एक स्वस्थ हाथ वह है, जो पूर्णतया सुदृढ़ हो तथा उसका कोई भी भाग, कहीं से भी, असामान्य रूप से विकसित न हो। हाथ लचीलापन लिए हुए तथा स्पष्ट हो। उसमें नमी की अपेक्षा शुष्कता हो। हथेली पर स्थित विभिन्न उंगलियों के मूल में स्थित पर्वतों का सामान्य रूप से विकसित होना भी स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है। समस्त हथेली का रंग समता लिए हुए होना चाहिए। हथेली में अवांछित रेखाओं का जाल, अधिक गहरी अथवा कटी-फटी तथा चिह्नों से युक्त रेखाएं अस्वस्थता के लक्षण हैं। हथेली, अथवा रेखाओं पर दुर्भाग्यपूर्ण चिह्न, जैसे क्राॅस, जाली, द्वीप, काले तिल आदि विभिन्न बीमारियों के द्योतक हैं। हथेली की त्वचा का असमान रंग, उसपर लाल, नीले अथवा सफेदी लिए हुए धब्बे भी अस्वस्थता के प्रतीक हैं। हथेली को छू कर उसका तापमान अनुभव किया जा सकता है। हथेली न तो अधिक गर्म होनी अच्छी है, न ही अधिक ठंडी। जिसकी हथेली पसीजी सी लगती है, उसपर नसों का नीला, अथवा लाल उभार स्पष्ट दिखाई देता है, वह व्यक्ति अस्वस्थ होता है। रेखाओं का एक सीमा तक गहरापन शक्ति दर्शाता है। परंतु रेखाएं इतनी गहरी न हो जाएं कि गहरे रंग की दिखलाई देने लगें। इसका अर्थ यह होता है कि उस रेखा विशेष पर अत्यधिक तनाव पड़ रहा है। धूमिल अथवा क्षीण पड़ गयी रेखाएं अस्वस्थता दर्शाती हैं। सीढ़ीदार अथवा छोटे-बड़े टुकड़ों से बनी जीवन रेखा जीवन मंे निरंतर कोई न कोई रोग देती है। जीवन रेखा का दोषपूर्ण तरीके से होना अंत वृद्धावस्था में शारीरिक कष्ट देता है। टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं तथा अप्राकृतिक रूप से विकसित बेडौल हथेली अथवा उंगलियां किसी न किसी बीमारी की प्रतीक हैं।
अत्यधिक मांसल हथेली तथा बहुत नर्म अथवा नमी लिए हुए हाथ की त्वचा भी बीमारी दर्शाती है। विभिन्न रोगों को दर्शाने में जीवन रेखा, उसके नीचे साथ-साथ चल रही सहयोगी जीवन रेखा तथा हथेली के मूल से चल कर कनिष्ठिका उंगली के नीचे स्थित बुध पर्वत तक जा रही स्वास्थ्य रेखा का योगदान विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। हाथ में स्वास्थ्य रेखा ही एक अकेली ऐसी रेखा है, जिसका उपस्थित रहना भी शारीरिक कष्टों का प्रतीक है। इस रेखा की अनुपस्थिति अच्छे स्वास्थ्य की द्योतक है। रेखा पर स्थित द्वीप तथा अत्यधिक उभरा बुध पर्वत मंदाग्नि रोग देता है। पेट के रोगों के कारण ऐसा व्यक्ति खाने तक से वंचित होता है। यदि रेखा का यह द्वीप मस्तिष्क और जीवन रेखा के मध्य में स्थित हो, तो व्यक्ति वायु, ज्वर, फोडे़-फुंसी आदि से पीड़ित होता है। दोनों हाथों की उंगलियां सुडौल तथा नाखून चमकीले, गुलाबी अथवा तीव्र वर्ण के होने चाहिए। नाखूनों के मूल में सुंदरता से विकसित अर्ध चंद्र एक स्वस्थ शरीर का प्रतीक है। इसके विपरीत उसकी अनुपस्थिति विभिन्न बीमारियों का संकेत है। वे नाखून, जो अपनी प्राकृतिक चमक खो कर कठोर अथवा भंगुर हो गये हों, बीमारी के प्रतीक हैं।
