हस्त परीक्षण के समय तक मनुष्य के जीवन में कितनी घटनाएं घटित हो चुकी हैं और कितनी आने वाले समय में घटित होंगी, इसका सटीक कथन करने के लिए उसकी वर्तमान आयु की गणना कार्य में प्रवीण् ाता प्राप्त कर लेना उचित होगा। इस कार्य में निपुण होने तक उसकी आयु और उसके उत्तर को अनुमान का आधार बनाना ही उचित रहता है। सभी मनुष्य अपनी ठीक आयु नहीं बता पाते हैं परंतु सही आयु के आस-पास की जानकारी अवश्य दे देते हैं। इस कच्चे अनुमान को हाथ की त्वचा, रेखा और रंगत एवं संगति इत्यादि के साथ देखकर सही आयु की गणना सरलता से की जा सकती है। हस्त परीक्षण करते समय आयु गणना करने का एक सुलभ सूत्र यह है कि मनुष्य की जीवन रेखा को ऊपर से नीचे की ओर बारंबार दबाया जाये तो रक्त प्रवाह की लालिमा में क्षण मात्र के लिए एक सफेद बिंदु सा उभरता है। यह बिंदु हाथ की सटीक आयु दर्शाने वाले स्थान पर होता है। किंतु यह प्रयोग कमरे का तापमान अनुकूल होने पर ही विशुद्ध परिणाम देता है। परिस्थितिवश भिन्नताओं के होने पर परिणामों में परिवर्तन भी आ सकता है।
अतः इस साधन को हमेशा आयु का सही अनुमान लगाने वाला नहीं माना जा सकता। इस संभावना का कसौटी पर खरा उतरना हस्तरेखा के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। हस्तरेखाओं को जीवन की वास्तविक दिशादर्शक मानने पर रेखाओं के भिन्न-भिन्न अंशों से यह संकेत प्राप्त हो जाता है कि उसका संबंध जीवन के निम्न भागों से है। प्रयोगों से स्पष्ट हो चुका है कि रेखा जहां से शुरू होती है, वह स्थान आरंभिक वर्षों का हिसाब रखता है तथा आगे का वर्षवार लेखा-जोखा उसमें जुड़ता जाता है। अतः रेखाओं के प्रांरभिक स्थान की जानकारी होना आवश्यक है। किस आयु में क्या-क्या घटनाएं घटी हैं या घटने वाली हंै इस बात को ठीक-ठीक बता पाने की कुशलता पूरी तरह हस्तरेखाविद् की तीक्ष्ण दृष्टि एवं सही परख पर निर्भर करती है। कुछ हस्तरेखाविद् एक वर्ष के भीतर घटित या घटने वाली घटना को बता सकते हैं किंतु ऐसे बहुत ही कम लोग हैं, जिन्होंने ऐसी कुशलता प्राप्त कर ली है। हस्तरेखा शास्त्र के नियमों की पूर्ण रूप से जानकारी रखने वाला व्यक्ति अधिक से अधिक इतना ही बता सकता है कि किस वर्ष में कौन सी घटना घटित होगी।
घटना घटित होने के महीने या दिन को बता पाना असंभव है। केवल हाथ को देखकर किसी व्यक्ति का नाम या उसके नाम का आद्यक्षर बताना भी संभव नहीं है। गौण घटनाओं या दैनिक जीवन के चिह्न व्यक्ति के हाथों में नहीं उभरते। हाथ में बना जीवन का मानचित्र केवल महत्वपूर्ण घटनाओं, गंभीर बीमारी, दशा परिवर्तन, गंभीर संकट, बड़ी खुशियों या खतरों या गहन प्रभाव डालने वाली घटनाओं या मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ने वाले अथवा जीवन की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को ही दर्शाता है। रेखाओं से आयु की गणना करते समय सर्वप्रथम मनुष्य की औसत आयु पर विचार करना चाहिए। व्यक्ति की 100 वर्ष या उससे अधिक मापने वाले मापदंड निश्चित करना त्रुटिपूर्ण है; क्योंकि यह देखा गया है कि लोग बहुधा इतनी आयु तक नहीं पहुंच पाते। जीवन रेखा का विभाजन गुरु अंगुली के नीचे, रेखा के प्रारंभ होने के स्थान से शुरू