प्राथमिक तौर पर हम ‘हस्तरेखा विज्ञान’ अर्थात् पामिस्ट्री को दो भागों में बांट सकते हैं- प्रथम, हाथ की रचना (बनावट)- इसमें हम व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों का ज्ञान करते हैं। जैसे - प्यास, भूख, क्रोध, भय, काम आदि इच्छाएं, हस्त लक्षण विद्या के नाम से जानते हैं। दूसरे, हाथ की रेखाओं से मनुष्य का भूत, वर्तमान और भविष्य का ज्ञान होता है। इसे हस्तरेखा विद्या कहते हैं। दोनों विद्याओं का सम्मिलित नाम हस्तरेखा विज्ञान है। इस ‘पामिस्ट्री’ को प्राचीन काल में, ‘सामुद्रिक शास्त्र’ के अंतर्गत लिया जाता था। इस शास्त्र का एक अध्याय या भाग ‘हस्त सामुद्रिक’ है। हथेली हमारे मन-मस्तिष्क का दर्पण है। इस पर बने उभार को पर्वत कहा जाता है। ये पर्वत हमारे मस्तिष्क के कुछ केंद्रों की क्रियाशीलता की ओर संकेत करते हैं। हाथ पर फैली रेखायें हमारे अचेतन की तरंगों के मार्ग हैं।
हाथ की तीन मुख्य रेखायें-हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा तथा जीवन रेखा की रचना गर्भावस्था के तीसरे तथा चैथे मास के दौरान बनती है। हमारे अचेतन मन की इच्छाएं हमारे भविष्य की नींव हैं, ये ही हस्तरेखाओं के रूप में प्रकट होती हैं। अचेतन मन (हस्तरेखा) को पढ़ना ही भविष्य को पढ़ना है। हस्तरेखा हथेली पर बने मन के ग्राफ हैं। अचेतन मन की इच्छाओं का ग्राफ हथेली पर बनता है। पामिस्ट्री मनोविज्ञान के अधिक निकट है। यह सत्य है कि रेखायें बदलती रहती हैं परंतु धीमीगति से। यह भी सत्य है कि अंगुलियों के निशान कभी नहीं बदलते। आप इस सत्यता की परीक्षा स्वयं करें। आज आप अपने दोनों हाथों के प्रिन्ट लेकर रखें फिर कुछ समय बाद जब आपकी स्थिति (हालात) बदल जाये, तब पुनः पिं्रट निकलवायें तो आप पिछले तथा इन प्रिन्ट्स में तुलनात्मक अध्ययन करें तो पायेंगे कि बहुत-सी रेखायें बदल चुकी हैं। हमारे सोचने अथवा विचारों का प्रभाव हाथ की रेखा पर भी पड़ता है। हृदय का हाल ‘हृदय रेखा’ तथा ‘मस्तिष्क’ का हाल ‘मस्तिष्क रेखा’ पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। बायां हाथ पूर्व कर्मों का जबकि दायां हाथ हमारे भविष्य तथा वर्तमान के कर्मों का द्योतक है।
मनुष्य के कर्मानुसार रेखायें भी बदलती हैं। सिद्धांत/नियम: पुरुष का दायां व स्त्री तथा बालक का बायां हाथ प्रमुख रूप से देखना चाहिये। निष्क्रिय पुरूष तथा बाएं हाथ से लिखने वाले का बायां हाथ एवं सक्रिय (सर्विस/व्यापार करने वाली) स्त्री का दायां हाथ देखना चाहिए, क्योंकि दायां हाथ ही कर्मशील हाथ है। दोनों हाथों को देखकर ही फलादेश करना चाहिये। यदि एक हाथ में दुर्घटना हो तो वह घटित नहीं होती, यदि हो भी जाय तो रक्षा अवश्य हो जाती है। देश, समय व जाति की भिन्नता से फलादेश में अंतर पड़ जाता है। पंचांगुली देवी, सरस्वती मां अथवा अपने ईष्टदेव का 32 लाख जाप करने से ज्योतिषी की वाणी में शक्ति आ जाती है। हाथ का दूर से ही प्रारंभिक अवलोकन करके फिर उसे हाथ में लेकर देखना चाहिए, इससे वह फल स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। ज्योतिषी को व्यर्थ की बातों का उत्तर नहीं देना चाहिये।
याद रखें-हाथ की कोई भी रेखा बेकार नहीं है, उसका कुछ न कुछ फल अवश्य है। गोधुलि वेला तथा रात्रि (कम रोशनी) में हाथ की परीक्षा न करें। पहले हाथ की बनावट, अंगुलियां, अंगूठा, पर्वतादि से व्यक्ति के स्वभाव का पता लगाना चाहिए। फिर चिह्न व रेखाओं से जीवन की घटनायें देखनी चाहिए। ज्योतिषी तथा व्यक्ति दोनों कठिन श्रम के तुरंत बाद, अत्यधिक गर्मी सर्दी में, नशे की अवस्था में हाथ न देखें और न दिखायें, बाएं हाथ से पत्नी का तथा स्त्री के दाएं हाथ से पति का भविष्य देखना चाहिए। ज्योतिषी किसी की मृत्यु तथा अशुभ बातें कभी स्पष्ट रूप से न बतायें। कभी-भी भीड़-भाड़ में, जल्दबाजी में, क्रोध में, लालच में, मजाक में या तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति में फलादेश न करें। किसी को निरूत्साहित करने की बात भी न करें। अतः हस्तरेखा का अध्ययन बहुत सूक्ष्मता से, धैर्य -शांतचित्त एवं एकांत में होना चाहिए।