने में किया जाएगा। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के भूमिपूजन के बाद से ही यहाँ विवाद भी शुरु हो गए। स्टैच्यू के आसपास पर्यटन अवसंरचना विकास हेतु भूमि अधिग्रहण का कुछ स्थानीय नागरिकों ने विरोध किया है जिनमें मुख्य रुप से केवाडिया, कोठी, वाघाडिया, लिम्बडी, नवगम और गोरा गाँव के लोग शामिल हैं।
साथ ही पर्यावरण संरक्षण समिति नामक संस्था ने पर्यावरण से जुड़े अहम मुद्दों की अनदेखी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी निर्माण समिति, सहित कुल छः लोगों को नोटिस भेजा है। जब 29 मार्च 2015 अर्थात् भूमिपूजन के 15 माह बाद इस परियोजना का वास्तु विश्लेषण किया गया तो, देखा कि अभी तो केवल साधु बेट के ऊपरी हिस्से को समतल करने के लिए ही जेसीबी से खुदाई का काम चल रहा है और कार्य की गति को देखते हुए यह परियोजना अपने निर्धारित समय से बहुत पिछड़ गई है। उपरोक्त वास्तु विश्लेषण के अनुसार साधुबेट की भौगोलिक स्थिति इतने भव्य स्मारक के निर्माण के लिए उचित चयन है ही नहीं, क्योंकि प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए उत्तर दिशा, ईशान कोण या पूर्व दिशा में नीचाई आवश्यक होती है, किन्तु साधुबेट पर तो इन दिशाओं में ऊँचाई है।
विश्व के सातों आश्चर्य भी अपनी उत्तर दिशा, ईशान कोण और पूर्व दिशा की अनुकुलता के कारण ही प्रसिद्ध हैं। सभी आश्चर्यों की इन्हीं दिशाओं में गहरी नीचाई है और ज्यादातर आश्चर्यों की उत्तर दिशा में पानी है जैसे ताजमहल की उत्तर दिशा में यमुना नदी और पेरिस के एफिल टावर की उत्तर दिशा में सान नदी बह रही है, मिस्र के गीजा पिरामिड की उत्तर एवं पूर्व दिशा में गहरी नीचाई के साथ, पूर्व दिशा में नील नदी बह रही है। विश्व का सबसे धनी एवं प्रसिद्ध धार्मिक स्थल ईसाईयों की पवित्र नगरी वेटिकन सिटी की इस स्थिति में भी उत्तर एवं पूर्व दिशा में बह रही टिब्बर नदी की ही अहम् भूमिका है। इसी प्रकार भारत के पहले और विश्व के दूसरे नम्बर के धनी, प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तिरुपति बालाजी की उत्तर दिशा में बड़े आकार का स्वामी पुष्यकरणी कुण्ड के साथ-साथ उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में तीखा ढलान है और दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊँचाई है।
जम्मू, कटरा स्थित वैष्णोदेवी मंदिर एवं शिर्डी स्थित साँईबाबा के मंदिर की उत्तर दिशा में भी नीचाई है। हरिद्वार स्थित हर की पौढ़ी की प्रसिद्धि का कारण दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर नीचाई तथा पश्चिम दिशा के पहाड़ की ऊँचाई और पूर्व दिशा में बह रही गंगा नदी की नीचाई है। फेंग शुई फेंग शुई का एक सिद्धांत है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊँचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुण्ड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंग शुई के इस सिद्धान्त में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। चाहे पूर्व दिशा ऊँची हो और पश्चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। फेंग शुई के सिद्धान्तों के आधार पर बनी अब तक की सबसे ऊँची स्टैच्यू 128 मीटर ऊँची स्प्रिंग बुद्ध की टैम्पल चीन के जाओकुन कस्बे में स्थित है।
स्टैच्यू के पीछे उत्तर दिशा में पहाडियाँ हैं और सामने दक्षिण दिशा में क्रमशः नीचाई के साथ पानी भी है। अब तक की विश्व की सबसे ऊँची स्टैच्यू होने के बाद भी इसे ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिल पाई है, क्योंकि वर्षों के अनुसंधान के बाद यह देखने में आया है कि यदि दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा में पहाड़ हो उत्तर, पूर्व दिशा या ईशान कोण में नीचाई हो तो वह स्थान अध् िाक प्रसिद्धि प्राप्त करता है। फेंग शुई सिद्धान्त के अनुसार भी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी सरदार सरोवर बाँध की ओर मुख रखते हुए जहाँ बनाई जा रही है उसके आगे में भी और पीछे भी पानी है तो फेंग शुई का यह सिद्धान्त भी इस पर लागू नहीं होता। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को उचित प्रसिद्धि मिले इसके लिए जरुरी है कि साधु बेट की पूर्व दिशा, ईशान कोण, उत्तर दिशा, वायव्य कोण और पश्चिम दिशा में अन्य दिशाओं की तुलना में गहरी खुदाई करके इस धारा को दूसरी धारा से ज्यादा चैड़ा किया जाए ताकि साधुबेट में भी स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी अमेरिका, स्वर्ण मन्दिर अमृतसर की तरह चारों ओर पानी हो जाए और इस खुदाई में जो मिट्टी निकलेगी उसे साधुबेट के आग्नेय कोण, दक्षिण दिशा, र्नैत्य कोण और पश्चिम दिशा वाले भाग में इस प्रकार से फैलाया जाए कि नदी का बहाव पूर्व दिशा, ईशान कोण, उत्तर दिशा होते हुए हो जाए।
साधुबेट के र्नैत्य कोण में जो बढ़ाव है उसे भी खोद दिया जाए और इसे 90 डिग्री का किया जाए। ईशान कोण वाले भाग में इस तरह से मिट्टी का भराव किया जाए कि यह कोना भी 90 डिग्री का हो जाए। साधुबेट में आने और जाने के लिए बनने वाले ब्रिज वास्तुनुकूल स्थान पर बनाए जाएं ताकि वह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। साधुबेट की भौगोलिक स्थिति में यह सभी वास्तुनुकूल परिवर्तन करने के बाद स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परियोजना के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया जाए ताकि स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत ही नहीं, बल्कि विश्व में भी प्रसिद्ध हो सके और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी की महत्त्वाकांक्षी योजना सार्थक हो सके।