1). यदि किसी व्यक्ति की हथेली में चंद्र पर्वत से कोई निर्दोष रेखा निकलकर जीवन रेखा तक आती हो और वहां से भाग्य रेखा निकलकर शनि पर्वत तक पहुंचती हो तो वह व्यक्ति विदेश में जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर नाम, यश कमाता है।
2). यदि किसी व्यक्ति की हथेली में जीवन रेखा से कोई निर्दोष प्रभाव रेखा निकलकर नीचे मणिबंध क्षेत्र से मिलती हो तथा त्रिभुज बनाती हो और भाग्य रेखा से भी कोई स्पष्ट शाखा नीचे जाकर इस प्रभाव रेखा के साथ त्रिभुज का निर्माण करती हो तो ऐसे योग वाला व्यक्ति व्यापारिक कार्यों से अनेक बार विदेश यात्राएं करता है और विदेश से धन कमाता है।
3). चंद्र पर्वत से निकलकर कोई रेखा मस्तिष्क रेखा से मिल जाती हो तो जातक को विदेश यात्रा में विदेश में कोई व्यावसायिक समझौता अथवा बौद्धिक कार्यों का अनुबंध करना पड़ता है।
4) हथेली में चंद्र और शुक्र पर्वत उन्नत हो तथा जीवन रेखा पूरे शुक्र क्षेत्र को घेरती हुई शुक्र पर्वत के मूल तक जाती हो तथा चंद्रमा पर्वत पर स्पष्ट यात्रा रेखा हो तो ऐसे योग रखने वाला व्यक्ति अनेकानेक बार विदेश यात्राएं करता है। यहां तक कि उसे विदेश यात्राओं का गुरु तक कहा जाता है।
5) यदि किसी स्त्री या पुरुष के हाथ में चंद्र पर्वत से रेखा निकलकर स्पष्ट रूप से हृदय रेखा में जाकर मिल जाए तो ऐसे योग वाले स्त्री या पुरुष को विदेश यात्रा में या विदेश में प्रेम होता है, यहाँ तक कि वह विदेश में ही प्रेम लीला से प्रेम विवाह तक पहुँचता है।
6) यदि हाथ में चंद्र पर्वत से रेखा निकलकर तथा पूरी हथेली को पार करती हुई गुरु पर्वत तक पहुँचती हो तो, ऐसे योग वाले की विदेश यात्राएँ बेहद लम्बी होती हैं। वह विदेश में दूरस्थ स्थानों से जीविका कमाता है।
7) यदि हाथ में चंद्र पर्वत से रेखा निकलकर, हथेली के मध्य में से ही आधा मुड़कर वापस चंद्र पर्वत पर आये तो जातक विदेश में नौकरी अथवा व्यापार करता तो है लेकिन कई वर्ष विदेश में रहने के बाद, वह असफलता का भार लेकर स्वदेश लौट आता है।
8) यदि चंद्रमा पर्वत से निकलकर कोई रेखा बुध क्षेत्र तक अथवा बुध पर्वत पर पहुँचती हो तो जातक को विदेश यात्रा करने पर विदेश में अचानक धन की प्राप्ति होती है।
9) यदि चंद्रमा पर्वत से निकली रेखा पर क्रॉस हो तो विदेश यात्रा के दौरान व्यक्ति किसी दुर्घटना से पीड़ित होता है।
10) यदि किसी व्यक्ति के दाहिने हाथ में तो यात्रा रेखाएँ हो लेकिन बाएं हाथ में रेखाएँ न हो, अथवा रेखा के प्रारंभ में कोई क्रॉस या द्वीप हो तो विदेश यात्रा में कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो जायेगी या ऐसा व्यक्ति विदेश जाने के ढोल तो पीटेगा लेकिन विदेश यात्रा का जैसे ही समय आएगा यात्रा रद्द हो जाएगी।
11). यदि चंद्रमा पर्वत से निकलने वाली लेटी हुई, आड़ी रेखाएँ, चंद्रमा पर्वत को पार करते हुए भाग्य रेखा में मिल जाए तो ऐसे योग वाला व्यक्ति कई देशों में महत्वपूर्ण यात्रा करता है और अपनी सफलता को सिद्ध करता है।
12). पहले मणिबंध से ऊपर उठकर चंद्र पर्वत पर पहुंचने वाली रेखाएं विदेश यात्राओं के मामलों में सर्वाधिक शुभ मानी जाती है, ऐसे योग वाला व्यक्ति विदेश यात्रा कर, विदेश से विशेष उपलब्धि प्राप्त करता है।
13) यदि जीवन रेखा स्वतः ही घूमकर चंद्र पर्वत पर पहुंच जाएं, तो ऐसा जातक अनेकानेक बार विदेश यात्रा करता है और विदेश में रहता है, यहां तक कि उसकी मृत्यु भी विदेश में होती है।