होता है तथा मणिबंध पर समाप्त होता है (देखिये चित्र क्रमांक 1 आयु गणना हेतु जीवन रेखा का विभाजन), मध्यवर्ती खंडों में जीवन के विभिन्न वर्षों का रिकार्ड रहता है। रेखा के परीक्षण में सुविधा एवं शीघ्रता की दृष्टि से रेखा को मध्य बिन्दु से विभाजित करके केंद्र बिंदु पर छत्तीस वर्ष की आयु निर्धारित की गई है जो सत्तर की लगभग आधी है। इस केंद्र बिंदु के ऊपर के स्थानों में दिए गये रेखा चित्र में चार, छः, बारह, अठारह, चैबीस तीस वर्षों में और केतु बिंदु के बाद के भाग को तैतालीस, इक्यावन, साठ और सत्तर वर्षों की आयु बताने वाले खंडों में बांटा गया है। इस तारीख तक पहुंचने के लिए चार से लेकर सत्तर वर्षों की आयु के बीच एक-एक वर्ष की कालावधि में समय का विभाजन करना आवश्यक है।
कींचित अभ्यास के पश्चात रेखा पर 4, 6, 12, 18, 24, 30, 36, 43, 51, 60 और 70 वर्ष की आयु का पता लगाना आसान हो सकता है। ऐसे अभ्यास से इन कालावधियों की शीघ्र और ठीक-ठीक पढ़ने की जानकारी प्राप्त हो जायेगी। भविष्यकथन करने के स्थान पर हाथ में आयु का कोई चिह्न न दिखाई देने की स्थिति में उस रेखा को ही वर्षों में विभाजित करके इस विधि के अनुसार सही तिथि निकाली जा सकती है। रेखा को पेंसिल से चिह्नित किए बिना खाली हाथ का निरीक्षण करते समय हाथ की लंबाई या छोटे होने की स्थिति को ध्यान में रखकर लंबाई के अनुपात में केंद्रबिंदु पर छत्तीस वर्ष की आयु मानकर कई स्थानों को मन में निश्चित करना आवश्यक है। याद रहे कि लंबे हाथ में प्रत्येक छः वर्ष की अवधि के मध्य अधिक और छोटे हाथ में कम अंतराल होता है। जीवन रेखा का इस तरह विभाजन करना अन्य सभी प्रकार के विभाजन की तुलना में अधिक शुद्ध एवं सही पाया गया है। यद्यपि परिणामों की शुद्धता हस्तरेखा शास्त्री के सटीक अनुमान पर निर्भर करेगी तथापि पर्याप्त परिश्रम करने पर वास्तविक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा पर चिह्नित घटनाएं जीवन रेखा के चिह्नों द्वारा प्रासंगिक हैं या नहीं, यह जानने के लिए कालावधियों को पढ़ना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इन रेखाओं से कालावधि का अनुमान लगाने के नियमों का पालन करना और जीवन रेखा पर लागू होने वाली टिप्पणियों एवं तर्कों को इन रेखाओं के लिए प्रासंगिक मानना आवश्यक है। जीवन रेखा गुरु की अंगुली के नीचे से आरंभ होती है और उसकी दिशा हाथ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक होती है। रेखाएं भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाती हैं।
इसलिए कालावधियों की गणना को सुविधाजनक बनाने के लिए एक काल्पनिक रेखा को आधारवत् लेना उपयोगी रहता है। इस रेखा को गुरु पर्वत के मध्य से प्रारंभ कर हाथ के पार तक जाने की कल्पना की जाती है। हृदय रेखा या मस्तिष्क रेखा का निरीक्षण करते समय इस काल्पनिक रेखा (देखिए चित्र क्रमांक 2 आयु गणना (काल्पनिक रेखा के आधार पर) पर पूर्ववत् 6 से 70 वर्षों की अवधियां अंकित की जाती हैं और इन अवधि खंडों को पढ़ने से निकलने वाली आयु बिल्कुल सही पायी जाती है। इससे अधिक पास की तिथियां देखने के लिए हृदय या मस्तिष्क रेखाओं को एक वर्ष दर्शाने वाली कालावधियों में विभाजित