रत्न मुख्यतः खनिज पदार्थ हैं। प्रकृति द्वारा विभिन्न प्रकार के तत्वों के मिश्रण से इनका निर्माण होता है। मुख्य रूप से ये तत्व निम्न हैं- कार्बन, एल्यूमीनियम, बेरियम, बेरिलियम, कैल्शियम, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फाॅस्फोरस, मैंग्नीज, पोटैशियम, गंधक, सोडियम, टिन, जिर्कोनियम, जस्ता आदि। मुख्य रत्न माणिक, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद, लहसुनिया आदि हैं।
मोती और मूंगा प्राणिज हैं लेकिन ये कैल्शियम आदि तत्वों से निर्मित हैं। रत्नों का स्वास्थ्य पर प्रभाव आयुर्वेद शास्त्रानुसार स्वास्थ्य की प्रगति के लिए रत्न, मंत्र एवं औषधि तीनों का ही लाभकारी प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। रत्नों से निकलने वाली निश्चित तीव्रता की प्रकाश तरंग, यदि लगातार हमारे शरीर पर पड़े तो उस तीव्रता से अस्वस्थ अंग या शरीर धीरे-धीरे स्वस्थ होता जाता है। इसी तथ्य को आधार लेते हुए ज्योतिष ने रत्नों से चिकित्सा का आधार प्रस्तुत किया है।
माणिक्य 9 या 11 Ratti का सोने की अंगूठी में रविवार के दिन अनामिका अंगुली में धारण करने से यह हृदय रोग, हड्डी रोग, नेत्र रोग एवं कार्य क्षेत्र में उत्पन्न बाधाओं को दूर करता है। मोती 7 या 9 Ratti का चांदी की अंगूठी में सोमवार के दिन धारण करने से हीन भावना, मिरगी, पागलपन, भय भावना, ब्लड प्रेशर आदि से छुटकारा मिलता है। मूंगा 9 या 11 Ratti का सोने या चांदी में मंगलवार के दिन धारण करें। सूखा रोग, बवासीर, तर्क शक्ति बढ़ाने एवं हिम्मत हेतु।
पन्ना 7 या 9 Ratti का बुधवार के दिन सोने में कनिष्ठिका अंगुली में धारण करने से गुर्दों का रोग, दमा, हर्निया, त्वचा, कुष्ठ, मधुमेह, वाणीदोष, पढ़ाई में मन लगाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। पुखराज 5 या 7 Ratti का सोने में गुरुवार के दिन धारण करने से जिगर (लीवर) रोग ठीक होते हैं तथा बदहजमी, पाचन संबंधी रोग, शराब की लत से मुक्ति मिलती है। हीरा 45 सेण्ट का मध्यमा अंगुली में शुक्रवार के दिन धारण करने से नपुंसकता, वीर्य रोग ठीक होते हैं तथा सौंदर्य बढ़ता है।
नीलम 5 Ratti का मध्यमा अंगुली में शनिवार के दिन धारण करने से स्नायु रोग, नसों का तनाव, सूखा रोग, जोड़ों का दर्द, पेट के अल्सर ठीक होते हैं। गोमेद 11 या 15 Ratti का मध्यमा अंगुली में बुधवार या शनिवार के दिन धारण करने से मूर्छा रोग, गुप्त रोग, कोढ़, खुजली, पेट रोग एवं दुर्घटना से बचाव होता है। लहसुनिया 9 या 11 Ratti का चांदी में मध्यमा अंगुली में पहनने से गुप्त चिन्ताएं, रात को डरना, बुरे-बुरे ख्याल या सपने, अनिद्रा, मन में भूत-प्रेत का भय, पथरी या कब्ज आदि रोग दूर किये जा सकते हैं। रत्नों को धारण करने, भस्मों का सेवन और धोकर जल पीने से एवं उपरत्नों के घिसे हुए पानी को पीने व स्नान करने से कई प्रकार से लाभ व फल मिलते हैं।
अन्य विशेष प्रयोग रत्न
- शारीरिक सौंदर्य व शोभा की वृद्धि के लिए पन्ना, मोती, मूंगे की भस्म का सेवन करने से प्रत्यक्ष लाभ मिलता है एवं इनके धारण करने से धीरे-धीरे लाभ होता है।
- पिŸा रोगों पर गोमेद अच्छा काम करता है।
- हृदय रोगों के लिए मोती सर्वाधिक लाभप्रद है।
- पाण्डु रोग (पीलिया) पर मूंगा व गोमेद अनुकूल हैं।
- गुदा संबंधी रोगों, भगन्दर व व्रण (घाव/फोड़ांे) पर पुखराज लाभकर रहता है।
- आंखांे की शक्ति/रोशनी बढ़ाने के लिए और नेत्र रोगों से बचने के लिए मोती, मूंगा व लहसुनिया का प्रयोग हितकर रहता है।
- पन्ना अन्निमांध (मंदाग्नि), सन्निपात (कम्पन) और रक्तचाप पर अच्छा काम करता है।
- त्वचा को स्वस्थ व सुंदर रखने के लिए तथा फोड़े-फुंसी का भराव जल्दी होने के लिए नीलम का प्रयोग असरदार रहता है।
उपरत्नों का प्रयोग
- भीष्म पाषाण (यशब) से बने बर्तनों में विषैले पदार्थों का रंग बदल जाता है।
- पीलिया (पाण्डु) रोग में पीले रंग का कहरवा पानी में घिसकर पीने और ताबीज के रूप में पहनने से लाभ होता है।
- राता को रविवार, शनिवार या मंगलवार को धूप देकर पहनने से रात में होने वाला ज्वर नहीं होता।
- यशब का ताबीज बनाकर या चैकोर टुकड़े को ताबीज में जड़कर हृदय को स्पर्श करता हुआ पहनने पर पल्पिटेशन (हृदय की धड़कन) में आराम होता है।
- अकीक (हकीक) को ताबीज या अंगूठी में पहनने पर नज़र नहीं लगती तथा मित्रों से प्रेम बना रहता है।
- फ़िरोजा हर स्थिति में विपŸिानाशक होते हैं।