गजकेसरी योग को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है वह बुद्धिमान और दीर्घायु होता है। धर्म-कर्म में रूचि होती है। ऐसे व्यक्ति जिस क्षेत्र में जाते हैं उनमें निरंतर प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं। इस योग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस योग से प्रभावित व्यक्ति पढ़ने-लिखने में बहुत ही होशियार होते हैं, दयावान और विवेकशील होते हैं। आमतौर पर इस योग वाले व्यक्ति उच्च पद पर कार्यरत होते हैं।
अपने सद्गुणों के कारण मृत्यु के पश्चात भी इनकी ख्याति बनी रहती है। व्यक्ति को जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश, कीर्ति स्वतः खींची चली आती है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली होता है जिससे समाज में इन्हें श्रेष्ठ स्थान मिलता है। आर्थिक मामलों में ये बहुत ही भाग्यशाली होते हैं जिससे इनका जीवन वैभव से भरा होता है। लेकिन यह तभी संभव होता है
जब यह योग अशुभ प्रभाव से मुक्त होता है। गजकेसरी योग की शुभता के लिए यह आवश्यक है कि गुरु व चंद्र दोनों ही नीच के न हों और न ही ये दोनों ग्रह शनि व राहु जैसे पापग्रहों से किसी प्रकार प्रभावित हों। यह योग उन स्थितियों में भी बनता है जब गुरु और चन्द्रमा एक दूसरे से 1-4-7-10 घर में होता है। कहा गया है कि चन्द्रमा और गुरु के बीच संबंध नहीं भी हो और केवल गुरु चैथे, सातवें या दसवें घर में शुभ स्थिति में बैठा हो तब भी गजकेसरी योग बनता है। केन्द्र के अलावे ये दोनों ग्रह त्रिकोण में नवम एवं पंचम होकर भी शुभ फल देते हैं।
कभी-कभी इन ग्रहों की क्षमता कम होने पर जैसे ग्रह के बाल्यावस्था, मृतावस्था अथवा वृद्धावस्था इत्यादि में होने पर इस योग के प्रभाव को बढ़ाने हेतु लग्न के उपाय करने से इस राजयोग में वृद्धि होती है एवं व्यक्ति और अधिक लाभ प्राप्त कर पाता है। कुंडली में इस योग के होने पर जहां कुछ लोग उन्नति करते हैं तो कुछ लोगों की कुण्डली में यह योग प्रभावहीन हो जाता है। इस संदर्भ में ज्योतिष शास्त्र लग्नानुसार कुछ नियमों की व्याख्या करता है कि कैसे यह योग शुभ फल देता और किन स्थितियों में यह प्रभावहीन होता है। लग्नानुसार गजकेसरी योग
मेष लग्न: मेष लग्न की कुण्डली में गुरु नवमेश/द्वादशेश तथा चन्द्र सुखेश होकर गजकेसरी योग बनाता है। इस लग्न में गुरु व चन्द्र, दोनांे योगकारक होते हैं। इनकी युति शुभ फलदायी होती है। इस लग्न में इन दोनों ग्रहों की सबसे शुभ स्थिति चतुर्थ भाव में होती है। द्वितीय एवं पंचम में भी गुरु-चन्द्र की युति शुभ मानी जाती है।
वृष लग्न: वृष लग्न की कुण्डली में गुरु लाभेश/अष्टमेश तथा चन्द्र पराक्रमेश होकर गजकेसरी योग बनाता है।
सामान्यतः वृष लग्न की कुण्डली में गजकेसरी योग उचित लाभ नहीं दे पाता।
मिथुन लग्न: मिथुन लग्न की कुंडली में गुरु सप्तमेश/दशमेश तथा चन्द्र धनेश होकर गजकेसरी योग बनाता है। इस लग्न में गुरु को केन्द्रेश होने का दोष लगता है परंतु गुरु यदि धनु राशि में होता है तो धनेश चन्द्र के साथ मिलकर गजकेसरी योग का फल देता है क्योंकि त्रिकोण राशि में होने से गुरु का केन्द्राधिपति व सप्तमाधिपति दोष प्रभावहीन हो जाता है।
