जन्मकुंडली में आंखों की स्थिति: आंखों का महत्व हमारे जीवन में सर्वोपरि है। जीवन में यदि रंग है तो आंखों के कारण है और हम सभी अपने जीवन में आंखों के महत्व को भली-भांति पहचानते हैं। वर्तमान में आंखों से जुड़ी समस्याएं विभिन्न रूप में हमारे सामने आने लगी हैं। इसमें केवल आज की जीवनशैली का ही योगदान नहीं है बल्कि हमारी कुंडली में बने कुछ योग भी आंखों की समस्याएं उत्पन्न करते हैं। हमारी जन्मकुंडली में दूसरा और बारहवां भाव क्रमशः दायीं और बायीं आंख को दिखाते हैं, इसके अतिरिक्त सूर्य नेत्र ज्योति का नैसर्गिक कारक है।
इसमें भी विशेषतः सूर्य दायीं आंख और चंद्रमा बायीं आंख को दर्शाता है। कुंडली में द्वितीय भाव, द्वि तीयेश, द्वादश भाव, द्वादशेश और सूर्य, चंद्रमा का पीड़ित होना आंखों से जुड़ी समस्या देता है।
- सूर्य, कुंडली में पीड़ित हो अर्थात छठे, आठवें भाव में हो, राहु के साथ हो या नीच राशि में हो तो व्यक्ति की नेत्र ज्योति जल्दी ही कमजोर पड़ जाती है।
- द्वितीय भाव में पाप योग हो या द्वितीयेश छठे, आठवें भाव में हो तो दायीं आंख में कोई समस्या हो सकती है।
- द्वादश भाव में कोई पाप योग हो या द्वादशेश छठे, आठवें भाव में हो तो बायीं आंख में कुछ समस्या हो सकती है।
- षष्ठेश या अष्टमेश दूसरे या बारहवें भाव में हो तो भी आंखों की समस्याएं आती हैं।
- चंद्रमा का नीचस्थ या त्रिकस्थ (6, 8, 12वें) भाव में होना भी बायीं आंख को कमजोर करता है।
- सूर्य, शनि, राहु, केतु या मंगल यदि दूसरे या बारहवें भाव में नीच राशि में बैठ जाय तो आंखों की समस्याएं होती हैं।
- व्यावहारिक दृष्टिकोण से यह पता चलता है कि सूर्य पीड़ित या कमजोर होने से नेत्र ज्योति जल्दी खराब होती है अतः कमजोर सूर्य वाले व्यक्तियों को अपनी आंखों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उपाय - प्रातःकाल उठकर सूर्य के दर्शन अवश्य करें।
- प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करें।
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- कुंडली के द्वितीयेश और द्वादशेश के मंत्र का जाप करें। - दूसरे और बारहवें भाव में स्थित क्रूर ग्रहों का दान करें।
- प्रतिदिन अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।