किया जाता है और ठीक वही प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसका उल्लेख जीवन रेखा के संबंध में किया गया है। उपर्युक्त माप तालिकाओं का सही तरह से उपयोग करने से ये सटीक परिणाम देती हैं। शनि रेखा पर आयु को नीचे से ऊपर की ओर पढ़ा जाता है। (देखिए चित्र क्रमांक तीन शनि रेखा का आधार) मणिबंध से मस्तिष्क रेखा तक का स्थान 0 से 30 वर्ष, मस्तिष्क रेखा से हृदय रेखा तक 30 से 45 वर्ष और हृदय रेखा से शनि की अंगुली तक 70 वर्ष की आयु बताने वाली कालावधियों में विभाजित कर दिया जाता है। इन तीन सामान्य उप-विभाजनों को ध्यान में रखकर प्रमुख कालावधियां पढ़ने की कला शीघ्र आ जाती है। एक वर्ष के भीतर के किसी समय को जानने के लिए रेखा को चिह्नित करके ठीक जीवन रेखा की तरह ही पढ़ा जाता है। मस्तिष्क और हृदय रेखाएं हाथ के आर-पार जिन अलग-अलग दिशाओं से जाती हैं, उन्हें शनि रेखा सदा एक ही स्थान पर नहीं काटती। यदि वे अनुचित दिशाओं में चली जाएं तथा उसके फलस्वरूप कोई चैड़ा या संकीर्ण चतुष्कोण बन जाये तो उनके बीच का अंतराल 30 से 45 वर्ष की आयु दर्शाने वाला नहीं होगा और सही तिथियां जानने के लिए शनि की पूरी रेखा की माप लेनी होगी।
सूर्य रेखा को नीचे से ऊपर की ओर उसी तरह पढ़ा जाता है जैसे शनि रेखा को और वही नियम एवं माप इस पर भी लागू होते हैं जो शनि रेखा को पढ़ने के लिए लागू होते हैं और सटीक तिथियां निकालने का उपाय भी दोनों का एक ही है। (देखिए चित्र क्रमांक चार सूर्य रेखा का आधार)। बुध रेखा को नीचे से ऊपर की ओर पढ़ा जाता है (देखिए चित्र क्रमांक 5 बुध रेखा का आधार) वही माप और वे ही नियम इसके लिए प्रासंगिक हैं जो अन्य रेखाओं पर लागू होते हैं सिवाय इसके कि यह रेखा लंबाई में छोटी होने के कारण कालावधियों हेतु लगाए जाने वाले चिह्नों के बीच की दूरी बहुत ही कम होती है क्योंकि उनके चिह्न पास-पास होते हैं। आयु को इस रेखा पर पढ़ना प्रायः वांछनीय होता है क्योंकि जीवन रेखा के संबंध में यह रेखा बहुत ही महत्वपूर्ण है। आकस्मिक रेखाओं पर आयु को पढ़ना आवश्यक नहीं है।
ये रेखाएं मुख्य रेखाओं को काटने वाली, उनसे आरंभ होने वाली या उनके इतने समीप होती हैं कि आकस्मिक रेखा पर दी हुई आयु को मुख्य रेखा द्वारा पढ़ा जा सकता है। जीवन के स्वाभाविक मानचित्र में होने वाले परिवर्तनों या संभावनाओं को प्रकट करने वाली ऐसी आकस्मिक रेखाएं कई दिशाओं की ओर जाती हैं और ऐसे अप्रत्याशित स्थानों से प्रारंभ होती हंै कि उन पर आयु को पढ़ने का कोई नियम नहीं बनाया जा सकता तथापि मुख्य रेखाओं की गणना के आधार पर इनसे भी सही तिथियां निकाली जा सकती हैं। हस्तरेखा शास्त्र के किसी भी भाग के लिए इतना अभ्यास आवश्यक नहीं जितना की तिथियों को जानने के लिए। पहले-पहले अनेक असफलताएं प्राप्त होंगी किंतु ऐसी असफलताएं नियमों के कारण नहीं बल्कि अभ्यास कार्य में लगे व्यक्ति की ग्रहण शक्ति कम रहने के कारण होगी। बीमारी के बारे में निरीक्षण करते समय न केवल जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा व बुध रेखा तथा पर्वतों की जांच भी की जाती है अपितु उनकी तिथियों का भी इन रेखाओं से अंकित विधियों के साथ मिलान किया जाता है।