कर्क लग्न: कर्क लग्न की कुण्डली में गुरु रोगेश/अष्टमेश तथा चन्द्र लग्नेश होकर गजकेसरी योग बनाता है। अगर लग्न का स्वामी चन्द्रमा लग्न में बैठा हो और गुरु मेष में स्थित हो या फिर गुरु कर्क में हो और चन्द्र मेष में तब भी उत्तम गजकेसरी योग बनता है जो व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी होता है।
सिंह लग्न: सिंह लग्न की कुण्डली में गुरु पंचमेश/अष्टमेश तथा चन्द्र द्वादशेश होकर गजकेसरी योग बनाता है परंतु इस लग्न में यह योग तब फलित होता है जब गुरु मीन राशि में बैठा हो और चन्द्रमा धनु राशि में बैठा हो। अन्य स्थितियों में इस योग के फलों में कमी आती है।
कन्या लग्न: कन्या लग्न की कुण्डली में गुरु केन्द्रेश व चन्द्र लाभेश होकर गजकेसरी योग बनाता है परंतु इस लग्न में यह योग तब फलित होता है जब गुरु अपनी राशि में बैठा होता है क्यांेकि ऐसी अवस्था में गुरु केन्द्राधिपति दोष से मुक्त हो जाता है। इस स्थिति में गुरु अगर मीन राशि में हो तथा चन्द्रमा धनु या मीन में बैठा हो तो इसे शुभ फलदायी गजकेसरी योग माना जाता है।
तुला लग्न: तुला लग्न की कुण्डली में गुरु पराक्रमेश/रोगेश तथा चन्द्र दशमेश होकर गजकेसरी योग बनाता है।
अतः इस लग्न मंे गजकेसरी योग का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है फिर भी यदि गुरु कर्क राशि में व चन्द्रमा मकर राशि में हो तो कुछ हद तक शुभ फल की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन इसमें एक अच्छी बात यह होती है कि गुरु-चंद्र की इस स्थिति से हंस योग बनता है जिनका इन्हें अत्यंत शुभ फल मिलता है।
वृश्चिक लग्न: वृश्चिक लग्न की कुण्डली में गुरु पंचमेश/धनेश तथा चन्द्र नवमेश होकर गजकेसरी योग बनाता है। गुरु, यदि कुण्डली में लग्न में हो और चन्द्रमा सातवें घर में वृष राशि में हो तो दोनों के बीच दृष्टि सम्बन्ध बनता है जिससे यह योग बहुत ही शुभकारी होता है।
धनु लग्न: धनु लग्न की कुण्डली में गुरु लग्नेश/सुखेश तथा चन्द्र अष्टमेश होकर गजकेसरी योग बनाता है। अतः इस लग्न में चन्द्र के अष्टमेश होने के कारण गजकेसरी योग का पूर्ण फल नहीं मिलता। लेकिन गुरु अगर वृश्चिक राशि में हो और चन्द्रमा वृष राशि में तो इस योग का शुभ फल मिल सकता है।
मकर लग्न: मकर लग्न की कुण्डली में गुरु पराक्रमेश/द्वादशेश तथा चन्द्र सप्तमेश होकर गजकेसरी योग बनाता है।
अतः मकर लग्न की कुण्डली में गजकेसरी योग सामान्य फलदायी होता है।
कुम्भ लग्न: कुम्भ लग्न की कुण्डली में गुरु लाभेश/धनेश तथा चन्द्र रोगेश होकर गजकेसरी योग बनाता है।
अतः कुम्भ लग्न की कुण्डली में भी गजकेसरी योग सामान्य फलदायी होता है।
मीन लग्न: मीन लग्न की कुण्डली में गुरु लग्नेश/दशमेश तथा चन्द्र पंचमेश होकर गजकेसरी योग बनाता है। अतः मीन लग्न की कुण्डली में गुरु की ही राशि में गजकेसरी योग बने तो बहुत ही शुभकारी होता है।
अतः सभी लग्नों में मिथुन, कन्या, वृश्चिक एवं मीन लग्न में बनने वाला गजकेसरी योग सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। अन्य लग्नों में इसका प्रभाव इनकी अपेक्षा कम होता है।