14)) यदि चंद्र पर्वत से निकलकर जब कोई रेखा भाग्य रेखा को काटती हुई जीवन रेखा में जाकर मिल जाए तो, ऐसे योग वाला व्यक्ति लगभग सारी दुनिया के देशों की यात्रा कर डालता है। उसका ज्यादातर जीवन विदेश यात्राओं में व्यतीत होता है।
15.) यदि चंद्र पर्वत से ऊपर उठकर जब कोई रेखा सूर्य पर्वत तक पहुंच जाए, तो ऐसे योग वाला व्यक्ति विदेश यात्रा करता है और विदेश से खूब धन शोहरत कमाता है। विदेश में ऐसे जातक का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।
देश-देशांतर की यात्रा देश-देशांतर की यात्रा का सौभाग्य उसी भाग्यशाली को मिल पाता है, जिसकी हथेलियों में पर्यटन योग होता है। देशाटन योगसूचक लक्षणों की जानकारी के लिए नर-नारियों के हथेलियों में अंकित चिह्नों द्वारा अनुमान लगाया जाता है। यदि सूर्य पर्वत उठावदार, मनोहर हो, साथ ही भाग्य रेखा से सूर्य रेखा मिल कर सूर्य पर्वत को स्पर्श कर रही है, तो जातक निश्चित ही 24 से 36 वर्ष के बीच जन्मभूमि से पश्चिम के बड़े राष्ट्रों में, अर्थाेपार्जन के लिए, एकाएक जाते हैं। चंद्र पर्वत से भाग्य रेखा उठ कर सूर्य पर्वत की ओर जा कर स्पर्श करे, तो जातक 27 से 32 वर्ष के बीच मुस्लिम राष्ट्रों में अर्थोपार्जन के लिए जाते हैं, वहां प्रचुर धन-सम्मान प्राप्त करते हैं। ऐसे जातक को कई बार बड़े राष्ट्रों में भ्रमण का प्रचुर सौभाग्य प्राप्त होता है। चंद्र पर्वत से निकल कर बुधोन्मुखी रेखा मुख्य रूप से यात्रा रेखा होती है। दूरस्थ राष्ट्रों की यात्रा कराने वाली इस रेखा से कोई शाखा निकले और वह अनामिका के मूल भाग या सूर्य पर्वत की ओर अग्रसर हो, तो नर-नारी विदेश यात्रा कर ख्याति और धन अर्जित करते हैं।
गुरु पर्वत और चंद्र पर्वत दोनों समान रूप से उभरे हों और देखने में भी सुंदर, उठावदार और मोहक लगें, तो इस पर्वत का प्रभाव यात्रा में राजकीय सम्मान, ज्ञानोपलब्धि के अवसर प्रदान करता है। मंगल पर्वत को स्पर्श करने वाली मुख्य यात्रा रेखा मोहक और सुंदर हो, तो जातक सैनिक, प्रशासक, राष्ट्रनायक, मंत्री के रूप में अथवा साहसिक कार्यों के संदर्भ मंे विदेश प्रवास के लिए निश्चित जाते हैं। बुध पर्वत पर स्वास्थ्य रेखा, भाग्य रेखा से उठ कर, एक बड़ा त्रिकोण बनाती हो, तो जातक व्यावसायिक उद्देश्य अथवा शोध कार्य हेतु 40 से 45 वर्ष की उम्र में, लंबे समय के लिए, अन्य राष्ट्रों में प्रवास के लिए जाते हैं। भाग्य रेखा से कोई रेखा उठ कर शुक्र पर्वत की ओर चल रही हो, तो कला-संस्कृति, मनोरंजन के लिए दूर राष्ट्रों की यात्रा कराती है। चंद्र पर्वत पर त्रिशूल का चिह्न हो, तो भी जातक किसी भी उम्र में अपने कला-कौशल से निश्चित ही विदेश प्रवास के लिए जाते हैं। वहां वह बहुत धनोपार्जन तो करता है, परंतु पुनः स्वदेश नहीं लौटता। उसका अंत भी वहीं हो जाता है। मानस रेखा के अंत में त्रिशूल हो एवं भाग्य रेखा भी सबल हो, तो जातक टेक्नोलाॅजी अथवा चिकित्सा विज्ञान में अनुसंधान के लिए सुदूर विकसित राष्ट्रों में जाता है। इस प्रकार की रेखा अधिकतर डाॅक्टर, साॅफ्टवेयर इंजीनियर आदि की हथेलियों में परिलक्षित होती है। गुरु पर्वत पर कमलगट्टे का चिह्न हो, साथ ही भाग्य रेखा से कोई रेखा उठ कर सूर्य पर्वत की ओर जाए, तो जातक विदेश भ्रमण का सुख पाता है।