भवन निर्माण में वास्तुशास्त्र का महत्व
भवन निर्माण में वास्तुशास्त्र का महत्व

भवन निर्माण में वास्तुशास्त्र का महत्व  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 5407 | दिसम्बर 2015

प्रत्येक व्यक्ति अपने घर में सुख-शांति पूर्वक रहते हुए स्वस्थ रहे यह वास्तु विज्ञान पर आधारित है। अगर घर या भवन में वास्तु दोष होते हैं तो घर में तरह-तरह की परेशानी, विघ्न-बाधा आती है। जीवन अशांति एवं समस्याओं से घिरा रहता है। वास्तु शास्त्र पूर्ण रूपेण विज्ञान पर आधारित है। विश्व में भारत देश की वास्तु की विशेषताएं हंै कि यह देश पूर्व की ओर झुका है जिसके कारण यह देश ऋषि, तपस्वी, जगद्गुरुओं एवं अध्यात्म में विश्व के देशों में सबसे आगे है। उन्होंने बताया कि भूमि या मकान चार दिशाएं, चार कोण ईशान, अग्नि, नैर्ऋत्य एवं वायव्य कोण लिए रहता है।

अब वास्तु का वैज्ञानिक कारण वास्तु पर प्रभाव डालने वाली शक्तियां, वास्तु पर सूर्य किरणों के अतिरिक्त चुंबकत्व, वायु प्रवाह, प्राण वायु (आक्सीजन) की उपस्थिति की मात्रा गुरुत्वाकर्षण तथा नवग्रहों एवं ब्रह्मांड की किरणों का प्रभाव पड़ता है। इसके शुभ प्रभाव तभी प्राप्त होते हैं जब निर्मित गृह की चारों दिशाएं तथा चारों विदिशाएं सम्यक हों। ये सिद्धांत विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरते हैं।

वास्तु विज्ञान सूर्य एवं पृथ्वी के संबंध पर आधारित है। पृथ्वी अपनी चुंबकीय शक्ति एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण अपनी धुरी पर पूर्वोत्तर की ओर साढ़े तेइस डिग्री झुकी हुई है। इसके कारण इसका उत्तरी भाग ईशान एवं पूर्वी भाग पूर्व की ओर थोड़ा झुका है। दक्षिण एवं पश्चिम भाग कुछ ऊपर उठ गये हैं। इससे उत्तर और पूर्व से विशेष उपयोगी चुंबकीय एवं सूर्य की प्रातः कालीन अल्ट्रावायलेट किरण पृथ्वी पर पड़ती है, विद्युत एवं चुंबकीय तरंगें ईशान से प्रवेश कर भवन के आग्नेय एवं वायव्य से होती हुई दक्षिण-पश्चिम नैर्ऋत्य में ऊर्जा संग्रह करती है।

इसलिए वास्तुविज्ञान के अनुसार ईशान कोण में पूजा स्थल, आग्नेय कोण में रसोई घर बनाया जाता है। भोजन मानव का महत्वपूर्ण तत्व है। दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) में रसोई बनने से भोजन में जीवन के लिए आवश्यक तत्व सूर्य की सात रश्मियों से प्रातःकालीन अल्ट्रावायलेट किरणंे, विटामिन ‘डी’ आदि का प्राकृतिक रूप से समावेश हो जाता है। इस प्रकार भोजन से ज्ञानबुद्धि, विद्या संस्कार एवं मति सभी सही होते हैं। गृह स्वामी के सोने का कमरा दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए तथा शौचालय नैर्ऋत्य कोण में होना चाहिए। स्नान घर पूर्व दिशा में या पश्चिम में होना चाहिए। सैप्टिक टैंक उत्तर-पश्चिम में रखना चाहिए, सीढ़ियां दक्षिण एवं पश्चिम भाग में होनी चाहिए। सीढ़ी की संख्या विषम होनी चाहिए। पूर्व ईशान कोण में पानी का स्रोत शुभ होता है।

शौचालय दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम में होना चाहिए। भवन का मुख्यद्वार उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए। वास्तु विज्ञान अपने आप में पूर्ण विज्ञान है। अतः वास्तु शास्त्र के अनुसार बना भवन पूर्ण सुख, शांति, धन-समृद्धि एवं स्वास्थ्य देने वाला होता है। अगर वास्तु में त्रुटी है तो मकान में तरह-तरह की समस्याएं जीवन भर बनी रहती है। यह सत्य है कि आधुनिक समय में किसी भी मकान का निर्माण शत् प्रतिशत वास्तु नियमों के अनुसार करना आज संभव नहीं है। परंतु यदि 70 प्रतिशत भवन भी वास्तु के अनुसार बनाये जायं तो जीवन में सुख, शांति, धन, स्वास्थ्य तथा त्वरित निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त होती है। भूमि भवन एवं वृक्ष विचार घर के पूर्व दिशा में पीपल अशुभ तथा आम, बरगद शुभ होता है। आग्नेय कोण में अनार का पेड़ शुभ होता है।

दक्षिण दिशा में गुल्लर शुभ होता है। नैर्ऋत्य दिशा में नींबू, इमली, सेमर शुभ हैं जबकि पश्चिम दिशा में अशोक, आंवला तथा बिल्व वृक्ष शुभ होते हैं। उत्तर दिशा में केला, पापड़, शमी वृक्ष शुभ होते हंै। किसी भी मकान के आसपास अशोक का पेड़ अवश्य लगाना चाहिए क्योंकि जिसके द्वार पर अशोक हो उस घर में कभी शोक नहीं होता है।

- वास्तु शास्त्र का निर्माण श्री विश्वकर्मा जी ने मानव कल्याण हेतु किए थे।

- वास्तु विज्ञान के अनुरूप मकान सुख शांति, समृद्धि से युक्त होते हैं।

- वास्तु दोष से युक्त भवन में तरह-तरह की परेशानियां उत्पन्न होती हैं। वास्तु दोष निवारण: मकान की लकड़ी का दो जोड़ा गणेश जी एवं दो जोड़ा स्वास्तिक बना लें एवं किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार को मुख्य दरवाजे में अंदर से ऊपर की ओर एक गणेश एवं दोनों ओर एक एक स्वास्तिक लगा दें फिर मुख्य दरवाजा में बाहर की ओर से भी श्रीगणेश एवं दोनों स्वास्तिक लगा दें। इससे घर में सुख-शांति आती है।



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