श्री हरिहर क्षेत्र
श्री हरिहर क्षेत्र

श्री हरिहर क्षेत्र  

राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
व्यूस : 4832 | अप्रैल 2017

भारतवर्ष के बिहार प्रांत की राजधानी पटना से लगभग 30 किमी. की दूरी पर अवस्थित सोनपुर गोरखपुर से 138 कि.मीऔर मुजफ्फरपुर से 60 किमी. दूरी पर विराजमान है। प्राच्य काल में गंगा और सोन नदी के संगम के एक तरफ पटना तो दूसरी तरफ सोनपुर की स्थिति है जहां गंगा और गंडक नदी (नारायणी) के संगम क्षेत्र पर शोभायमान इस तीर्थ की कथा कहानी इतिहास प्रसिद्ध है और यही गज-ग्राह युद्ध का पुराण प्रसिद्ध स्थान है। भारत वर्ष के जाग्रत तीर्थों में से एक श्री हरिहर क्षेत्र के पुण्य प्रभाव का ही प्रतिफल है कि यहां साल के सभी दिन दूर देश के भक्त व पर्यटकों का आवागमन बना रहता है। श्रीमद्भागवत सहित कितने ही प्राच्य आख्यानों में यहां का विशद वर्णन द्रष्टव्य है। कथा है कि प्राचीन काल में त्रिकूट पर्वत के चातुर्दिक विस्तृत तडाग में एक विशालकाय ग्राह (मां गंगा वाहन मकर) रहता था। एक दिन एक लक्ष्मी प्रिया गज अपने झुंड के साथ वहां पानी पीने आया कि ग्राह ने उसके पाद क्षेत्र को पकड़ लिया। दोनों में बड़ी लड़ाई हुई और जब गज हारने लगा तब उसने भगवान श्री विष्णु की प्रार्थना की।

अंततः श्री विष्णु ने हर (महादेव) सहित अन्य देवगणों के साथ वहां पहुंचकर गज की रक्षा की और तभी से यह पूरा क्षेत्र हरिहर खंड कहा जाने लगा। सुदर्शन चक्र से रक्षा किए जाने के कारण इस महनीय तीर्थ को ‘चक्र तीर्थ’ के रूप में रेखांकित किया जाता है। ऐसे गज ग्राह के युद्ध स्थल के रूप में ‘त्रिवेणी धाम’ और ‘दामोदर कुंड’ का भी नाम आता है पर भौगोलिक और धार्मिक विवरण पर एकदम सटीक इसी तीर्थ की स्थिति है। यह भी जानने योग्य बात है कि ग्राह पूर्व जन्म में ‘‘हु टु’’ नाम का एक गंधर्व था जो अपनी प्रियतमा के साथ उस जलाशय में स्नानादि कार्य से गया था और जल क्रीड़ा के आनंद में साधनारत देवल ऋषि का पांव पकड़ लिया इस कारण शापग्रस्त हो वह ग्राह हो गया उधर गज भी पूर्व काल में पांडेय देश का राजा इंद्रधुम्म था और अगस्त मुनि के श्राप से शापित हो गज हो गया था। श्री विष्णु और भोले शंकर की कृपा से गज और ग्राह दोनों का उद्धार हो गया और यही उद्वार का स्थल है।

हरिहर क्षेत्र जहां आज गंडक पास में उत्तर से दक्षिण तो गंगा जी कुछ दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में प्रवाहमान हैं। पास में एक छोटी नदी मही पूर्व से पश्चिम बहती है जिसे कहीं-कहीं तेल नदी भी कहा गया है। इसके तट पर विराजमान श्री सुवर्ण मेरू महादेव मंदिर के कारण ही इस पूरे क्षेत्र को कालान्तर में सोनपुर कहा जाने लगा। जनश्रुति है कि श्री हरिहरनाथ देव की पूजा अर्चना गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाते समय श्रीराम ने की थी। पुनः बाद में विवाह के उपरांत श्री राम व माता सीता ने यहां की विधिवत् पूजा की है। इस स्थान से च्यवन मुनि का भी जुड़ाव रहा है। मंदिर के पास ही च्यवन कुंड है। मगध नरेश नागासुर बाबा का परम भक्त था तो बंगाल गमन क्रम में राजामान सिंह ने भी यहां का दर्शन-पूजन किया था। आज भी उनके नाम का गढ़ टीला यहां आबाद है। गुप्तकालीन पूर्व देशीय तीर्थों में एक इस स्थान का विशेष जागरण पालकाल से प्रारंभ हुआ जान पड़ता है। पुरातन काल से यहां कांवर से जल चढ़ाने की परंपरा बनी है जिसका श्री गणेश पहलेजा घाट से होता है।

यहां गंडक के नदी घाटों में ग्रह घाट (कोनहारा घाट), साधु घाट, कटहरिया घाट, काली घाट व जलभराई घाट और आगे दियारा क्षेत्र में देवकुवैर घाट व सुखदेव घाट का अपना इतिहास रहा है। सोनपुर के हरिहर क्षेत्र में विराजमान यह मंदिर शिव व विष्णु दोनों का संयुक्त रूप से एक अलग विशिष्ट निर्माण करता है जिसकी गौरव गरिमा का अमरतत्व पूरे देश में है। भारत प्रसिद्ध श्री हरिहरनाथ मंदिर के विशाल प्रवेश द्वार से ही गर्भगृह नजर आने लगते हैं जहां एक ही शिलाकुंड पर बाबा का हरिहरात्मक रूप अनूठा है। पीछे गवाक्ष के रूप में श्री विष्णु गणेश, शेषनाग व नीचे नंदी और माता पार्वती का स्थान है। इस मंदिर का हालिया शृंगार वर्ष 1991 में मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव के जमाने में हुआ तो वर्ष 2011 में यहां रंगीन टाइल्स लगाने से सुंदरता में और निखार हुआ है। मंदिर के प्रवेश मार्ग के पास ही दो विशाल घंटा व आगे नन्दी जी नमन मुद्रा में उपस्थित हैं। ऊपर में काले पत्थर के छोटे गणेश भक्तों को दर्शन का पथ प्रशस्त करते हैं।

