हथेली में विभिन्न रोगों के लक्षण
हथेली में विभिन्न रोगों के लक्षण

हथेली में विभिन्न रोगों के लक्षण  

सीताराम सिंह
व्यूस : 6261 | अप्रैल 2017

मनुष्य की प्रगति के साथ-साथ उसके खान-पान और दिनचर्या में अनियमितताओं के कारण होने वाली विकृतियां उसे रोगग्रस्त बनाती हैं। प्रकृति इन संभावनाओं को प्रत्येक मनुष्य की हथेली में समय से पहले चेतावनी स्वरूप अंकित कर देती है। इसको जानने के लिए थोड़े अंतराल से एक कुशल हस्तरेखा विशेषज्ञ द्वारा अपनी हथेली का आकलन करवाकर मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए। जिनका स्वास्थ्य निर्बल हो, वे तो विशेष रूप से समय-समय पर अपनी हथेली का आकलन करवा कर रोगों की अच्छी बुरी प्रगति को जानकर, उनके निवारक उपाय करें। एक स्वस्थ व्यक्ति की हथेली सुंदर, गुलाबी, चिकनी, मांसल, नर्म और सुदृढ़ होती है।

नाखून भी चैड़े, गुलाबी व सुंदर होते हैं और उनके मूल में अर्धचंद्र होते हैं जो स्वस्थ रक्त संचार के द्योतक होते हैं। उनकी अंगुलियों के नीेचे पर्वत (मांसल पैड) और हथेली भी बीच में दबी नहीं होती। हथेली की मूल रेखायें (जीवन, भाग्य, मस्तिष्क, हृदय व सूर्य) अपने सही स्थान में लंबी और एक सी गहरी होती हैं। हथेली का रंग एक सा गुलाबी होता है। रेखाओं पर अशुभ चिह्न-क्राॅस, बिंदु, द्वीप, जंजीर, जाल आदि नहीं होते। बहुत रेखाओं का मकड़जाल भी नहीं होता। ऐसा व्यक्ति सारी जिंदगी स्वस्थ रहता है। इसके विपरीत एक अस्वस्थ व्यक्ति की हथेली बेडौल, खुरदरी और सफेदी लिए होती है। हथेली मोटी, अंगुलियां मोटी और सीधी नहीं होती। नाखून मोटे और नीले-सफेद रंग के होते हैं जो धीमी गति से रक्त का संचार दर्शाते हैं और व्यक्ति की अस्वस्थता के सूचक होते हैं। हथेली अधिक गर्म या ठंडी होती है। हथेली और पर्वतों पर जाल और द्वीप होते हैं। हथेली पिलपिली और रेखायें बेजान होती हैं। इन पर भी क्राॅस, द्वीप, बिंदु और जंजीर के अशुभ चिह्न होते हैं। एक बीमार व्यक्ति की हथेली का चित्र पाठकों के अवलोकनार्थ संलग्न है।

इसमें:

1. अंगुलियां, हथेली में नीची-ऊंची जुड़ी हैं। हथेली सफेदी लिए है।

2. बृहस्पति और बुध अंगुलियां छोटी हैं। बृहस्पति पर्वत पर आड़ी रेखायें हैं। दोनों पर्वतों पर जाल का चिह्न है जो उनकी शुभता को नष्ट करता है। व्यक्ति पेट व श्वांस रोगग्रस्त होता है।

3. अंगूठा पतला और छोटा है। उसके हथेली के जोड़ पर टेढ़ी रेखा है, जो आत्मविश्वास की कमी और रोगों से लड़ने की क्षमता की कमी दर्शाता है। साथ ही धन व संतान सुख कम रहता है।

4. हृदय रेखा के आरंभ में जंजीर है और उससे नीचे की ओर शाखायें निकल रही हैं जो हृदय की दुर्बलता का सूचक है। शनि पर्वत के नीचे द्वीप और उस पर शनि पर्वत से नीचे आती रेखायें दृष्टि की निर्बलता दर्शाती है। अंत में वह बृहस्पति पर्वत के जाल में मिलती है जो हृदय का बढ़ना दर्शाती है और हृदय-आघात की संभावना रहती है।

5. मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा काफी दूर तक जुड़ी है और आरंभ में इन पर जंजीर व द्वीप है। आगे चलकर उसपर बिंदु, खड़ी रेखायें और क्राॅस हैं। अंत में वह चंद्र पर्वत पर गुच्छे में बदल गई है और जाल में मिलती है। यह आरंभ में सर्दी-जुकाम, जीवन के मध्य से सिर में चोट, कमजोरी और अंत में मूत्र व किडनी रोग दर्शाती है। जातक में मनोबल की कमी होती है और वह उदास रहता है।