नाखून पर सफेद, नीले, पीले, मटमैले आदि रंग के धब्बे भी बीमारियों की पहचान हैं। अवस्था भेद से नाखून चार प्रकार के होते हैं- लंबे, छोटे, चैडे़ तथा तंग। प्रायः जिन व्यक्तियों के नाखून लंबे होते हैं, उनका सीना अर्थात फेफडे़ कमजोर होते हैं। उनकी शारीरिक शक्ति भी सामान्य से कम होती है। यह शक्ति और भी अधिक कम हो जाती है, यदि नाखून सिरे के नीचे उंगली की ओर, एक कोर से दूसरी कोर तक, अधिक मुड़ा हो। अत्यधिक छोटे नाखून दमा, शीत तथा गले के रोग से पीड़ित होना दर्शाते हैं। अत्यधिक बड़े आकार के नाखूनों पर उपस्थित चंद्र रक्त प्रवाह की शीघ्रता दर्शाते हैं। अत्यधिक कार्य करने से ऐसे व्यक्तियों को मूर्छा, मिर्गी, पक्षाघात अथवा वायु रोग हो जाते हैं। ऐसे नाखून वाले व्यक्ति यदि शराब, भांग, चरस आदि नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, तो धमनियों पर रक्त के अधिक प्रभाव से उत्पन्न दबाव के कारण, उनकी धमनी भी फट सकती है। नाखूनों पर पड़ने वाले सफेद धब्बों का अर्थ होता है कि मस्तिष्क अथवा स्नायविक जाल पर आवश्यकता से अधिक दबाव पड़ रहा है। हथेली से जुड़ी उंगलियां, हाथ के साथ-साथ, मस्तिष्क से भी सीधा संबंध रखती हैं।
सूखी सी, टेढ़ी-मेढ़ी, मोटी, मिलाने पर बीच में छिद्र बनाती उंगलियां बीमारी दर्शाती हैं। उंगलियों के पर्व कोमल तथा मांसरहित होना स्वस्थ शरीर का लक्षण दर्शाता है। चिकनी, सीधी तथा आपस में मिलती उंगलियां निरोगी काया देती हैं। यह दीर्घायु का लक्षण है। कर पृष्ठ की ओर झुकी हुई उंगलियां आकस्मिक मृत्यु देती हैं। अत्यधिक लचीली उंगलियां तथा अंगूठा इच्छा शक्ति की कमी दर्शाता है। हाथ की प्रत्येक उंगली एक नैसर्गिक अनुपात में लंबाई लिए होती है। हाथ में वे उंगलियां सर्वश्रेष्ठ हैं, जो लगभग एक ही ऊंचाई से प्रारंभ हो रही हों। उंगलियों का तुलनात्मक रूप से, ऊंचे अथवा नीचे स्थित होना उन उंगलियों में शक्ति का ह्रास करता है। परिणामस्वरूप उनके मूल में स्थित पर्वत क्षेत्र प्रभावित होते हैं और उनसे संबंधित रोग व्यक्ति को कष्ट देते हैं। प्रायः अनुभव में आता है कि जिन व्यक्तियों की उंगलियों के तृतीय पर्व (उंगली के मूल वाले) अत्यधिक फूले होते हैं, उन्हें खान-पान का बहुत शौक होता है।
फलस्वरूप वे व्यक्ति खान-पान की अनियमितता के कारण रोगी होते हैं। अस्वस्थ हाथ का बाह्य आकार, अस्वस्थता काल में प्रायः अनियमित हो जाता है तथा उंगलियां शिथिल अथवा निर्जीव हो जाती हैं। मृत्यु से कुछ दिन पूर्व व्यक्ति की उंगलियों में, विशेष रूप से मध्यमा के नाखून में पड़ी धारियां स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगती हैं तथा उनका रंग धूमिल पड़ने लगता है और अंगूठा शक्तिहीन हो कर हथेली की तरफ गिरता सा दिखलाई देता है।