68 फीट ऊंचे इस महादेव तीर्थ में बाबा का महातेजमय लिंग (सवा दो फीट) है, मंदिर के बाएं तरफ महंत अवध किशोर गिरिजी का स्थान है तो पीछे की ओर मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, राधाकृष्ण व गजेंद्र मोक्ष मंदिर देखा जा सकता है। गजेंद्र मोक्ष मंदिर में गज ग्राह युद्ध के कथानक की सुंदर प्रस्तुति है। इससे आगे एक लघु मंदिर में श्री साईं बाबा का स्थान है तो ठीक बगल में 1954 ई. का शृंगारित पार्वती माई तीर्थ (मनसा देवी) का देवालय देखा जा सकता है। आगे भी गणेश जी, शिव शंकर, श्री विष्णु व वेदमाता मनसा का स्थान एक ही कक्ष में ऊँचे आसन पर विराजमान हैं। मंदिर के ईशान कोण में नवग्रह मंदिर का अपना महत्व है जहां सभी नौ ग्रह के मूत्र्त रूप का सुंदर अंकन देखा जा सकता है। किस ग्रह का कौन सा स्थान, क्या दिशा है साथ ही उनकी आकृति, वाहन व वेशरंग को भी शास्त्रानुरूप बनाया गया है। मंदिर के दीवार पर शिव व शैव सत्ता से जुड़े अनमोल वचन व मंत्र पाषाण पत्रिका पर अंकित देखकर मन गद्-गद् हो जाता है। मंदिर के बाहर ही एक छोटा बाजार है जहां पूजा-पाठ से जुड़े सभी सामान उचित मूल्य पर मिल जाते हैं। यहां भोले नाथ पर माला फूल के साथ भांग की हरी ताजी पत्ती चढ़ाई जाती है जो पाहा के दियारा क्षेत्र में उपजता है।

मंदिर के जानकार पुजारी जगत नारायण तिवारी जी बताते हैं कि वैदिक काल से आज तक बाबा का यह स्थान चर्चित रहा है। कितने ही राजवंशों को विजय भी देने वाले बाबा के दरबार में आने वालों की कोई कमी नहीं रहती। यहां पूरा श्रावण, शिवरात्रि, सरस्वती पूजा, नववर्ष के साथ-साथ नवरात्र व छठ पर्व में भक्तों के आगमन से मेला लग जाता है। मेला की बात चले और सोनपुर की बात न हो, ऐसा भला कहां संभव है? सोनपुर हरिहरनाथ क्षेत्र एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में विख्यात है। यहां हरेक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर एक माह तक मेला लगा करता है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र के प्राचीनतम मेले को पशु श्रेणियों के अनुसार व्यवस्थित व नामांकित किया जाता है। जैसे कि:- हाथी बाजार, घोड़ा बाजार, गाय बाजार, बैल बाजार, भैंस बाजार, पक्षी बाजार, लोहा बाजार, बकरी बाजार, लकड़ी बाजार, पौधा बाजार, मीना बाजार आदि। द्वय नद संगम की भूमि पर लगभग 18 किमी. क्षेत्र में शताधिक मठ मंदिरों के मध्य आयोजित इस मेले में प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं और भारतीय संस्कृति के विविध परिवेश का सहज में दर्शनावलोकन करते हैं।

गजेन्द्रमोक्ष तीर्थ हरिहर क्षेत्र धाम में बाबा के मंदिर के अलावे काली मंदिर, नौलखा मंदिर, साधक बालक बाबा का स्थान, अमृतकाली, पंचदेवता श्री भैरव व लोक देवी देवताओं के स्थान की पूजा भक्त अवश्य करते हैं। बुद्ध की कर्म भूमि और महावीर स्वामी की जन्मस्थली वैशाली के साथ काष्ठ कलाकृति का बेजोड़ नमूना हाजीपुर का नेपाली मंदिर भी यहां के दर्शन क्रम में जोड़ा जा सकता है। गांधी सेतु पर जाम की स्थिति से निपटने के लिए अब पीपापुल से भी यहां जाना सहज है। ऐसे हाल के दिनों में पटना जंक्शन से रेलमार्ग से सोनपुर का जुड़ जाना हर्ष की बात है। खड़गपुर के पहले इसी सोनपुर का प्लेटफाॅर्म पूरे देश में सर्वाधिक लम्बा था। स्टेशन से मंदिर कोई ज्यादा दूर नहीं है। कुल मिलाकर बाबा का यह स्थान बड़ा ही प्रसिद्ध व जाग्रत है। कहते हैं ‘ऊँ नमो हरिहराय’ का 108 बार जप हरेक कार्य को पूर्ण करता है। बाबा के तीर्थ के विकास हेतु ‘बाबा- हरिहर नाथ मंदिर न्यास समिति’ अच्छा कार्य कर रहा है। कहते हैं बाबा के दरबार का पथिक अपने आंतरिक आनंद से सदैव हरा भरा बना रहता है और बाबा अपने भक्तों के स्मरण मात्र से ही सब काम बना देते हैं।



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