6. जीवन रेखा आरंभ में काफी दूर तक मस्तिष्क रेखा से जुड़ी है और उसमें जंजीर और द्वीप है। बीच में द्वीप को शुक्र पर्वत से आती रेखा मिलती है और दूसरी रेखा जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा को काटती हुई भाग्य रेखा को काटती है। भाग्य रेखा भी मणिबंध के काफी दूर से आरंभ होती है और हृदय रेखा तक ही पहुंचती है। बचपन में बीमार रहने के कारण, बुद्धि व विश्वास की कमी से उसने काफी अधिक आयु में कार्य आरंभ किया और अधिक आयु तक कार्यरत नहीं रह पाया। सूर्य रेखा न होने से भी जीवन में धन, मान नहीं मिला।

7. जीवन रेखा के नीचे मंगल पर्वत पर जाल है और उसमें से एक रेखा हृदय रेखा के दूषित भाग में मिलती है तथा अन्य रेखायें हृदय रेखा को काटकर बुध पर्वत तक पहुंचती हैं। यह हृदय और स्नायु प्रणाली के रोग दर्शाती है।

8. एक स्वास्थ्य रेखा चंद्र पर्वत से बुध पर्वत तक जाती है जिसमें मस्तिष्क रेखा को काटते समय द्वीप है। यह ऊपरी भाग से छाती का और नीचे वाले भाग से पेट का रोग दर्शाती है। उस पर (द्वीप के उपर) बिंदु भी है जो गला और ज्वर द्वारा शारीरिक कष्ट दर्शाता है।

9. दूसरी स्वास्थ्य रेखा बुध पर्वत पर जाल को जीवन रेखा से जोड़ती है जो पेट और स्नायु रोग दर्शाती है। उसके जीवन रेखा से मिलने के बाद बिंदु है जो बुखार दर्शाता है और उसके बाद में जीवन रेखा से नीचे की ओर शाखायें निकल रही हैं जो ढलती उम्र में शारीरिक निर्बलता की द्योतक हैं।

10. चंद्र पर्वत पर क्राॅस, द्वीप और जाल किडनी और मूत्र प्रणाली के रोग दर्शाती है। स्त्री की हथेली में यह उसकी प्रजनन प्रणाली को रोगी बनाती है, जिससे वह शारीरिक और मानसिक निर्बलता के कारण कष्ट पाती है। यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति की हथेली में सभी लक्षण होंगे। आशय यह है कि जो दोष होंगे व्यक्ति उन रोगों से पीड़ित रहेगा। आजकल वातावरण में अधिक प्रदूषण चिंता का कारण बन गया है और प्रशासन उसको कम करने के लिए पूर्ण प्रयासरत है। इस वायु प्रदूषण के कारण श्वांस और छाती के रोगों में वृद्धि की खबरें और आंकड़े दैनिक समाचार पत्रों में विशेष रूप से प्रकाशित किये जा रहे हैं। यह भी सत्य है कि सभी व्यक्ति एक प्रकार के रोग से ग्रसित नहीं होते। यह उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति पर निर्भर होता है। इस संबंध में विभिन्न गला और श्वांस रोगों की संभावना दर्शाती हथेली का चिह्न संलग्न है जिसके ज्ञान से यथोचित प्रतिरोधक उपाय कर सभी लाभ उठा सकते हैं।

इस चित्र में: -

1. हृदय रेखा का बृहस्पति पर्वत से लेकर शनि पर्वत के नीचे जंजीर जैसी हो जाना व्यक्ति के फेफड़ांे में लंबे संक्रमण रहने से टी. बी. की संभावना दर्शाता है।

2. बृहस्पति पर्वत पर लेटा ‘यव’ चिह्न के साथ आड़ी -टेढ़ी रेखायें व जाल गले में सूजन व कंठमाला और श्वांस संक्रमण से ‘निमोनिया’ की संभावना दर्शाता है।

3. स्वास्थ्य रेखा पर मस्तिष्क रेखा को काटने के स्थान पर ऊपर व नीचे द्वीप होना श्वांस की बीमारी का लक्षण है।

4. ऊपर मंगल पर्वत पर जाल गले के रोग दर्शाता है।

5. जीवन रेखा के नीचे मंगल पर्वत पर जाल व कटा-फटा होना भी गले का रोग दर्शाता है।

6. शनि पर्वत के नीचे मस्तिष्क और हृदय रेखा के बीच कम दूरी ‘अस्थमा’ का लक्षण होती है।

7. जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का उद्गम स्थान से कुछ दूरी तक जंजीर की तरह बना होना बचपन में सर्दी-खांसी व निर्बल स्वास्थ्य दर्शाता है। कुछ दूरी तक उनका जुड़ा होना इसकी पुष्टि करता है।

8. जीवन रेखा के अंदर की ओर उसकी सहायक व रक्षक मंगल रेखा भी नहीं है।



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