श्रीसनन्दन जी कहते हैं ‘‘-------- देवर्षे, ज्योतिष शास्त्र में चार लाख श्लोकों को बताया गया है। उसके तीन स्कंध हैं, जिनके नाम ये हैं-गणित (सिद्धांत), जातक (होरा) और संहिता।।’’ नारद पुराण के ‘त्रिस्कन्ध ज्योतिष के ‘संहिता’ स्कन्ध में वास्तुशास्त्र का वर्णन, मैं सूक्ष्म रूप से कर रहा हूं।
गृह भूमि-परीक्षा - जिस भूमि पर घर बनाना हो, वहां कोहनी से कनिष्ठा अंगुली तक के बराबर लंबाई, चैड़ाई और गहराई करके कुंड बनायंे। फिर उसे उसी खोदी हुई मिट्टी से भरें। यदि मिट्टी शेष बचे तो संपत्ति की वृद्धि का सूचक है। यदि मिट्टी कम हो जाय तो सम्पत्ति की हानि होती है और यदि सारी मिट्टी से वह कुंड (गड्ढा) भर जाय तो मध्यम फल समझना चाहिये अथवा उस कुंड में मिट्टी के स्थान पर सायं काल जल से भर दें और प्रातःकाल देखें- यदि जल शेष हो तो वृद्धि, यदि गीली मिट्टी ही बची हो तो मध्यम फल है और यदि कुंड में दरार पड़ गयी हो तो उस भूमि पर मकान बनाने से हानि होगी।
गृहारंभ में प्रशस्त मास: मार्गशीर्ष (अगहन), फाल्गुन, माघ, श्रावण और कार्तिक - ये मास गृह निर्माण में पुत्र आरोग्य और धन देने वाले होते हैं। घर के समीप निन्द्य वृक्ष: पाकड़, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा तथा कांटे और दूधवाले सब वृक्ष, पीपल, कैथ, अगस्त्य, सिन्धुवार (निर्गुण्डी) और इमली - ये सब वृक्ष घर के समीप निन्दित कहे गये हैं।
विशेषतः घर के दक्षिण और पश्चिम भाग में ये सब वृक्ष हों तो धन आदि का नाश करने वाले होते हैं। वास्तु भूमि तथा घर के धन, ऋण, आय, नक्षत्र, वार और अंश के ज्ञान का साधन वास्तु भूमि या घर की चैड़ाई को लंबाई से गुणा करने पर गुणनफल ‘पद’ कहलाता है। (माना - लंबाई 25 फीट और चैड़ाई 15 फीट है - 25ग15 = 375 यह ‘पद’ हुआ) इस ‘पद’ को (6 स्थानों में रखकर) क्रमशः 8-3-9-8-9-6 से गुणा करें और गुणनफल में क्रमशः 12-8-8-27-7-9 से भाग दें।
फिर जो शेष बचें, वे क्रमशः धन-ऋण-आय-नक्षत्र-वार तथा नारद पुराण में वास्तुषास्त्र का सूक्ष्म वर्णन अंश होते हैं (माना- पद 375 को 8 से गुणा करने पर 3000 आया। इसमें 12 का भाग देने पर 0 शेष अर्थात् 12 धन हुआ। फिर पद 375 को 3 से गुणा तो 1125 हुआ। इसमें 8 का भाग देकर शेष 5 ऋण हुआ। पुनः पद 375 को 9 से गुणा किया तो 3375 हुआ। इसमें 8 से भाग देने पर शेष 7 आय हुआ। इसी तरह पद को 8 से गुणा करने पर 3000 हुआ।
इसमें 27 से भाग दिया तो शेष 3 नक्षत्र हुआ। फिर पद को 9 से गुणा किया तो 3375 हुआ। इसमें 7 से भाग देने पर शेष 1 वार हुआ। पुनः पद 375 को 6 से गुणा किया तो 2250 हुआ। इसमें 9 से भाग देने पर शेष 0 अर्थात् 9 अंश हुआ। यहां सब वस्तुएं शुभ हैं, केवल वार 1 रवि हुआ। अतः घर में सब कुछ शुभ रहते हुए भी अग्नि का भय रहेगा। अतः ऐसा पद देखकर लेना चाहिए, जिसमें सर्वथा शुभ हो। धन अधिक हो तो शुभ घर होता है।
यदि ऋण अधिक होता है तो घर अशुभ होता है तथा विषम आय (1-3-5-7) शुभ और सम (2-4-6-8) आय अशुभ होता है। घर का जो नक्षत्र (संस्था) हो, वहां से अपने नाम के नक्षत्र तक गिनकर जो संख्या हो, उसमें 9 से भाग दें। फिर यदि शेष (तारा) 3 बचे तो धन का नाश होता है। 5 बचे तो यश की हानि होती है और 7 बचे तो गृहकर्ता का ही मरण होता है। घर की राशि और अपनी राशि गिनने पर परस्पर 2-12 हो तो धन हानि होती है।
9-5 हो तो पुत्र की हानि होती है और 6-8 हो तो अनिष्ट होता है; अन्य संख्या हो तो शुभ समझना चाहिए। सूर्य और मंगल के वार तथा अंश हांे तो उस घर में अग्नि भय होता है। अन्य वार अंश हो तो संपूर्ण अभीष्ट वस्तुओं की सिद्धि होती है। नूतन गृह में प्रवेश के समय विधि-विधान से वास्तु पूजा के अंत में वास्तु पुरूष की इस प्रकार प्रार्थना करें-
‘‘वास्तु पुरूष नमस्तेऽस्तु भूशय्यानिरत प्रभो।
मद्गृहं धन धान्यादि समृद्धं कुरू सर्वदा।।’’
अर्थ: ‘‘भूमि शय्या पर शयन करने वाले वास्तु पुरूष् ! आपको मेरा नमस्कार है। प्रभो ! आप मेरे घर को धन-धान्य आदि से समृद्ध कीजिये’’ इस प्रकार प्रार्थना करके पूजा कराने वाले पुरोहित को यथाशक्ति दक्षिणा दें तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें भी दक्षिणा दें। ऐसे गृहस्वामी को आरोग्य, पुत्र, धन-धान्य प्राप्ति के साथ सुख प्राप्त होता है, जो मनुष्य वास्तु पूजा न कराकर नये घर में प्रवेश करता है, वह नाना प्रकार के रोग, क्लेश और संकट प्राप्त करता है।
विशेष: जिसमें किवाड़ें न लगी हों, जिसे ऊपर से छत आदि के द्वारा छाया न गया हो तथा जिसके लिए (पूर्वोक्त रूप से वास्तु पूजन करके) देवताओं को बलि (नैवेद्य) और ब्राह्मण आदि को भोजन न दिया गया हो, ऐसे नूतन गृह में कभी प्रवेश न करें, क्योंकि वह विपत्तियों का खान (स्थान) होता है।
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