प्राणशक्ति को एक प्रकार की सजीव विद्युत शक्ति कहा जा सकता है जो समस्त संसार में वायु, आकाश, गर्मी एवं ईथर-प्लाज्मा की तरह समायी हुई है। यह तत्व जिस प्राणी में जितना अधिक होता है, वह उतना ही स्फूर्तिवान, तेजस्वी, साहसी दिखाई पड़ता है। वस्तुतः प्राणशक्ति एक बहुमूल्य विभूति है। यदि इसे संरक्षित करने का मर्म समझा जा सके तो स्वयं को ऋद्धि-सिद्धि संपन्न अतिन्द्रिय सामथ्र्यों का स्वामी बनाया जा सकता है। विदेशों में प्राण चिकित्सा प्रणाली का बहुत सफलतापूर्वक प्रयोग हो रहा है। प्राण तत्व को सब मानसिक चिकित्सक स्वीकार करते हैं और उसको मेंटल हीलिंग, क्रीश्चियन-साइंस, न्यू थाॅट, मेस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म, इलेक्ट्रिक- बाॅयलाॅजी, साइको एनेलेसिस, साइकोथरेपी आदि नामों से पुकारते हैं।
प्राण चिकित्सा की विशेषता: स्थूल शरीर की भांति एक सूक्ष्म शरीर भी मनुष्य का होता है। वह आंखों से देखा नहीं जाता फिर भी उसमें शरीर के गुण होते हैं। उसकी शक्ति स्थूल शरीर की अपेक्षा कई गुनी अधिक बढ़ी होती है। सच तो यह है कि स्थूल शरीर का बल सूक्ष्म शरीर से ही प्राप्त होता है। बीमारियां स्थूल शरीर से नीचे उतर कर सूक्ष्म शरीर से ही प्राप्त होती हैं। बीमारियां स्थूल शरीर से नीचे उतर कर सूक्ष्म शरीर पर भी अपना कब्जा जमाने लगती हैं तो वह कष्ट साध्य या असाध्य हो जाती है। कई जन्मों तक और कई पीढ़ियों तक पीछा न छोड़ने वाली कण्ठमाला, उपदंश, कुष्ठ, क्षय आदि पुरानी पड़ने पर सूक्ष्म शरीर में घुस जाती है, वैद्य, डाॅक्टरों की दवाइयां स्थूल होती हैं, उनका प्रभाव स्थूल शरीर तक ही होता है।
अतः चिकित्सक ने बेबस होकर रोग को असाध्य कहकर पीछा छुड़ा लेते हैं। कुछ रोग एक प्राण से दूसरे प्राण में घुसकर विकृत हो जाने के कारण होते हैं- भूतोन्माद, सर्प-बिच्छू का काटना ऐसे ही रोग हैं। मन, बुद्धि और अंतःकरण के विकारों से मिर्गी, योषाप स्मार, स्नायु तंतुओं की निर्बलता, पागलपन, निराशा, बुद्धिहीनता, क्रोध, चिंता, अनिद्रा, उदासीनता, भ्रम, बुरी आदतें आदि रोग होते हैं। मिथ्या धारणा से भी कई प्राणघातक कष्ट उठ खड़े होते हैं। इन सब रोगों की जड़ सूक्ष्म शरीर तक पहुंच जाती हैं, ‘प्राण चिकित्सा’ ऐसे ही रोगांे की अमोघ औषधि है। सूक्ष्म शरीर में ‘प्राण शक्ति’ को प्रवेश